आरक्षण एक गंभीर विषय है. आरक्षण के संबंध में लोगों की गलत धारणा को दूर करने के लिए इसका पोस्टमार्टम करना जरूरी है.
आरक्षण अवसर की समानता का मामला है. आरक्षण प्रतिनिधित्व का मामला है . आरक्षण भागीदारी का मामला है. आरक्षण कोई योग्यता का मामला नही है. आरक्षण कोई भीख नहीं है. आरक्षण विशेषाधिकार के बदले (In place of) मिला एक छोटा सा अधिकार है.
24 सितंबर 1932 को यरवदा सेंट्रल जेल में गांधी टीम और डॉ.भीमराव अंबेडकर के बीच हुए समझौते का मामला है. तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने डॉ अंबेडकर को कम्युनल अवार्ड (सांप्रदायिक पंचाट) के माध्यम से चार प्रकार के विशेषाधिकार प्रदान किए थे.-
1. राइट ऑफ एडल्ट फ्रेंचाइजी
2. राइट ऑफ डुवल वोट
3. राइट ऑफ सेपरेट सेटलमेंट
4. राइट ऑफ सेपरेट इलेक्टोरल
इन चार प्रकार के विशेषाधिकारों के बदले (In place of) गांधी एंड टीम ने डॉ आंबेडकर को सामाजिक, शैक्षिक एवं आर्थिक बराबरी के लिए यह (आरक्षण )देने का वादा किया था कि हम आने वाले 10 वर्षों में इस देश के दबे कुचले पिछड़े समाज को देश की मुख्यधारा में सम्मिलित कर देंगें. उन्हें बराबर कर देंगें.
आज आजादी के 70 साल से भी अधिक का समय बीत रहा है . लेकिन दबे कुचले पिछड़े समाज की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति जस की तस बनी हुई है . गांधी एंड टीम के द्वारा किये गये वादे को गांधी एंड टीम की संतानों ने पूरा नही किया . गांधी एंड टीम के लोगों ने पूना समझौते में हुए डॉ अंबेडकर के साथ अपने वादे से मुकर कर अंबेडकर और अंबेडकर के लोगों के साथ धोखा किया है.
आरक्षण को देश की सामाजिक, शैक्षिक ,आर्थिक और राजनीतिक समानता के लिए एक हथियार बनाया गया था . इसके माध्यम से देश में समता, ममता, भाईचारा और न्याय स्थापित होगा. देश की संपूर्ण संपदा पर सबका बराबर हक और अधिकार होगा. यह मानक निर्धारित किया गया था.
आज आरक्षण को बहुत ही संकुचित नजरिए से देखा जा रहा है, जो कि सर्वथा गलत है. आरक्षण योग्यता का मामला नही है. आरक्षण कोई भीख और खैरात नही है . आरक्षण अवसर की समानता और प्रतिनिधित्व का मामला है .
आरक्षण कोई नया मामला नहीं है .आरक्षण वैदिक काल से चली आ रही व्यवस्था है.
जिस तरह से एक व्यक्ति की दो संताने हैं, तो पिता की संपूर्ण संपत्ति में दोनों संतानों का बराबर हक और अधिकार है . ऐसा नही है कि एक संतान अधिक योग्य है तो उसे तीन चौथाई हिस्सा दे दिया जाए और एक संतान कम योग्य है तो उसे केवल एक चौथाई हिस्सा ही दे कर समझा बुझा दिया जाए. पिता की संपत्ति में दोनों संतानों का बराबर का हिस्सा है . यही न्याय संगत है और यही तर्कसंगत भी है.
जिस तरह व्यक्ति के शरीर में दो पैर हैं . एक पैर में जूता पहनाया जाए दूसरे में नही. एक में पायल पहनाई जाए दूसरे में नही . एक हाथ में कंगन पहनाई जाए दूसरे में नही . एक आंख में काजल लगाया जाए दूसरे में नही . चश्मे में एक शीशा लगाया जाए दूसरे में नही, तो अटपटा लगेगा. बुरा लगेगा. भद्दा लगेगा. जब तक दोनों पैरों में जूते नहीं होंगें. दोनों पैरों में पायल नही होगी . दोनों हाथों में कंगन नही होगा. दोनों आंखों में काजल नही होगा . चश्मे में दोनों शीशा नही होगा . शोभा नही देगा. उसी प्रकार देश का संपूर्ण विकास तब तक नही होगा, जब तक हर व्यक्ति का, हर समाज का विकास नहीं होता है.
जिस प्रकार एक असमतल जमीन में अच्छी फसल नही पैदा हो सकती है, उसी प्रकार असमान देश कभी विकास और तरक्की नही कर सकता है. जहां पर ऊंची जमीन होगी, वहां पानी नही पहुंचेगा और फसल सूख जाएगी. जहां जमीन नीची होगी वहां पानी अधिक रुकेगा और फसल सड़ जाएगी. वही हाल समाज और देश का है . समाज और देश को प्रगति के पथ पर ले जाना है तो समता, ममता, न्याय और भाईचारे का माहौल बनाना होगा.
जो देश समता, ममता, न्याय और भाईचारे के अनुसार चल रहे हैं वे निरंतर आगे बढ़ रहे हैं . जो देश इसके खिलाफ हैं वे निरंतर पतन की ओर जा रहे हैं . यही वजह है कि आजादी के 70 सालों में भारत देश विकसित होने के बजाय विकास सील से भी नीचे जा रहा है.
वर्ष 1945 में जापान में परमाणु बम से हमला हुआ था . जापान पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था. परमाणु बम का असर आज भी जापान में दिखाई देता है. नागासाकी हिरोशिमा में अभी भी बच्चे अपंग और अपाहिज पैदा होते हैं . लेकिन उसके बावजूद भी जापान आज विश्व के विकसित देशों में शुमार होता है . वहीं भारत 1947 में अंग्रेजों से आज़ाद होता है. आजाद होने के बावजूद भी सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, आर्थिक रूप से बहुत ही पिछड़ा है . भारत आज विकासशील देशों की श्रेणी से भी हट गया है . दुनिया के 100 विश्वविद्यालयों में भारत का कोई भी विश्वविद्यालय नही सम्मिलित है.
सेना में कोई आरक्षण नहीं है . उसके बावजूद भी चीन कई किलोमीटर भारत पर कब्जा कर चुका है. पाकिस्तान आए दिन हमला करके हमारे सैनिकों को मार गिराता है . बांग्लादेश घुसपैठ कर जाता है . श्रीलंका से घुसपैठिए आ जाते हैं. जो लोग यह कहते हैं कि आरक्षण से अयोग्य लोग आ जाते हैं तो सेना में तो कोई आरक्षण नहीं है फिर ऐसा क्यों हो रहा है.
खेलों में कोई आरक्षण नही है . भारत विश्वकप फुटबाल कभी नही जीत पाया है . ओलंपिक खेलों में भारत कभी भी शीर्ष पर नही रहा है. टेनिस के चारों ग्रैंड स्लैम कभी नही जीत पाया है. आदि आदि.
न्यायपालिका में कोई आरक्षण नही है , उसके बावजूद भी लाखों की संख्या में मामले लंबित क्यों हैं. अपराध कम क्यों नहीं हो रहे हैं. लोगों को समय पर न्याय क्यों नहीं मिल पा रहा है. आदि आदि.
राजनीतिक आरक्षण जो केवल 10 वर्षों के लिए निर्धारित किया गया था . उसे हर 10 साल बाद क्यों बढ़ा दिया जाता है. इस राजनैतिक आरक्षण के खिलाफ शायद ही कोई बयान देता हो लेकिन सामाजिक शैक्षिक आर्थिक समानता के लिए किए गए वादे वाले आरक्षण के खिलाफ सभी लोग अनाप-शनाप बयान देते रहते हैं.
जब तक देश में जातियां हैं . आरक्षण को खत्म नहीं किया जा सकता है. जातियां खत्म कर दीजिए आरक्षण अपने आप खत्म हो जाएगा. अगर समाप्त करना ही है तो आरक्षण नही जातियां खत्म करिये.
सुनील दत्त
(प्रवक्ता )भूगोल एवं सामाजिक चिंतक,
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