जालंधर। पंजाब के दलितों ने द्रविड़ आंदोलन आरंभ कर दिया है. जात-पात मिटाने के लिए दलित नाम के आगे राक्षस, अछूत जोड़ने के साथ-साथ रावण की पूजा करनी शुरू कर दी है. ईवी रामस्वामी यानी पेरियार ने 1925 में मद्रास में जो द्रविड़ आंदोलन या आत्मसम्मान आंदोलन शुरू किया था, वह काफी हद तक उत्तर भारत विरोधी और हिंदी विरोधी था. जातीय व्यवस्था और अंधविश्वास से लड़ाई की परख होने के बाद उत्तर भारत के दलित अब इस आंदोलन से जुड़ने लगे हैं. हालांकि पेरियार ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उनका द्रविड़ आंदोलन एक दिन भारत के बिल्कुल उत्तरी कोने में भी जगह बना लेगा.
एनबीटी की खबर के मुताबिक 90 से भी ज्यादा वर्षों के बाद अब पंजाब के कई दलितों ने द्रविड़ पहचान को स्वीकारना शुरू कर दिया है. यहां तक कि उनमें से कई पेरियार और या उनके दक्षिण भारत के आंदोलन के बारे में नहीं जानते हैं लेकिन उनका कहना है कि वह खुद को अलग तरह परिभाषित किए जाने की जरूरत महसूस करते हैं. पंजाब में सभी राज्यों की अपेक्षा दलितों का आंकड़ा सबसे अधिक 32 फीसदी है.
बता दें कि पंजाब में इस तरह एक पहचान बनाने का शुरुआती कदम करीब 50 साल पहले उठाया गया था लेकिन तब यह कुछ ही लोगों तक सीमित था. सुप्रीम कोर्ट के हालिया एसटी-एसटी ऐक्ट में संशोधन के फैसले को लेकर पंजाब में भी दलितों के बीच इस मुद्दे का आवाहन हुआ है. पंजाब के दलित अब द्रविड़ या अनार्य (नॉन-आर्य) के रूप में खुद की व्याख्या कर रहे हैं. उनमें से कई अब दैत्य, दानव, अछूत और यहां तक कि राक्षस तक अपने नाम के आगे लगा रहे हैं. यहां तक कि द्रविड़ को भी सरनेम के रूप में स्वीकार कर रहे हैं.
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