नई दिल्ली। चौबीस घंटे के समाचार इन दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुरक्षा को लेकर रोज खबरें दिखा रहे हैं. खबरों में आ रहा है कि पीएम मोदी की जान खतरे में है और अब उनका सुरक्षा घेरा इतना मजबूत हो जाएगा जिसमें मंत्रियों तक का जाना मुश्किल हो जाएगा. मीडिया में खबर आ रही है कि अब बड़े-बड़े मंत्री भी पीएम मोदी से बमुश्किल मिल पाएंगे. प्रधानमंत्री तक वही मंत्री पहुंच पाएंगे जिसको एसपीजी कमांडो इजाजत देंगे.
लेकिन दुसरी तरफ कुछ दिनों पहले आई एक खबर, जो चिंताजनक है. तीनों सेनाओं के प्रमुख देश के राष्ट्रपति की सुरक्षा में सेंघ लग गई थी. ओडिशा के विख्यात जगन्नाथ मंदिर में राष्ट्रपति के साथ धक्का मुक्की हो गई थी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उनकी पत्नी सविता के साथ मंदिर की यात्रा के दौरान वहां के सहायकों ने दुर्व्यवहार किया था. अब इस घटना पर राष्ट्रपति भवन ने गहरी निराशा जताई है.
राष्ट्रपति कोविंद अपनी पत्नी सविता के साथ 18 मार्च को इस प्रतिष्ठित मंदिर में पहली बार दर्शन के लिए गए थे. कोविंद दंपति की मंदिर यात्रा को लेकर वहां पर भारी सुरक्षा व्यवस्था तैनात की गई थी, लेकिन उनके मंदिर दर्शन के दौरान कुछ सहायक सुरक्षा प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए उनके करीब पहुंच गए और उन्होंने इस वीआईपी दंपति के साथ न सिर्फ धक्का-मुक्की की बल्कि कोहनी से उन्हें टक्कर भी मारी.
यह चौंकाने वाला मामला उस समय सामने आया जब श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजीटीए) ने दुर्व्यवहार के लिए अपने 3 आरोपी सहायकों को कारण बताओ नोटिस जारी करने का फैसला लिया है, जिससे इस बात की पुष्टि हो गई है. मंदिर से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कुछ सहायकों ने कोविंद दंपति के रास्ते को उस समय रोक दिया था जब वे मंदिर में पूजा करने जा रहे थे.
सवाल है कि एक तरफ सरकार प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर इतनी सजग है लेकिन राष्ट्रपति की सुरक्षा में लगातार खामी सामने आई है. पिछले दिनों एक मंदिर में यात्रा के दौरान उन्हें मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर पूजा करनी पड़ी थी तो दूसरी ओर जगन्नाथ मंदिर में राष्ट्रपति के साथ धक्का-मुक्की हो चुकी है. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि कहीं राष्ट्रपति की सुरक्षा को इसलिए तो हल्के में नहीं लिया जा सकता कि उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि कमजोर है. सवाल यह भी है कि अगर आज लालकृष्ण आडवाणी राष्ट्रपति होते या फिर कल वैंकेया नायडू राष्ट्रपति बनेंगे तो उनकी सुरक्षा ऐसी ही होगी?
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।