नई दिल्ली। उच्च शिक्षण संस्थानों की भर्तियों में 200 प्वाइंट रोस्टर की फिर से बहाली को लेकर चल रहे आंदोलन में बहुजन समाज को झटका लगा है. इलाहाबाद हाई कोर्ट में 200 प्वाइंट रोस्टर की फिर से बहाली की मांग खारिज होने के बाद केंद्र सरकार इस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने और ऐसा नहीं होने पर इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने की बात कहती रही, लेकिन हकीकत यह है कि इस मुद्दे पर केंद्र ने बहुजनों को धोखा दे दिया है.
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर रिव्यू पेटिशन खारिज हो गया है. इसके ठीक बाद अब तमाम विश्वविद्यालयों में 13 प्वाइंट रोस्टर के तहत भर्तियां निकालने लगी हैं. इन भर्तियों में सवर्ण तबके के हिस्से में 90 से 95 फीसदी तक सीटें आ रही हैं, जबकि ओबीसी के हिस्से में 5 से 10 फीसदी. सबसे ज्यादा झटका दलित और आदिवासी समाज को लगा है, जिनको इन भर्तियों में एक भी सीट नहीं मिल रही है.
13 प्वाइंट रोस्टर के तहत निकली इन दो भर्तियों को देखिए. उत्तर प्रदेश के वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर की तरफ से 1 मार्च 2019 को एक विज्ञापन निकला है. 13 प्वाइंट रोस्टर विभागवार आरक्षण की बात करता है. ऐसे में जिस चालाकी से विभागवार पद निकाले गए हैं वह साफ तौर पर दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के प्रति इस विश्वविद्यालय के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों के भेदभाव पूर्ण नजरिए को साबित करता है.
इसमें फिजिक्स, केमेस्ट्री, मैथेमेटिक्स और अर्थ एंड प्लानेटरी साइंस इन चार विभागों के लिए प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए नियुक्तियां निकाली गई है. इन सभी विभागों में अलग अलग पदों पर 7-7 रिक्तियों के विज्ञापन निकाले गए हैं. इसमें कुल 28 में से 24 पद गैर बहुजनों के हिस्से में आय़ा है, जबकि ओबीसी के हिस्से में चार पद आए हैं. जहां तक दलित और आदिवासी समाज की बात है तो वह मुंह ताकता आरक्षण का मजाक बनता देख रहा है.
इसी तरह जननायक चंद्रशेखर युनिवर्सिटी बलिया में तमाम विभागों और पदों को मिलाकर कुल 70 पदों के लिए विज्ञापन निकाले गए हैं. इसमें गैर बहुजन वर्गों ने 60 पद अपने कब्जे में ले लिया हैं, जबकि पिछड़े वर्ग यानि ओबीसी के हिस्से में 10 सीटें आई हैं. एक बार फिर यहां भी दलित औऱ आदिवासी समाज के हाथ कुछ नहीं लगा है.
शैक्षणिक संस्थाओं के अलावा अब रेलवे में भी 13 प्वाइंट रोस्टर लागू करने का आदेश जारी हो चुका है. ऐसे में देश के बहुजन इस अत्याचारी व्यवस्था के खिलाफ एक बार फिर 5 मार्च को भारत बंद की तैयारी में हैं. उनका साफ कहना है कि जब तक उन्हें इंसाफ नहीं मिलता, और सरकार इसको लेकर अध्यादेश नहीं लाती, तब तक वो 13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ और 200 प्वाइंट रोस्टर की बहाली के लिए जंग जारी रखेंगे.
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विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।