दलितों को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन का रवैया कितना जातिवादी है, यह हाल ही में तब सामने आ गया जब इस वर्ग से संबंधित एक योजना के लिए उत्तर प्रदेश प्रशासन को प्रदेश के 45 जिलों में एक भी योग्य परिवार नहीं मिला.
असल में यूपी के गांवों में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीब वर्ग के अनुसूचित जाति/जनजाति और अल्पसंख्यक वर्ग के परिवार को इस योजना का लाभ मिलता है. लेकिन प्रशासन की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी के जिलों में उन्हें एक भी योग्य उम्मीदवार नहीं मिला है. प्रदेश के 45 जिलों के जिलाधिकारियों ने 2016-17 और 2017-18 में आवंटित लक्ष्य को पूरा करने से हाथ खड़ा कर दिया है.
दरअसल प्रधानमंत्री आवास योजना में 2016-17 और 2017-18 में आवंटित आवास निर्माण के लक्ष्य में से 45 जिलों ने 62,780 अनुसूचित जाति, 259 अनुसूचित जनजाति और 1229 अल्पसंख्यक वर्ग के आवास सहित कुल 64,278 आवास निर्माण का लक्ष्य विभाग को दिया गया था. इस पर जिलाधिकारियों का तर्क है कि उनके जिलों के गांवों में लक्ष्य के अनुरूप आवेदक और पात्र नहीं मिल रहे हैं.
हालांकि इस बारे में बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री राम अचल राजभर का कहना है- ‘जिलाधिकारियों द्वारा अगर इस तरह की कोई रिपोर्ट जारी की गई है तो वह चौंकाने वाली है. पिछले दिनों एक रिपोर्ट आई थी कि प्रदेश के 29 जिलों में कुपोषण होने की बात कही गई थी. ऐसे में 45 जिलों में किसी गरीब दलित व्यक्ति का नहीं मिलना आश्चर्य की बात है.’
हालांकि केंद्र सरकार से आवास निर्माण की पहली किस्त की रकम जारी होने के कारण विभाग ने अब 64,278 आवास निर्माण की जिम्मेदारी 30 अन्य जिलों को दे दी है. इन जिलों में अमेठी, बागपत, बस्ती, चित्रकूट, एटा, इटावा, फैजाबाद, फर्रुखाबाद, गौतमबुद्ध नगर, हमीरपुर, सीतापुर और वाराणसी आदि जिलों को शामिल किया गया है.
दूसरी ओऱ जिलाधिकारियों की रिपोर्ट और मीडिया में खबर आने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया है. आरटीआई एक्टिविस्ट राजेश चौधरी ने इस मामले को लेकर राज्यपाल राम नाईक को चिट्ठी लिखी है. राजेश चौधरी का दावा है कि 45 जिलों के जिलाधिकारियों द्वारा जातिगत मानसिकता के कारण षड्यंत्र पूर्वक गुमराह करने वाले फर्जी आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं. इसकी वजह से अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभ से वंचित होना पड़ा है.
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