नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में प्रदूषण को लेकर जारी रिपोर्ट डराने वाली है. डब्ल्यू एच ओ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत में हैं. इन शहरों में रहना किसी भी हालत में बीमारियों के लिहाज से सुरक्षित नहीं है.
डब्ल्यूएचओ ने देश के 122 शहरों में हवा की शुद्धता आंकी है. अब अगर वायु शुद्धता के मानकों की बात करें तो देश का कोई भी शहर इस मानक के आस-पास नहीं ठहरता. बल्कि वायु प्रदूषण की स्थिति खतरनाक स्तर से भी 10-12 गुना ज्यादा है. ये स्थिति हमें थोक के भावों में बीमारियां सौगात में देती है.
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2016 में वायु प्रदूषण से पैदा हुई बीमारियों से दुनियाभर में 42 लाख लोगों की मौत हुई है, इसमें से 90 फीसदी भारत के शहर हैं. हालात इतने खराब है कि पर्यावरणविदों का कहना है कि, अगर आपके पास कहीं और रहने का विकल्प हो तो आपको अपने बच्चों दिल्ली और बड़े शहरों में मत पालें.
आंकड़े कहते हैं कि भारत में तीस लाख से ज्यादा मौतें प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से हो रही हैं. वर्ष 2012 के आंकड़ों के अनुसार हर एक लाख की आबादी पर 159 लोग उन बीमारियों से ग्रस्त होकर मौत के शिकार हो जाते हैं, जो हवा के जहरीले तत्वों के संपर्क में आते हैं. वर्ष 2010 की रिपोर्ट कहती है कि वायु प्रदूषण से जनित बीमारियां देश की पांचवीं बड़ी किलर बन गई हैं.
दिल्ली और देश के ज्यादातर बड़े शहरों में वर्ष 1991 की तुलना में अब तक प्रदूषण दोगुना से तिगुना हो चुका है. हवा में मौजूद सल्फेट, नाइट्रेट और ब्लैक कार्बन की ज्यादा मात्रा हवा को लगातार जहरीली बना रही है. इसका कारण कार और ट्रकों का ट्रैफिक, कारखाने, पावर प्लांट्स, भवन निर्माण और खेतों की आग है.
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