देश में जुलाई में माल एवं सेवा कर, जीएसटी लागू होने के बाद विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट आयी है. क्योंकि इस दौरान नये आर्डर और उत्पादन में कमी रही. पिछले साल दिसंबर के बाद इसमें पहली बार गिरावट आई है. पिछले साल नोटबंदी के बाद दिसंबर माह में विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई थी.
विनिर्माण क्षेत्र में आई इस गिरावट के बाद रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दर कम करने की मांग पर दबाव बढ़ गया है. रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा बैठक शुरू हो रही है. निक्की इंडिया मैन्युफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स पीएमआई जुलाई में 47.9 रहा है जबकि जून में यह 50.9 अंक पर था. फरवरी, 2009 के बाद यह विनिर्माण सूचकांक का सबसे निचला स्तर है. जुलाई का यह आंकड़ा 2017 में कारोबारी स्थिति में गड़बड़ी को दर्शाता है. पीएमआई सूचकांक के 50 अंक से ऊपर रहना विनिर्माण गतिविधि में तेजी को दर्शाता है जबकि इससे नीचे यदि यह रहता है तो यह सुस्ती को दर्शाता है.
आईएचएस मार्कटि में प्रधान अर्थशास्त्री और इस रिपोर्ट की लेखिका पोल्लीन्ना डी लीमा ने कहा, भारत में विनिर्माण वृद्धि जुलाई में थम गयी और इसका पीएमआई करीब साढे आठ साल में अपने सबसे निचले स्तर पर आ गया.
इस तरह की रिपोर्ट है कि इस क्षेत्र पर माल एवं सेवा कर के क्रियान्वयन का बुरा असर पड़ा है. इस सर्वेक्षण के अनुसार जीएसटी के क्रियान्वयन का मांग पर असर पड़ा है. उत्पादन, नये आर्डर और खरीद गतिविधियां वर्ष 2009 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई. लीमा ने कहा, मांग में कमजोरी के रुख, अपेक्षाकृत निम्न लागत वाला मुद्रास्फीति दबाव तथा फैक्ट्री गेट पर अपेक्षाकृत रियायती शुल्क जैसी स्थिति से मौद्रिक नीति में ढील के लिये ताकतवर साधन उपलब्ध करा दिया है.
मौद्रिक नीति में नरमी से आर्थकि वृद्धि में सुधार की अच्छी संभावना है. रिजर्व बैंक ने सात जून को जारी अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में कोई बदलाव नहीं किया था. आरबीआई गवर्नर उर्जति पटेल ने तब कहा था कि बैंक मुद्रास्फीति के निम्न स्तर को लेकर पूरी तरह सुनिश्चित होना चाहता है. फैक्ट्री आर्डर में कमी आने से हातोत्साहित कंपनियों ने जुलाई में उत्पादन में कमी कर दी.
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