नई दिल्ली। राजस्थान में चुनाव की घोषणा के साथ हीं राज्य में सक्रिय दलित संगठन अपनी अनेक मांगों के साथ राज्य के सियासी दलों के पास पहुंचने जा रहे हैं. गुरुवार को दलित संगठनों ने समाज के इस वंचित समुदाय से जुड़े मुद्दों को लेकर एक ‘दलित घोषणा-पत्र’ को मीडिया के समक्ष जयपुर में जारी किया है. इस मांग-पत्र को वे राज्य की सियासत में सक्रिय सारे दलों को भेजकर अपनी चुनावी घोषणा-पत्र में शामिल करनें को कहेंगे.
10 पेज की इस घोषणा-पत्र को अखिल भारतीय दलित महिला अधिकार मंच ने तैयार किया है. इस घोषणा पत्र में दलित उत्थान और सरोकार से जुड़े सारे मुद्दों को शामिल किया गया है. दलितों से जुड़े सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक ,शैक्षणिक मुद्दों को लेकर तैयार किए गए इस मांग-पत्र के माध्यम से दलित समाज से जुड़े मुद्दे पर राजनीतिक दलों को अपना दृष्टिकोण भी बताना पड़ेगा.
फिलहाल चुनाव के पहले जारी इस दलित घोषणा पत्र के माध्यम से समाज के दलित समुदाय के अलावा घूमंतु समुदाय,आदिवासी और महिलाओं के अधिकार से जुड़े मांगों को भी शामिल किया गया है. इस घोषणा पत्र में छुआछुत को खत्म करना, एससी -एसटी एक्ट 1989 को पूरी तरह लागू करना, मैला उठाने के काम में लगे सफाईकर्मियों का पुर्नवास, डायन-प्रथा के खिलाफ सशक्त कानून और दलित समुदाय के लोगों को मुफ्त शिक्षा देने जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है.
दलित महिला अधिकार मंच की राजस्थान की समन्वयक सुमन देवथिया के अनुसार, ‘ इस बार सत्ता में आने वाला दल सरकार बनने के बाद उत्पीड़न के शिकार दलितों को आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराए. साथ हीं राजस्थान के जिन भागों से इस तरह के ज्यादातर मामलें सामने आते हैं, उन इलाकों को संवेदनशील घोषित किया जाए.’
देवथिया का यह भी कहना है कि, ‘सिर पर मैला ढोने की प्रथा को स्थायी रूप से समाप्त किया जाना चाहिए और इस काम में लगे सफाईकर्मियों का पुनर्वास भी किया जाना चाहिए. वहीं उनके पुर्नवास के लिए सरकार को आर्थिक सहायता के साथ स्थायी नौकरी भी देनी चाहिए.’
दलित समुदाय के इस घोषणा-पत्र में दलितों के लिए लागू राजस्थान सिलिंग एक्ट के तहत दलित समुदाय के लोगों को जमीन के समान वितरण की भी मांग की गई है. इसके अलावा दलित संगठनों ने राजनीतिक दलों से अनारक्षित सीटों पर दलित महिलाओं को चुनाव में टिकट देने की भी मांग की है.
वैसे राज्य की आबादी में 17 प्रतिशत वाले SC समुदाय को आए दिन जातिगत उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है. राजस्थान में 5 दलितों की डांगावास कांड में हुई हत्या, राज्य के कई इलाको में ऊंची जाति के लोगों का दलितों को शादी के वक्त घोड़ी पर ना चढ़ने देना जैसी घटनाएं सामने आती हो. लेकिन दलितों के साथ होने वाले अत्याचार के मामले,अब तक राजस्थान की राजनीति में चुनावी मुद्दा बन कर नहीं उभर सकी हैं.
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