भारतीय समाज एक सूखा जंगल है और जो भी चाहे धर्म और आग के गोले को फेंक कर आग लगा दे। ताजा उदाहरण मणिपुर का लिया जा सकता है। इम्फाल वैली में कभी भी इस तरह का नही हुआ कि एक विशेष वर्ग – कुकी को निशाना बनाया गया हो। 2001 में ग्रेटर नागा बनाने पर भी ऐसा नही हुआ जबकि सीएम हाउस और विधान सभा को जला दिया गया। झगड़ा मेइती और कुकी के बीच कराया गया। 15 वीं शताब्दी के अंत में हिंदू धर्म ने मैतेई साम्राज्य में प्रवेश किया। वैष्णव भिक्षुओं और बंगाल के अनुयायियों ने इनका हिंदूकरण किया। कहा जा रहा है कि मणिपुर में आरएसएस व बजरंग दल ने असली पहचान छुपाकर दो संगठन – अरंबाई तेंगगोल और दूसरा मेइती लीपुन खड़े किए। ये काले कपड़े में बंदूकों के साथ बाइक पर सैकड़ों के समूह में चर्चों को जलाए और आदिवासियों को लूटा। वहां के निवासी हैरान हैं कि ये लोग कहां से आए और इतना क्रूर और संगठित कैसे बन सके? ज़ाहिर सी बात है कि धार्मिक कट्टरता किसी ने तो पैदा की। बीजेपी की सरकार हो तो कौन सा मुश्किल है। आरोप लग रहा है कि आरएसएस ने वहां कि रणनीति बहुत पहले बनाई थी और अपना पारंपरिक भेष भूसा या चोला न धारण कर, उसका प्रकार बदल कर कट्टरता पैदा किया। वर्षो पहले से तैयारी चल रही थी और अब जाकर कामयाबी मिली। नॉर्थ ईस्ट राज्यों में ईसाइयत का प्रभाव है । बजरंग दल और आरएसएस ने वहां के हिसाब से रणनीति बनाकर उनसे घुले मिले और हिन्दुत्व का एजेंडा तैयार कर दिया। केंद्र में जिसकी सत्ता होती है उत्तर पूर्वी राज्य उनके साथ प्रायः हो जाते हैं और 2014 के बाद शासन और प्रशासन में इनकी पकड़ बन गई तो अपने उद्देश्य में कामयाब हो गए।
हरियाणा में जब जाटों ने आरक्षण के लिए आंदोलन किए तो कुछ तोड़ फोड़ भी हुआ। अवसर का फायदा उठाकर बीजेपी में प्रचारित किया कि जाट सभी जातियों के साथ अन्याय करते हैं और इसकी दशा ही बदल दिया। छत्तीस जाति बनाम जाट कर दिया और आराम से चुनाव जीत गए। जाति आग का गोला है और एक दूसरे के विरूद्ध खड़ा करने की क्षमता या षड्यंत्र करना आता है तो जाति वर्षों साथ लगी रहती । धर्म से कहीं ज्यादा जाति की भावना मज़बूत है बशर्ते खिलाड़ी चालाक हो। शोषित जातियां सम्मान और अधिकार के लिए एक जुट तो होती हैं लेकिन ज्यादातर का हश्र व्यक्ति पूजा तक सीमित हो जाता है। कुछ मामलों में सशक्तिकरण भी हुआ है। जाति व्यवस्था एक बीमा कंपनी की तरह है जो बिना किस्त चुकाए बहुत सारे लाभ पक्के हैं। शादी – विवाह, लेन – देन, मुसीबत में काम आ जाना, बिना कुछ लौटाए वोट पक्का, काम धंधा में मदद आदि। इतने लाभ बिना किस्त के कहां मिलता है। जो जातिवाद नही करते उनको भी जाति का लाभ मिलता है। उनका व्यवहार भले जातिवादी नही हैं और कथित उच्च जाति से आते हैं लेकिन वो क्षति पहुंचाते हैं। कुछ कथित सवर्ण जाति के लोग महसूस करते हैं और जान-बूझकर जंतर-मंतर पर पहलवान न्याय के लिए धरना दे रहे हैं लेकिन सरकार पर असर नही पड़ा। सुप्रीम कोर्ट के दखल से कुछ कार्यवाही हो सकी। जाहिर सी बात है पहलवानों के जाति के लोग भावनात्मक रूप से चोटिल हुए और खाप पंचायत का प्रचंड समर्थन मिला। दूसरे तरह संदेश दिया गया कि ये तो एक विशेष जाति के लोग का मामला है। आरोपी का जनाधार खुद के जाति में अच्छा खासा है और अब पहलवानों के दबाव में कार्यवाही कर भी दिया जाय उनकी जाति के वोट का घाटा होगा। ऐसी स्थिति में पूरे आंदोलन को एक जाति का बताकर वोट को सुरक्षित करने का प्रयास हो रहा है।
भाजपा बिना मुसलमानों का भय दिखाए खड़ी नही रह सकती। भारतीय मुसलमान और पाकिस्तान न हो तो ये पार्टी अस्तित्व में ही नही आ सकती। 2019 के लोकसभा के ठीक दौरान पुलवामा की घटना हुई और बड़ी संख्या में हिंदू एक हो गए|
कार्ल मार्क्स ने कहा था कि धर्म जनता के लिए अफीम है। भारत में तो दो अफीम हैं – जाति और धर्म। दोनो को जब भी फेंक दो आग लग जाती है। कुछ कारीगरी करना पड़ता है कि इन बारूदों को किस अनुपात में मिश्रण किया जाय। परिस्थिति पर भी निर्भर करता है और लोग किस प्रकार के हैं जहां एक गोला कामयाब होगा। चूंकि स्वतंत्रता आंदोलन किए लड़ाई लड़ने वाले बलिदानी थे और बड़ी कुर्बानी के साथ आजादी दी थी | इसलिए राज्य की बुनियाद धर्मनिरपेक्ष थी और उसका असर दशकों तक था। अब वो बुनियाद दरक रही और इसे केवल एक दल या विपक्ष ही नही बच सकते बल्कि देश की जनता को उठाना पड़ेगा। जब तक जाति के सवाल को नही महत्व दिया जाएगा, स्थिति ऐसे बनी रहेगी। जाति में बंटे भारत पर विदेशियों का कब्जा रहा है और आज भी राष्ट्र के अन्दर कितने जातियों के राष्ट्र कायम हैं। बिना वैज्ञानिक सोच के धर्मांधता को नही लड़ा जा सकता और न ही विकसित देश बन सकता है। सिंगापुर, कोरिया, चीन , अमेरिका, जापान आदि देशों को जब भी याद करते हैं तो उनके विकास के कारण। विश्व गुरु शिक्षा, विज्ञान, मजबूत अर्थव्यवस्था से बना जा सकता है। इस दोनों चुनौतियों से देश अभी भी लड़ने के लिया तैयार नहीं है तो इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भविष्य कैसा होगा।

डॉ. उदित राज, पूर्व सांसद (लोकसभा) के साथ कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) एवं अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय चेयरमैन हैं।