दलितों के हितों को लेकर मोदी सरकार और उसके मंत्री कितने गैरजिम्मेदार हैं, यह हाल ही में देखने तब देखने को आया, जब मैनुअल स्केवेंजिंग को लेकर राज्यसभा में एक सवाल पूछा गया। 28 जुलाई को राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह सवाल पूछा था कि बीते पांच साल में हाथ से नाले की सफाई के दौरान कितनी मौते हुई हैं? जिसके जवाब में मोदी सरकार में सामाजिक न्याय राज्यमंत्री रामदास आठवले ने ऐसी किसी मौत से साफ इंकार कर दिया। अठावले ने कहा कि बीते पांच वर्षों में मैनुअल स्केवेंजिंग से किसी की मौत का मामला सामने नहीं आया है।
लेकिन यहां यह दिलचस्प है कि इसी साल फरवरी में बजट सत्र के दौरान लोकसभा में एक लिखित जवाब में मोदी सरकार के मंत्री रामदास आठवले ने ही बीते पांच साल में सेप्टिक टैंक और सीवर साफ़ करने के दौरान 340 लोगों की मौत की बात कही थी। अठावले ने जो डेटा दिया था, वह 31 दिसंबर, 2020 तक का था। तो यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर मोदी सरकार का कोई मंत्री एक ही सवाल का दो अलग वक्त पर अलग-अलग जवाब कैसे दे सकता है?
दलितों के हितों को लेकर मोदी सरकार की अनदेखी का भांडाफोड़ उस रिपोर्ट से भी होता है, जिसे साल 2020 में सरकार की ही संस्था राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग ने जारी किया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 2010 से लेकर मार्च 2020 तक यानी 10 साल के भीतर 631 लोगों की मौत सेप्टिक टैंक और सीवर साफ़ करने के दौरान हो गई। तो आखिर अब मोदी सरकार के मंत्री मैनुअल स्केवेंजिंग के कारण हुई मौतों की बात से कैसे और क्यों इंकार कर रहे हैं??
यहां यह समझना होगा कि साल 2013 में मैनुअल स्केवेंजिंग यानी हाथ से मैला उठाने को लेकर नियोजन प्रतिषेध और पुनर्वास अधिनियम लाया गया था और इस पर पूरी तरह रोक लगाते हुए इसे गैरकानूनी कहा गया था। यहां सरकार ने ‘मैनुअल स्केवेंजर’ की परिभाषा तय की थी। इस परिभाषा के मुताबिक- “ऐसा व्यक्ति जिससे स्थानीय प्राधिकरी हाथों से मैला ढुलवाए, साफ़ कराए, ऐसी खुली नालियां या गड्ढे जिसमें किसी भी तरह से इंसानों का मल-मूत्र इकट्ठा होता हो उसे हाथों से साफ़ कराए तो वो शख़्स ‘मैनुअल स्केवेंजर‘ कहलाएगा।”
नियम के मुताबिक, इस अधिनियम के लागू होने के बाद कोई स्थानीय अधिकारी या कोई अन्य व्यक्ति किसी भी शख़्स को सेप्टिक टैंक या सीवर में ‘जोख़िम भरी सफ़ाई’ करने का काम नहीं दे सकता है। लेकिन यह सब महज सरकारी कागजों की बात है। जमीनी सच्चाई यह है कि देश में हर रोज सफाई कर्मचारी सीवर में बिना किसी सुरक्षा के उतर रहे हैं, और उनमें से कई अपनी जान गंवा रहे हैं। सिर्फ़ इस साल अब तक 26 लोगों की मौत हो चुकी है’।
सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेज़वाड़ा विल्सन का दावा है कि इन पांच सालों में सफ़ाई करने के दौरान 472 सफ़ाईकर्मियों की मौत हुई है। इस बारे में बीबीसी को दिये अपने बयान में विल्सन ने कहा- “सोचिए, लोग मर रहे हैं और कैसे एक मंत्री संसद में ये कह रहे हैं कि कोई मौत ही नहीं हुई है। सरकार तो ये भी कह रही है कि ऑक्सीज़न की कमी से देश में लोग नहीं मरे तो क्या हम जो देख रहे हैं या देखा है सबकी पुष्टि सरकार के बयानों से होगी? यह सबसे आसान तरीका है कि कह दो कि कोई डेटा ही नहीं है और सवालों और परेशानियों से बच जाओ क्योंकि अगर आपने डेटा दिया तो आपसे और सवाल पूछे जाएंगे और अगर डेटा सही नहीं हुआ तो लोग सवाल उठाएंगे।”
ऐसे में जब मोदी सरकार मैनुअल स्केवेंजिंग से हुई मौतों को नकार रही है, जमीनी हकीकत यह है कि मैनुअल स्केवेंजर्स की संख्या घटने की बजाए, लगातार बढ़ रही है। और यह खुद सरकारी आंकड़ें चीख-चीख कर कह रहे हैं। साल 2019 में आई नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2013 में जब मैनुअल स्केवेंजिंग रोकने के लिए क़ानून लाया गया था तो उस वक्त देश में 14 हज़ार से अधिक ऐसे सफ़ाईकर्मी थे जिन्हें मैनुअल स्केवेंजर की श्रेणी में रखा गया था। 2018 के सर्वे में ये संख्या बढ़कर 39 हज़ार पार कर गई और साल 2019 में ये बढ़ कर 54 हज़ार से ऊपर हो गई। वर्तमान में ऐसे लोगों की संख्या 66 हज़ार से अधिक है। अकेले उत्तर प्रदेश में हाथ से मैला उठाने वालों की संख्या 37 हज़ार से ज्यादा है। तो सदन में मैनुअल स्केवेंजिग से हुई मौतों की संख्या जीरो बताने वाले रामदास अठावले के गृहराज्य महाराष्ट्र में 7300 लोग यह काम करते हैं।
तो क्या अब भारत की सरकार, खासकर मोदी सरकार ऐसे ही काम करेगी। मौत चाहे ऑक्सीजन की कमी से हो, या फिर सीवर में उतरने से हो, क्या सरकार ने यह तय कर लिया है कि वह हर आंकड़े को बेशर्मी से झुठला कर उससे पल्ला झाड़ लेगी, चाहे देश की जनता जान गंवाती रहे। क्या सच को नकार करो विश्वगुरू बनने का खोखला दावा करना ही सरकार का काम रह गया है?

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।