नई दिल्ली। कर्नाटक में भाजपा सभी दलों को पछाड़ कर आगे निकल चुकी है. तो वहीं चुनाव में कांग्रेस की करारी हार भी चर्चा का विषय है. कर्नाटक में कांग्रेस के हार की बड़ी वजह जेडीएस और बसपा के साथ गठबंधन न करना रहा. इन दोनों को नजरअंदाज करना कांग्रेस को भारी पर गया है. कर्नाटक में19 फीसदी दलित मतदाता हैं. जबकि जेडीएस का मूल वोटबैंक वोक्कालिगा समुदाय कुल मतदाताओं का करीब 13 फीसदी है. जेडीएस नेता देवगौड़ा इसी समुदाय से आते हैं. कांग्रेस का जेडीएस के साथ गठबंधन न करने के चलते इन दोनों वोट बैंकों में बिखराव हुआ, जबकि वहीं बीजेपी का मूल वोटबैंक एकमुश्त रहा, और उसमें किसी तरह की कोई सेंधमारी नहीं हो सकी.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस, जेडीएस और बसपा मिलकर एक साथ कर्नाटक में चुनावी रण में उतरते तो नतीजे कुछ और होते. जैसे कि बसपा से गठबंधन का फायदा कुमारस्वामी की पार्टी जेडीएस को मिला. जेडीएस को उम्मीदों से ज्यादा सीटों की बढ़त इस बात का संकेत हैं कि दलित वोट कांग्रेस को नहीं मिले हैं, बल्कि बसपा से गठबंधन के कारण वो जेडीएस के साथ गया है. वहीं दूसरी ओर कर्नाटक में कांग्रेस उम्मीदवार कई सीटों पर बहुत कम वोटों से पीछे रहे.
कांग्रेस का जेडीएस और बसपा से गठबंधन नहीं करने के पीछे कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की जिद थी. तो वहीं अकेले लड़ने के नुकसान के अलावा कांग्रेस बेहतर ढंग से चुनावी प्रबंधन भी नहीं कर पाई. कांग्रेस ने ऐसी ही गलती त्रिपुरा में दोहराई थी. कांग्रेस वहां लेफ्ट के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतर सकती थी, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी.
जबकि भाजपा तमाम प्रदेशों में पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को जोड़ने के साथ-साथ नए उत्साह को भी संभालने में सफल रही है. भाजपा ने ताकतवर होने के बावजूद अपनी जीत को पक्का करने के लिए जहां भी जरूरत हुई गठबंधन का सहारा लिया. तो वहीं कमजोर होने के बावजूद कांग्रेस एकला चलो की राह पर चलती रही. जिसने कांग्रेस के साथ से अब कर्नाटक को भी छीन लिया है.
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