गत दिवस सहारनपुर में बसपा के वरिष्ठ नेता फूल सिंह का अल्प बीमारी के बाद निधन हो गया. श्री फूल सिंह की आयु लगभग 96 वर्ष थी. स्व.फूल सिंह को यूं तो राजनीतिक रूप से बहुत प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं हुई लेकिन दलित आंदोलन, और बसपा के लोग जब यह लेख पढ़ रहे होंगे तो वे जानकर हैरान हो जाएंगे कि श्री फूल सिंह का निधन वास्तव में वर्तमान दलित राजनीति और बसपा के लिए कितनी बड़ी क्षति है? सामाजिक चेतना जगाने वाले एक ऐसे युग पुरुष का चले जाना है जिन्होंने उस समय दलित चेतना जगाने का कार्य किया जब दलित समाज के लोग अपने हकों के लिए लड़ना भी नहीं जानते थे.
बसपा अध्यक्ष कुमारी मायावती जिस विधान सभा सीट हरौड़ा से भारी मतों से जीतकर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी ये वही विधान सभा सीट थी जिस पर मायावती से पहला चुनाव बसपा के टिकट पर फूल सिंह ने ही लड़ा था और मायावती के लिए इस विधान सभा सीट पर ऐसी जमीन तैयार की थी जिस पर रिकॉर्ड मतों से जीतकर मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी. मायावती से पहले जब फूल सिंह ने इस विधानसभा से चुनाव लडा था उस समय कोई भी व्यक्ति बसपा से चुनाव लड़ना ही नहीं चाहता था . लेकिन फूलसिंह ने मायावती द्वारा उन पर जताए गए विश्वास को टूटने नहीं दिया और 1991 में जब पूरे प्रदेश में राम मंदिर की लहर चल रही थी तब भी भाजपा प्रत्याशी को जबर्दस्त टक्कर दी और काफी संख्या में मत प्राप्त किए. विपरीत माहौल में भी अच्छे वोट मिलने के कारण ही मायावती की नजर इस सित पर पड़ी और वे इस सीट से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंची थी. कहीं ना कहीं ये स्व.फूलसिंह की मेहनत ही थी कि संक्षिप्त संसाधनों के बावजूद उन्होंने बसपा का एक वोट बैंक तैयार कर दिया था.
स्व. फूलसिंह का जन्म सहारनपुर के एक छोटे से गांव रूपड़ी जुनारदार में लगभग 96 वर्ष पूर्व हुआ था. उन्होंने लगभग एक सदी पूर्व भी शिक्षा के महत्त्व को जाना था. हालांकि वे मिडिल तक कि पढ़ाई भी पूरी नहीं कर सके थे लेकिन उनके अंदर कमाल की सामाजिक और राजनीतिक समझ थी. आजादी के पूर्व के महात्मा गांधी , जवाहर लाल नेहरू , सुभाष चन्द्र बोस की जनसभाओं के किस्से वे अक्सर सुनाया करते थे. आजादी के बाद वे लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी की सक्रिय राजनीति से जुड़े रहे. वे उस समय इंदिरा गांधी की राजनीति के समर्थक रहे.कांग्रेस के लिए खूब कार्य किया. खूब आंदोलनों में हिस्सा लिया. जेल भी गए, लेकिन अपने विचारों पर कायम रहे और उसे प्रभावित नहीं होने दिया.
स्व.फूलसिंह की सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की सत्तर – अस्सी के दशक में वे मेलों, नुमाइशों में दलित जागरण के कार्यक्रमों के आयोजनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे. कई बार दो – तीन दिन तक लगातार जागकर भी वें इन आयोजनों को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे.
अस्सी के दशक में ही जब मान्यवर कांशीराम ने ‘डी एस फोर’ के बैनर तले आंदोलन शुरू किया तो फूलसिंह उस आंदोलन से जुड़ गए. डी एस फोर के द्वारा किए जाने वाले बहुत से कार्यक्रमों में उन्होंने भाग लिया . बाद में बसपा के गठन के साथ ही उन्होंने पूरी तरह से बसपा के झंडे को थाम लिया. ये वो दौर था जब बसपा के कार्यकर्ताओं को बड़ी ही हीन दृष्टि से देखा जाता था. बसपा का झंडा लेकर चलने वालों का लोग मज़ाक उड़ाते थे. वो देखो हाथी के झंडे वाला जा रहा है बोलकर लोग मज़ाक उड़ाते थे.ऐसे समय में बसपा का झंडा उठाना और अपने अंतिम समय तक नीले झंडे को उठाए रखना फूलसिंह जैसी जीवटता के व्यक्ति के बूते कि ही बात थी. अपनी अंतिम सांस तक वे मान्यवर कांशीराम के गुण गाते रहे. कांशीराम जी में मुझे दूसरे अम्बेडकर की मूर्ति दिखाई देती है ये वो हमेशा बोलते थे.
श्री फूलसिंह जिस दौर में बसपा के लिए कार्य कर रहे थे वो ऐसा समय था जब पार्टी के लोगो के पास पैसा नहीं होता था. लेकिन हौसला कमाल का था. ये वो समय था जब बसपा का टिकट कोई लेने को तैयार नहीं होता था. ऐसे दौर में मज़दूरी के पैसो से और अपने परिवार का पेट काटकर समाज के लिए कुछ करने का हौसला था फूलसिंह के अंदर. दो – दो रूपए इकट्ठे करके ,लोगो से दस – बीस रूपए लेकर समाज के लिए काम करने वालो की कड़ी में अभी अगर कुछ लोग शेष बचे है तो फूलसिंह उनमें एक सबसे महत्त्वपूर्ण नाम था. नामांकन के लिए भी जेब में पैसे ना हो लेकिन मान्यवर कांशीराम के मिशन के लिए चुनाव लडने के लिए तैयार हो जाना फूलसिंह जैसे लोगो के ही बस की बात थी.
आज फूलसिंह इस दुनियां को अलविदा कहकर चले गए.लेकिन उन्हें हमेशा याद किया जाएगा उनके उन विचारों के लिए जो वे बड़ी जोरदार तरीके से लोगो के सामने रखते थे. झूठ, ढोंग, आडंबर का विरोध वे जीवनभर करते रहे. धर्म के नाम पर लोगो को मूर्ख बनाने का विरोध करते रहे. कर्मकांडों के नाम पर समाज का शोषण करने वालों का विरोध करते रहे. धर्म के नाम पर लूटने वालों का हमेशा उन्होंने विरोध किया. कई बार इसके कारण उन्हें आलोचना का शिकार भी होना पड़ा लेकिन उनके विचार कभी कोई प्रभावित नहीं कर सका.
पता नहीं बसपा के लोग या वर्तमान नेतृत्व फूलसिंह को याद रखेगा कि उन्हें भूल जाएगा लेकिन पार्टी के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों को शायद ही मिटाया जा सके. फूलसिंह आखिरी समय तक मान्यवर कांशीराम की फोटो को देखकर खुश होते रहे. मायावती में देश के दबे – पिछड़े समाज के लिए कुछ अच्छा करने की संभावना देखते रहे.
आज उनका चले जाना भले ही देश में चर्चा का विषय नहीं बना हो और बसपा सुप्रीमो सहित बसपा के आज के बड़े नेता उन्हें नहीं जानते हो लेकिन स्व.फूलसिंह वास्तव में बसपा के नीव के वे पत्थर है जिनके ऊपर आज बसपा पार्टी का महल खड़ा है. आज भी उनका परिवार सामाजिक आंदोलन में उनकी परम्परा को आगे बढ़ाने में लगे है. उन्हें शत शत नमन.
मुकेश गौतम
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