यूं तो सोमवार को लखनऊ की सड़कों पर रोड शो के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, नई-नई पार्टी की सक्रिय राजनीति से जुड़ी प्रियंका गांधी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी और मध्य प्रदेश के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया एक साथ उतरे थे, लेकिन यह साफ था कि यह रोड शो सिर्फ प्रियंका गांधी को प्रोजेक्ट करने के लिए किया गया था, जिसमें राहुल गांधी बस अपनी बहन के साथ थे.
कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए कांग्रेस पार्टी के इन तीनों दिग्गजों ने एयरपोर्ट से लेकर कांग्रेस के कार्यालय तक रोड शो किया. इस दौरान इनके स्वागत के लिए लखनऊ में कई जगह सड़कें बैनरों और पोस्टरों से पटे रहें. कानपुर, उन्नाव, सीतापुर, लखीमपुर, फैजाबाद, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, अमेठी, रायबरेली, बाराबंकी, फैजाबाद जैसे आसपास के जिलों के कार्यकर्ता प्रियंका और राहुल के स्वागत के लिए पहुंचे. ऐसे में सवाल है कि सूबे में बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस को प्रियंका गांधी क्या संजीवनी दे पाएंगी?
फिलहाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास 2 सांसद और 6 विधायक और एक एमएलसी है. प्रदेश में पार्टी के वोट प्रतिशत की बात करें तो यह दहाई के अंक में भी नहीं है. इससे पार्टी की खस्ता हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसे में जब प्रियंका गांधी को ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ प्रदेश की कमान मिली है तो प्रियंका गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यहां के संगठन को फिर से खड़ा करने की होगी. लोकसभा चुनाव के करीब होने के कारण बहुत कम समय है. इतने कम समय में संगठन को नए तरीके से खड़ा करना आसान बिल्कुल नजर नहीं आ रहा है. इस बात को प्रियंका गांधी भी समझ रही है. ऐसे में अगर प्रियंका थोड़ी सी भी कामयाब रहीं तो यूपी की राजनीति में बड़ा कांग्रेस एक बार फिर से भले ही खड़ी न हो पाए, चलने जरूर लगेगी.
पूर्वी उत्तर प्रदेश यानी पूर्वांचल में वाराणसी, गोरखपुर, भदोही, इलाहाबाद, मिर्जापुर, प्रतापगढ़, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया, चंदौली, कुशीनगर, मऊ, आजमगढ़, देवरिया, महराजगंज, बस्ती, सोनभद्र, संत कबीरनगर और सिद्धार्थनगर जैसे जिले आते हैं. इस इलाके में ब्राह्मण मतदाता भी अच्छे खासे हैं, जो एक दौर में कांग्रेस का मूल वोटबैंक रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि प्रियंका के सहारे कांग्रेस इन्हीं वोटों को साधने की रणनीति पर काम कर रही है. यह वक्त बताएगा कि प्रियंका कितनी सफल होती हैं.
Read it also-मायावती ने दिखाया मनुवादी मीडिया को आईना

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।