प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी काफी दिनों तक गायब रहने के बाद देश की जनता के सामने आए। जब किसान आंदोलन लगातार जारी है और किसान कृषि बिल को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं, उन्हें लुभाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने आज किसान सम्मान निधी की आठवीं किस्त जारी की। कार्यक्रम ऑनलाइन था। अब चूकि पीएम मोदी सामने आए थे, तो निश्चित तौर पर उन्हें कोरोना को लेकर कुछ न कुछ बोलना ही था। क्योंकि अगर वह नहीं बोलते तो सवाल उठता ही। ऐसे में भाषणवीर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण के दौरान कोरोना को लेकर तमाम बातें कही, जिसमें तीन बातें उल्लेख करना जरूरी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, बीते कुछ समय से जो कष्ट देशवासियों ने सहा, मैं भी उतना ही महसूस कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग दवाओं और जरूरी वस्तुओ की कालाबजारी में लगे हैं, इन पर कठोर कार्रवाई की जाए। पीएम ने यह भी कहा कि भारत और कोई भी भारतवासी हिम्मत नहीं हारेगा, हम लड़ेंगे और जीतेंगे।
भाषणवीर प्रधानमंत्री के इस बयान के आने से ज्यादा बेहतर होता कि वो जैसे अब तक कोरोना के कोहराम के बीच चुप्पी साधे रहे, आज भी अपना मुंह बंद ही रखते, क्योंकि उन्होंने जो कहा, उसने देश के लोगों को और ज्यादा ही निराश किया और उनकी गिरती साख पर एक बट्टा और लगा दिया। साथ ही उनके लोगों और भांड मीडिया द्वारा प्रचारित 56 इंच के सीने को एक बार फिर से छलावा साबित कर दिया।
पीएम मोदी ने कहा कि वो देशवासियों के कष्ट को महसूस कर रहे हैं। सवाल उठता है कि देश की जनता ने मोदी के नाम पर इसलिए वोट नहीं दिया था कि वो उनकी परेशानी महसूस करेंगे, बल्कि निश्चित तौर पर इसलिए दिया था कि वो देश के लोगों की तकलीफों को दूर करेंगे। कालाबजारी पर प्रधानमंत्री मोदी का बयान गोल मोल रहा। जिस गुजरात और मध्यप्रदेश में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाने की घटना हुई है, उन दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है, जो कहीं न कहीं पीएम मोदी के इशारे पर ही चलती है। केंद्र में भी ‘मोदी राज’ है। ऐसे में उन पर शिकंजा कौन कसेगा??
जब से कोरोना की दूसरी लहर आई है, देश की सरकार सुन्न सी पर गई है। बल्कि कहीं न कहीं इस दूसरी लहर को बढ़ाने में योगदान ही दिया है। तमाम राज्यों के चुनाव और यूपी के पंचायत चुनाव ने तमाम राज्यों की हालत खराब कर दी है। हाल ही में प्रतिष्ठित आउटलुक मैग्जीन ने अपने कवर पेज पर Missing (लापता) लिखा है, उसने भारत सरकार को मिसिंग बताया है। वर्तमान में देश ऐसे ही हालात में है। ऐसे वक्त में जब देश की जनता को उसकी सरकार की सबसे ज्यादा जरूरत थी, सरकार खामोश खड़ी तमाशा देख रही है। देश किसके भरोसे चल रहा है, किसी को नहीं पता।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।