नई दिल्ली। मार्च के आखिरी हफ्ते में एक के बाद एक कई फिल्मी सितारों ने राजनीति में कदम रखा. 27 मार्च को खबर आई कि भोजपुरी इंडस्ट्री के जुबली स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ बीजेपी में शामिल हो गए हैं. तो वहीं छम्मा-छम्मा गर्ल के नाम से मशहूर उर्मिला मंतोडकर ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. एक खबर क्रिकेट की दुनिया से भी आई जब पूर्व भारतीय क्रिकेट सितारा गौतम गंभीर ने भाजपा ज्वाइन कर लिया.
लखनऊ में 27 मार्च को भोजपुरी फिल्म अभिनेता रवि किशन और दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ ने यूपी के मुख्यमंत्री CM योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की. चर्चा है कि दोनों अभिनेताओं को पूर्वांचल से बीजेपी का टिकट मिल सकता है. कहा जा रहा है कि रवि किशन को गोरखपुर से और निरहुआ को आजमगढ़ से टिकट मिलने के आसार हैं. दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ मूल रूप से गाजीपुर के गांव टंडवा से हैं. पूर्वांचल के एक और स्टार मनोज तिवारी पहले से ही भाजपा में हैं और उनके पास दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है. तो भाजपा मे ही हेमामालिनी भी लंबे समय से हैं. एक बार फिर से वह मथुरा से भाजपा की उम्मीदवार होंगी.
कलाकारों को राजनीति का यह चस्का सबसे पहले दक्षिण में लगा, जहां कई कद्दावर नेताओं ने न सिर्फ राजनीति में कदम रखा बल्कि प्रदेश के मुख्यमंत्री तक बनें. दक्षिण से ही 2019 के चुनाव में एक और जाने-माने चेहरे ने हुंकार भर दी है. हालांकि किसी पार्टी में शामिल होने की बजाय उसने चुनाव में निर्दलीय उतरने का फैसला किया है. दक्षिण भारत से लेकर हिंदी फिल्मों तक में अपने अभिनय क्षमता का लोहा मनवा चुके प्रकाश राज ने बेंगलूरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल कर दिया है.
तो उधर पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने फिल्मी सितारों को साथ लेकर लोकसभा चुनाव में उतरने का मन बना लिया है. मुनमुन सेन, शताब्दी रॉय और दीपक अधिकारी जैसे फिल्मी सितारों के साथ ही इस बार खबर है कि टीएमसी ने मिमी चक्रबर्ती और नुसरत जहां जैसी कलाकारों को भी चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी कर ली है. खबरों के मुताबिक मिमी जादवपुर, नुसरत बशीरहाट, शताब्दी बीरभूम, मुनमुन आसनसोल और दीपक घाटल लोकसभा सीट से किस्मत आज़माने वाले हैं.
एक के बाद एक फिल्मी सितारों का राजनीति की दुनिया में कदम रखने से यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या लोगों का राजनेताओं पर से भरोसा उठता जा रहा है? और सभी दलों के लिए फिल्मी सितारें चुनाव जीताऊ कैंडिडेट बन गए हैं. एक सवाल यह भी है कि क्या राजनीतिक दलों का लक्ष्य महज अपने सीटों की गिनती को बढ़ाना है, चाहे वो जो जीता कर ले आए?
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।