महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे साफ हो गए हैं. महाराष्ट्र की बात करें तो प्रदेश में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 161 सीटें मिली है, जबकि कांग्रेस-एनसीपी 98 सीटें हासिल कर सकी हैं. पिछली बार भाजपा-शिवसेना गठबंधन को विधानसभा में 185 सीटें मिली थीं. नतीजों को देखकर पता चलता है कि इस बार गठबंधन को 24 सीटों का नुकसान हुआ है. न तो बहुजन समाज पार्टी और न ही प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी एक भी सीट जीत पाई.
चुनाव नतीजों के बाद एक बार फिर आंकड़ों को सामने रखकर विश्लेषण का दौर शुरू हो चुका है. इंडिया टुडे डाटा इंटेलिजेंस यूनिट ने उन सभी सीटों का आंकलन किया, जहां भाजपा ने जीत दर्ज की और उन सीटों पर कांग्रेस/एनसीपी और वीबीए यानि वंचित बहुजन अघाड़ी को मिले वोटों का प्रतिशत जोड़ दिया. इन तीनों पार्टियों के वोट शेयर जोड़ने के बाद पता चला कि अगर तीनों पार्टियां साथ चुनाव लड़तीं तो भाजपा को 34 सीटों पर हार का सामना करना पड़ता.
ऐसी स्थिति में कांग्रेस-एनसीपी-वीबीए को लगभग 138 सीटें मिलती और भाजपा घटकर 128 पर रह जाती. लेकिन अब चुनाव बीत चुका है और राजनीतिक दलों के पास अफसोस करने के सिवा दूसरा रास्ता नहीं है. लेकिन…
सवाल है कि प्रकाश आंबेडकर ने कांग्रेस-एनसीपी से गठबंधन क्यों नहीं किया? सवाल यह भी है कि असदुद्दीन ओवैसी की जिस AIMIM के साथ मिलकर उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा था और दोनों को एक बड़ी ताकत के रूप में देखा जाने लगा था, आखिर प्रकाश आंबेडकर ने विधानसभा चुनाव से पहले ओवैसी से गठबंधन क्यों तोड़ दिया? जबकि महाराष्ट्र चुनाव में दो सीटें जीतने वाले ओवैसी आखिरी समय तक प्रकाश आंबेडकर के साथ गठबंधन को लेकर कोशिश करते रहें.
ओवैसी का कहना था कि गठबंधन होने की स्थिति में दोनों दलों के कम से कम 15 से 20 सीटें जीतने की संभावना रहती. ऐसे में प्रकाश आंबेडकर को राज्यसभा भेजा जा सकता था. लेकिन ओवैसी की कोशिश रंग नहीं लाई और गठबंधन नहीं हुआ.
विधानसभा चुनाव में प्रकाश आंबडेकर ने 274 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारा था. लेकिन वह कोई सीट नहीं जीत सकें. सिर्फ एक सीट पर उन्हें कुछ समय के लिए बढ़त मिल सकी थी. जबकि ओवैसी ने महाराष्ट्र में 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और उन्होंने दो सीटें जीती.
अब सवाल है कि दोनों के बीच गठबंधन क्यों नहीं हुआ? इसके जो कारण सामने आए उसके मुताबिक प्रकाश आंबेडकर ओवैसी को गठबंधन में सिर्फ 8 सीटें देना चाहते थे. खबर यह भी है कि प्रकाश आंबेडकर ओवैसी से उनके सीटिंग विधायकों वाली सीटें चाहते थे. जाहिर है कि ओवैसी के लिए ऐसा करना संभव नहीं था. गठबंधन तोड़ने के लिए प्रकाश आंबेडकर ने यह भी आरोप लगाया कि AIMIM को दलित वोट ट्रांसफर हो जाते हैं लेकिन वंचित बहुजन अघाड़ी के उम्मीदवार को मुस्लिम वोट नहीं मिलते. इन तीन कारणों को आधार बनाकर प्रकाश आंबेडकर ने ओवैसी के साथ गठबंधन नहीं किया.
अब जरा इसी साल हुए लोकसभा चुनाव के आंकड़े देखिए.
लोकसभा चुनाव में ओवैसी और प्रकाश आंबेडकर ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. इन्होंने राज्य के सभी 48 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे. इस गठबंधन को 42 लाख से अधिक वोट मिला और उसका वोट प्रतिशत 7 फीसदी से ज्यादा रहा. ओवैसी की पार्टी एक सीट जीतने में सफल रही थी. इस गठबंधन ने भाजपा, शिवसेना, कांग्रेस और राकंपा सबको काफी नुकसान पहुंचाया. हालांकि ज्यादा नुकसान कांग्रेस एनसीपी को हुआ. इस गठबंधन की वजह से कांग्रेस और शिवसेना के कई दिग्गज चुनाव हार गए.
माना जा रहा था कि विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन तीसरी बड़ी ताकत बनकर उभरेगा, लेकिन विधानसभा चुनाव के ठीक पहले प्रकाश आंबेडकर गठबंधन तोड़ने पर अमादा दिखने लगे और आखिरकार गठबंधन तोड़ दिया.
अब सवाल यह है कि जो प्रकाश आंबेडकर कुछ समय पहले तक ओवैसी के साथ मिलकर भाजपा को रोकने की बात कह रहे थे, वह अचानक अकेले चुनाव मैदान में क्यों कूद गए, जबकि इतने सालों के इतिहास में यह साफ है कि प्रकाश आंबेडकर अकेले महाराष्ट्र की राजनीति में कई बड़ा कमाल नहीं कर पाए हैं. उन्होंने ऐसा फैसला क्यों किया जो आखिरकार भाजपा के हक में गया. क्या यह पूरा घटनाक्रम महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रकाश आंबेडकर की भूमिका पर सवाल नहीं उठाता है?
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।