Monday, January 20, 2025
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जयंती विशेषः पिछड़े समाज को रामस्वरूप वर्मा के नायकत्व से सीख लेनी चाहिए

Written By- दयानाथ निगम
देश का सबसे बड़ा सूबा है उत्तर प्रदेश। इस प्रदेश ने कई नायकों को जन्म दिया। यही वह प्रदेश है, जहां से पिछड़े समाज को जगाने वाले नायक बड़ी संख्या में निकले। राम स्वरूप वर्मा का नाम उसमें प्रमुखता से शामिल है। यूपी के कानपुर देहात के गौरी करन गाँव में 22 अगस्त 1923 को एक साधारण कुर्मी किसान परिवार में रामस्वरूप वर्मा का जन्म हुआ। माता पिता की इच्छा थी कि उनका बेटा उच्च शिक्षा ग्रहण करे, सो उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम०ए॰ और आगरा विश्विद्यालय से एल॰एल॰बी॰ की डिग्री प्राप्त की। यह उस समय की बात है जब ब्रिटिश हुकूमत के कारण शूद्रों और महिलाओं की शिक्षा का रास्ता प्रशस्त हो रहा था जिसका लाभ माननीय रामस्वरूप वर्मा को मिला। रामस्वरूप वर्मा की जयंती और परिनिर्वाण की तारीख चार दिनों के भीतर ही आती है। उनकी जयंती 22 अगस्त को होती है, जबकि परिनिर्वाण दिवस 19 अगस्त को होता है। इस नाते यह हफ्ता रामस्वरूप वर्मा जी के नाम होता है।

पढ़ाई पूरी करने के बाद उनके सामने तीन विकल्प थे। पहला विकल्प प्रशासनिक सेवा में जाना, दूसरा वकालत करना तथा तीसरा विकल्प था राजनीति के द्वारा मूलनिवासी बहुजनों व देश की सेवा करना। वर्मा जी ने आई॰ए॰एस॰ की लिखित परीक्षा भी उर्त्तीण कर ली थी किन्तु साक्षात्कार के पूर्व ही वे निर्णय ले चुके थे कि प्रशासनिक सेवा में रहकर वे ऐशो आराम की जिन्दगी तो व्यतीत कर सकते हैं पर मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए कुछ नहीं कर सकते।

मा॰ रामस्वरूप वर्मा में राजनैतिक चेतना का प्रार्दुभाव डॉ॰ अम्बेडकर के उस भाषण से हुआ, जिसे उन्होंने मद्रास के पार्क टाउन मैदान में 1944 में शिड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन द्वारा आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में दिया था। डॉ॰ अम्बेडकर ने कहा था, ‘तुम अपनी दीवारों पर जाकर लिख दो कि तुम्हें कल इस देश का शासक जमात बनना है जिसे आते जाते समय तुम्हें हमेशा याद रहे।’

माननीय रामस्वरूप वर्मा पर डॉ॰ अम्बेडकर के उस भाषण का भी बहुत ही प्रभाव पड़ा जिसे उन्होंने 25 अप्रैल 1948 को बेगम हजरत महल पार्क में दिया था। डॉ॰ अम्बेडकर ने कहा था, ‘जिस दिन अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग एक मंच पर होंगे उस दिन वे सरदार बल्लभ भाई पटेल और पंडित जवाहर लाल नेहरू का स्थान ग्रहण कर सकते हैं।’ यही वजह रही कि एस॰सी॰, एस॰टी॰ एवं ओ॰बी॰सी॰ के बीच सामाजिक चेतना और जागृति पैदा करने के लिए उन्होंने 1 जून 1968 को सामाजिक संगठन ‘अर्जक संघ’ की स्थापना की।

मेरे लिये महामना रामस्वरूप वर्मा जी का नाम लेना अक्सर भावुक कर जाता है। आज सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मेरी जो भी पहचान बनी है, उसका श्रेय महामना रामस्वरूप वर्मा जी को ही जाता है. मेरे सामाजिक जीवन के प्रारम्भ का किस्सा भी शानदार है। मुझे वर्मा जी द्वारा संपादित साप्ताहिक वैचारिक पत्र ‘‘अर्जक’’ एक गाँव में गोबर (खाद) के गढ्ढे में दिखा। मैंने उसे उठाया और किसी तरह से उसमें मिट्टी गोबर को साफ कर लेकर चल दिया। उसको पढ़ने के बाद सम्पादक/प्रकाशक का ढूंढ़ा तो लिखा था- रामस्वरूप वर्मा, बंगला नं. 3, दारूल सफा, लखनऊ। सामाचार पत्र पढ़ते-पढ़ते मेरे मन में आया कि अर्जक के सम्पादक/प्रकाशक से मिलना चाहिए। तब तक मैं कभी लखनऊ नहीं आया था। लेकिन वर्मा जी से मिलने की उत्सुकता इतनी ज्यादा थी कि मैं खुद को रोक न पाया।
अपने गांव तमकुहीराज जो उस समय देवरिया जनपद के अंतर्गत (अब कुशीनगर) आता था, से लखनऊ जंक्शन के लिये 13 रूपये का टिकट लेकर निकल पड़ा। वह 1972 का साल था। बंगला नं. 3 दारूल सफा, जो कि वर्मा जी का निवास था, वहाँ पहुंच कर अपना परिचय दिया। जिला-जवार के बारे में बताया। वर्मा जी ने मेरा हाथ पकड़ा तो शरीर बुखार से तप रहा था। मेरी हालत देख वर्माजी ने मुझे अपने बिस्तर पर ही सोने के लिये कहा। मेरे कपड़े बेहद गन्दे थे और उनका बिस्तक एकदम साथ, ऐसे में मैं उस पर सोने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। लेकिन वर्माजी बार-बार मुझे बिस्तर पर सोने के लिये निर्देशित करते रहे। उनके दबाव के बाद मैं बिस्तर पर लेट तो गया परन्तु हमारी हिम्मत हार रही थी। इस बीच दो घण्टे के बाद वर्मा जी द्वारा प्रदत्त होमियो दवा के चलते मैं बुखार से मुक्त हो गया था। इस तरह मैं इस महान हस्ती के संपर्क में आया और उनके द्वारा स्थापित सामाजिक संगठन अर्जक संघ से जुड़ गया। मुझे अर्जक संघ जनपद देवरिया का जिला मंत्री का कार्यभार मिल गया। उनके सानिध्य में रहते हुए मैंने लंबे समय तक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया।
महामना रामस्वरूप वर्मा जी ने सामाजिक परिवर्तन के लिये तमाम विचार प्रदान किये हैं। कुछ यूं है-
‘‘जिसमें समता की चाह नहीं वह बढ़िया इन्सान नही’’
‘‘मानववाद की क्या पहचान ब्राह्मण-भंगी एक समान’’

इस तरह के नारे देकर उन्होंने समाज में ज्योति जलाई। महामना वर्मा जी ने वैचारिक क्रांति के लिये वैचारिक पुस्तकों का प्रकाशन किया। इसमें क्रांति क्यों और कैसे, ब्राह्मण महिमा क्यों और कैसे? ‘‘मानवतावाद बनाम ब्राह्मणवाद’’, ‘‘मनुस्मृति राष्ट्र का कलंक’’ आदि पुस्तकें शामिल हैं।
माननीय रामस्वरूप वर्मा सम्पूर्ण क्रांति के पक्षधर थे। उनकी सम्पूर्ण क्रांति में भ्रांति का कोई स्थान नहीं था। वर्मा जी के अनुसार, जीवन के चार क्षेत्र होते हैं। राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक। उनका मानना था कि इन चारों क्षेत्रों में गैरबराबरी समाप्त करके ही हम सच्ची और वास्तविक क्रान्ति निरूपित कर सकते हैं। रामस्वरूप वर्मा निःसन्देह डॉ॰ राम मनोहर लोहिया के राजनैतिक दल संसोपा से जुड़े थे, किन्तु लोहिया जी के साथ वर्मा जी का वैचारिक मतभेद था। लोहिया गान्धीवादी थे, वर्मा जी अम्बेडकरवादी। लोहिया के आर्दश मर्यादा पुरूषोत्तम राम और मोहन दास करमचन्द गांधी थे, जबकि रामस्वरूप वर्मा के आदर्श भगवान बुद्ध, फूले, अम्बेडकर और पेरियार थे।

रामस्वरूप वर्मा संसोपा से सन् 1957 में कानपुर के रामपुर क्षेत्र से चुनाव लड़े और विधान सभा के सदस्य चुने गये। इसके बाद 1967, 1969,1980,1989, और 1991 में सदस्य विधान सभा के चुनाव में विजयी रहे। माननीय वर्मा जी के तर्क के सामने विधान सभा में शासक जातियों की घिग्घी बंध जाती थी। सन 1967 की संबिदा सरकार में वर्मा जी डॉ॰ लोहिया की पार्टी संसोपा से जीतकर उ॰प्र॰ विधान सभा में पहुंचे। चौधरी चरण सिंह के मन्त्रीमण्डल के वह वित्त मन्त्री बनाये गये, जहां उन्होंने मुनाफे का बजट पेश किया। वर्मा जी ने उ॰प्र॰ विधानसभा में सभी धार्मिक स्थलों को सरकार के अधीन करने का बिल पेश किया। सवर्णों ने बिल का विरोध किया कि ऐसा करने से साम्प्रदायिकता बढ़ेगी। वर्मा जी ने उन्हें उत्तर देते हुए कहा,
“इस बिल में तो यह है कि जितने पूजा स्थल हैं उनको सरकार अपने नियन्त्रण में ले और हर पूजा स्थल पर जो चढ़ावा चढ़ेगा वह सरकार को मिलेगा। पुजारी रखने के बाद जो बचता है वह धर्म हित कार्यों में खर्च किया जाये। इसमें साम्प्रदायिकता लेश मात्र भी नहीं हैं।”
रामस्वरूप वर्मा के तर्क सुनकर उनके विरोधी भी बंगले झांकने लगते थे। इतना ही नहीं वर्मा जी ने उत्तर प्रदेश के सरकारी और गैरसरकारी पुस्तकालयों में बाबासाहब डॉ॰ अम्बेडकर का साहित्य रखवाया, जिसके कारण मूलनिवासी बहुजनों में स्वाभिमान जागने लगा। तत्पश्चात शासक जातियों ने बाबासाहब द्वारा लिखित- ‘जातिभेद का उच्छेद’ और ‘धर्म परिवर्तन करें’ दोनों पुस्तकों को जप्त करने का आदेश जारी कर दिया। इसकी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद ललई सिंह यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से दोनों पुस्तकों को बहाल करवाया। इतना ही नहीं उन्होंने उ॰प्र॰ सरकार पर मानहानि का मुकदमा दायर कर उ॰प्र॰ सरकार से पूरे मुकदमे का हर्जाना और खर्चा भी वसूल किया।
उनसे जुड़ा एक संस्मरण मुझे अक्सर भावुक बना देता है। लखनऊ में एक प्रदेश स्तरीय बैठक आयोजित किया गया था। उस बैठक में मैं उपस्थित नहीं हो सका क्योंकि उसी दौरान मैं पिता बनने वाला था और मेरी पत्नी अस्पताल में भर्ती थी। बैठक में अनुपस्थिति के कारण मेरे बारे में महामना वर्मा जी ने जानना चाहा तब मैंने उन्हें बच्चे की बता बताई। मा. वर्मा जी ने यह सुनते ही तत्काल कहा “क्रांति पैदा हो गया.” इस तरह मेरे प्रथम पुत्र का नाम क्रांति कुमार, मा. वर्मा जी का दिया हुआ नाम है।
महामना रामस्वरूप वर्मा जी ने बाबा साहब डॉ. आम्बेडकर के विचारों को प्रसारित करने का महान योगदान है ‘‘विचारों पर ताला और मूर्तियों पर माला’’ की चर्चा करते हुये बाबा साहब के विचारों को जन-जन तक ले जाने का प्रयास किया। वर्मा जी ने नारा दिया था, ‘मारेंगे मर जायेंगे हिन्दू नहीं कहलायेंगे।’ ब्राह्मणवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने में रामस्वरूप वर्मा आजीवन संघर्ष करते रहे। लोहिया से वैचारिक मतभेद के कारण बाद के दिनों में उन्होंने संसोपा से अलविदा कर मूलनिवासी बहुजन समाज के शुभ चिन्तकों चौ॰ महाराज सिंह भारती, बाबू जगदेव प्रसाद, प्रो॰ जयराम प्रसाद सिंह, लक्ष्मण चौधरी, नन्द किशोर सिंह से सम्पर्क कर 7 अगस्त 1972 को शोषित समाज दल की स्थापना की और नारा दिया-
”देश का शासन नब्बे पर नहीं चलेगा नहीं चलेगा।
सौ में नब्बे शोषित हैं नब्बे भाग हमारा है।“
शोषितों का राज, शोषितों के लिए शोषितों के द्वारा होगा।

Video- मनुवाद को धूल चटाने वाले नायक थे रामस्वरूप वर्मा

मा॰ रामस्वरूप वर्मा का मानना था सामाजिक चेतना से ही सामाजिक परिवर्तन होगा और सामाजिक परिवर्तन के बगैर राजनैतिक परिवर्तन सम्भव नहीं। अगर येन केन प्रकारेण राजनैतिक परिवर्तन हो भी गया तो वह ज्यादा दिनों तक टिकने वाला नहीं होगा। रामस्वरूप वर्मा सामाजिक सुधार के पक्षधर नहीं थे। वे सामाजिक परिवर्तन चाहते थे। वे हमेशा समझाया करते थे जिस प्रकार दूध से भरे टब में यदि पोटेशियम साइनाइट का टुकड़ा पड़ जाये तो उस टुकड़े को दूध के टब से निकालने के बाद भी दूध का प्रयोग करना जानलेवा होगा। इसलिए ब्राह्मणवादी मूल्यों में सुधार की कोई गुंजाइश नही हैं। ब्राह्मणवाद सुधारा नहीं जा सकता बल्कि नकारा ही जा सकता है। माननीय रामस्वरूप वर्मा ने कभी भी सिद्धांतो से समझौता नहीं किया।
रामस्वरूप वर्मा ने बाबासाहब डॉ. आम्बेडकर की तरह 22 प्रतिज्ञाओं के साथ बौद्ध धर्म तो स्वीकार नहीं किया लेकिन उन्होंने विवाह संस्कार, यशाकायी दिवस, त्यौहार आदि को लेकर समाज में अपनी अर्जक पद्धति विकसित की। जैसे एक जून अर्जक संघ स्थापना दिवस को समता दिवस, बाबासाहब डॉ. आम्बेडकर जन्म दिवस 14 अप्रैल को चेतना दिवस, तथागत बुद्ध जयंती को मानवता दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। रामस्वरूप वर्मा ने अर्जक संघ के कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया कि पूरे देश में जहां-जहां अर्जक संघ के कार्यकर्ता हैं वे बाबासाहब डॉ॰ अम्बेडकर के जन्मदिन के दिन मूलनिवासी बहुजनों को जगाने के लिए 14 अप्रैल से 30 अप्रैल तक पूरे महीने रामायण और मनुस्मृति का दहन करें। अर्जक संघ के कार्यकर्ताओं ने रामस्वरूप वर्मा के आदेशों का पालन करते हुए रामायण और मनुस्मृति को घोषणा के साथ जलाया। उन्होंने वैवाहिक संस्कार की भी पद्धति बनाकर अपनी संस्कृति स्थापित की। उन्होंने ताउम्र अपने सिद्धांतों की राजनीति की। 19 अगस्त 1998 को उनका परिनिर्वाण हो गया।


  • लेखक दयानाथ निगम उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से प्रकाशित “अम्बेडकर इन इंडिया” मासिक पत्रिका के संपादक हैं।
    संपर्क- 9450469420

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