दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा का को 14 अक्टूबर 2024 को देश भर से पहुंचे एक्टिविस्टों और उनके चाहने वालें के बीच दी गई। इसके बाद उनकी इच्छा के मुताबिक उनके शरीर को अस्पताल को दान दे दिया गया। साईंबाबा का बीते शनिवार 12 अक्टूबर की शाम को हैदराबाद के निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (निम्स) अस्पताल में निधन हो गया। 57 साल के साईबाबा का गॉल ब्लैडर का ऑपरेशन हुआ था लेकिन इसके बाद उन्हें दिक्कत होने लगी और उनकी जान नहीं बच सकी।
दिल्ली युनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर साईंबाबा शारीरिक तौर पर 90 फीसदी तक विकलांग थे। साल 2014 में वह तब चर्चा में आए जब उनको माओवादी संगठनों से संबंध रखने के आरोप में गैरक़ानूनी गतिविधियां रोकथाम क़ानून (यूएपीए) के तहत साल गिरफ़्तार किया गया था। उन्हें अदालत ने उम्रक़ैद की सज़ा दी थी। उन्हें सात महीने पहले ही मार्च में उनको रिहा कर दिया था। तब वह नागपुर सेंट्रल जेल में बंद थे।
उनकी मृत्यु के बाद उन्हें देश भर के सोशल एक्टिविस्ट विदाई देते हुए याद कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सिद्धार्थ रामू जो साईंबाबा को अंतिम विदाई देने के लिए 14 अक्तूबर को खुद हैदराबाद में मौजूद थे, ने अपने इस क्रांतिकारी साथी को श्रद्धांजलि देते हुए जीएन साईबाबा को 21वीं सदी का भारत का महान शहीद कहा। उन्होंने लिखा-
जब इतिहास 21 सदी के भारत का मूल्यांकन करेगा, तो जीएन साईबाबा इतिहास के उन महान शहीदों में स्थान पाएंगे, जो भारतीय राजसत्ता के खिलाफ आदिवासियों, दलितों, मेहनतकशों, किसानों के पक्ष में खड़े होकर आजीवन संघर्ष करते रहे। आखिर भारतीय राजसत्ता ने उन्हें मौत के मुंह में ढ़केल दिया। भूमिहीन श्रमिक और दलित परिवार में जन्मा यह महान क्रांतिकारी शारीरिक तौर विकलांग होने पर भारतीय राजसत्ता के बड़ी चुनौती था। ऐतिहासिक चुनौती।
दिल्ली युनिवर्सिटी में ही एडहॉक पर एक दशक से ज्यादा समय तक असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाने वाले डॉ. लक्ष्मण यादव ने भी साईंबाबा को याद किया है। उन्होंने फेसबुक पर लिखा-
दिल्ली विश्वविद्यालय के पिछले डेढ़ दो दशक के अपने करियर में मैने जिन प्रोफेसरों की सबसे ज्यादा चर्चा सुनी, उनमें से एक शानदार प्रोफेसर थे जी.एन. साईबाबा। वह हमें अलविदा कह गए। प्रो. साईबाबा एक शानदार प्रोफेसर के साथ-साथ एक सोशल एक्टिविस्ट भी थे। वैसे तो वे शारीरिक रूप से 90% विकलांग थे, मगर देश के हुक्मरान उनसे इतना डरते थे कि उन्हें जेल में रखे हुए थे। जी हां, एक प्रोफेसर जेल में रहा। वह उन आरोपों की सजा काट रहे थे, जो कायदे से सिद्ध भी नहीं हो सके। आखिरी दिनों में भी उनके तेवर बरकरार थे। रीढ़ विहीन, चापलूस और दरबारी प्रोफेसरों की भीड़ के बीच एक रीढ़ वाला प्रोफेसर विदा हो गया। अलविदा प्रोफेसर!
वहीं वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने भी जी.एन. साईबाबा को याद किया। उन्होंने लिखा कि, प्रो. जी.एन साईंबाबा से कभी मिलना न हो सका, लेकिन पिछले कुछ सालों से उनके बारे में अक्सर कुछ न कुछ सुनने को मिलता रहा.. अद्भुत व्यक्तित्व, शरीर से लाचार पर चमत्कृत करने वाली प्रखरता! दमन और यातना का भयावह सिलसिला पर कैसा अटूट संकल्प, कितना मजबूत विचार और कैसी फौलादी प्रतिबद्घता! लगातार यातना सहने के कारण पहले से लाचार शरीर और बेहाल हुआ। पर विचार और प्रतिबद्घता पर आंच नहीं! आपके संघर्ष और शहादत को सलाम।
BBC को दिये जीएन साईंबाबा के इस इंटरव्यू को भी जरूर सुना जाना चाहिए
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