Friday, February 21, 2025
HomeTop Newsसतगुरु रैदासः महान संत के महान विचार, जो आज भी प्रासंगिक है

सतगुरु रैदासः महान संत के महान विचार, जो आज भी प्रासंगिक है

श्रावस्ती में जेतवन विहार में एक कुंए का नाम सतगुरु रैदास की पत्नी लोना माई के नाम पर है। जेतवन में उनके नाम पर कुएं का मौजूद होना यह सिद्ध करता है कि वे श्रावस्ती जैसे बौद्ध स्थलों पर अनेक बार गए होंगे।

रेल मंत्रालय में साल दर साल फ़रवरी के महीने में वाराणसी जाने के लिए स्पेशल ट्रेन बुक कराने के प्रार्थना पत्र आते हैं। इनमे से ज़्यादातर प्रार्थना पत्र पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से आते हैं, और गंतव्य स्टेशन होता हैं मंडुवाडीह। प्रार्थना पत्र नवम्बर में ही आने शुरू हो जाते हैं और दिसम्बर- जनवरी तक आते ही रहते हैं। बुक कराने वाले पूरा किराया तो देते ही हैं, स्पेशल ट्रेन का एक्सट्रा चार्ज भी देते हैं। अवसर होता है संत शिरोमणि गुरु रविदास की जयंती का, जो हर साल माघ पुर्णिमा को मनाई जाती है। संत रविदास का जन्म सन 1398 माघ पूर्णिमा को वाराणसी उत्तर प्रदेश के निकट मण्डुवाडीह में हुआ था। गुरू रविदास ने अपने पदो के माध्यम से समाज में फैले मिथ्याचार आडंबर और रूढ़िवादिता पर प्रहार किया।

गुरू रविदास का अधिकांश समय भारत के विभिन्न प्रदेशों के भ्रमण में बीता। संबंधित प्रदेशों की बोली भाषा के अनुरूप इन्हें विभिन्न नामों से ख्याति प्राप्त हुई जैसे- पंजाब में रैदास, बंगाल में रूईदास, महाराष्ट्र में रोहिदास, राजस्थान में रायदास, गुजरात में रोहिदास अथवा रोहितास, मध्य प्रदेश में रविदास।

गुरू ग्रंथ साहिब में रविदास के उल्लिखित चालीस पदों में अधिकांशतया ”रैदास” नाम का ही वर्णन आया है। संत रविदास गुजरात, उत्तरी भारत, पूर्वी भारत, पश्चिमी भारत और मध्य भारत के एक सर्वमान्य संत थे। उन्होंने सार्वजनीन भ्रातृत्व की बात की और सभी के प्रति प्रेम व स्नेह व्यक्त किया। उन्होंने श्रमण अथवा अपनी आजीविका स्वयं अर्जित करने का संदेश प्रचारित किया।

गुरू रविदास महान सामाजिक व धार्मिक क्रातिकारी थे। उन्होंने अपने कार्यों द्वारा तत्कालीन भारत में सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया। उस समय ये माना जाता था कि सन्यासी जीवन 75 वर्ष की उम्र पार करने के बाद बिताया जाता है। लेकिन गुरू रविदास ने दुनिया को यह दिखा दिया कि गृहस्थ जीवन में भी मोक्ष संभव है। उनकी पत्नी लोना देवी भी अध्यात्त्मिक रुप से उच्च अवस्था को प्राप्त थीं। गुरू रविदास ने आत्म-सम्मान, आत्मबल और आत्म-सहायता पर जोर दिया। सतगुरू रविदास ने न सिर्फ जातीय वर्चस्व को चुनौती दी बल्कि समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व व न्याय उनके सामाजिक परिवर्तन के मुख्य स्तंभ थे। गुरू रविदास भारतवर्ष के कोने-कोने में गये और समानता, भ्रातृत्व व सार्वजनीन एकात्मता का संदेश फैलाने के लिए कार्य किया। वे समतावादी समाज की बात करते थे। उनकी दृष्टि एक ऐसे समाज के निर्माण की थी, जहां भूख, गरीबी और दरिद्रता न हो।

गुरू रविदास कहते हैं:

ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिलै सबन को अन्न।
छोट बड़त सब सम बसै, रैदास रहे प्रसन्न।

मैं ऐसा शासन चाहता हू¡ जिसमें सबको भर पेट भोजन मिले। मुझे तभी खुशी होगी, जब उच्च या निम्न जाति को भुलाकर सबके साथ समानता का व्यवहार किया जाए।

संत् रविदास ने एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना की थी जहां कोई भूखा और गरीब नहीं होगा, रोगी और दु:खी नहीं होगा, असमानता और शोषण का अभाव होगा और लोगों में प्रेम और सौहार्द की भावना होगी। ऐसे राष्ट्र  को संत रविदास ने बेगमपुरा नाम दिया था।

संत् रविदास ने जाति, रंग या नस्ल पर आधारित लोगों के अत्याचारों का विरोध किया।  समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, समानता व भ्रातृत्व का संदेश फैलाकर संत रविदास ने कहा कि किसी मानव की पहचान उसके जन्म से नहीं बल्कि कर्म से होती है।

गुरू रविदास कहते हैं:

रविदास सुकरमन करन सो नीच ऊँच हो जाये,
करही कुकर्म ऊँच भी, तो महा नीच कहलाय ।

अच्छे कर्म करके निम्न जाति में जन्मा व्यक्ति भी उच्च हो जाता है। गलत काम करके उच्च जाति में जन्मा व्यक्ति भी निंदनीय अथवा निम्न हो जाता है।

रविदास जनम के कारने, होत न कोई नीच,
नर कू नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच ।

जन्म से कोई ऊँचा-नीचा नहीं होता, केवल बुरे कर्म अर्थात् गलत कार्य ही मानव को ऊँचा-नीचा बनाते हैं।

संत रविदास के समय के भारत में महिलाओं को सामान्यतया दीक्षा नहीं दी जाती थी। संत रविदास ने उस परंपरा को तोड़ा और अनेकों महिलाओं को दीक्षा देकर महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक क्रातिकारी काम किया। उनकी प्रमुख महिला शिष्यों में मीराबाई व चित्तौड़ की रानी झालीबाई सहित अनेक राजकुमारियां शामिल थी।

मीराबाई ने अपने पदों में कहा है कि ‘गुरू मिल्या रविदास जी’।

मीराबाई पहले अनेकों संतों के पास गई थी लेकिन किसी ने परंपरा को तोड़कर एक महिला को दीक्षा देने की हिम्मत नहीं जुटाई। लेकिन संत रविदास ने केवल मीराबाई को ही दीक्षा नहीं दी, बल्कि अनेकों महिलाओं को दीक्षा देकर ये सिद्ध किया कि अघ्यात्म के मार्ग पर चलने का अधिकार महिलाओं का भी उतना ही जितना कि पुरूषों का।

संत रविदास ने इस बात पर जोर दिया कि पुत्री भी पुत्र के समान होती है और महिलाएं किसी भी तरीके से पुरूषों से कम नहीं होती हैं। आज जब देश के कई भागों में महिलाओं पर जघन्य अपराध हो रहा है ऐसे में संत रविदास की शिक्षाएं और भी प्रासंगकि हो जाती हैं। गुरू रविदास समानता, भ्रातृत्व, प्रेम व स्नेह को मानते थे और उसी का प्रचार-प्रसार करते थे। इसलिए गुरू रविदास को श्रमण परंपरा का अग्रवाहक माना जाता है।

गुरू रविदास कहते हैं:
मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही सेवा सहज सरूप।
पूजा अर्चना ना जानू तोरी, कह रविदास कौन गति मोरी।

आज जब देश के बिभिन्न भागों में जात- पांत के नाम पर हिंसक घटनाएं हो रही हैं संत रविदास की शिक्षाएं और भी प्रासंगकि हो जाती है

श्रावस्ती में जेतवन विहार में एक कुंए का नाम उनकी पत्नी लोना माई के नाम पर है। ऐसा प्रतीत होता है कि संत रविदास और उनकी पत्नी लोना देवी को आध्यात्मिक शक्तियां और रिद्धियां-सिद्धियां प्राप्त रही होंगी जिससे स्थानीय लोग प्रभावित हुए होंगे और इसीलिए कुएं का नाम लोना माई के नाम पर रखा गया होगा। जेतवन में उनके नाम पर कुएं का मौजूद होना यह सिद्ध करता है कि वे श्रावस्ती जैसे बौद्ध स्थलों पर अनेक बार गए होंगे।

रैदास की सबसे बड़ी विशेषता भक्ति साधना के साथ-साथ श्रम साधना भी है। संत रैदास के पदों से और विभिन्न जनश्रुतियों से पता चलता है कि अपनी प्रशिद्धि के चरम  दिनों में भी संत रैदास जूते बनाने का अपना व्यवसाय किया करते थे और एक जोड़ी जूता प्रतिदिन दान में दिया करते थे। रैदास ने श्रम को ईश्वर कहा है।

संत रैदास का जीवन अत्यंत सादगी से भरा और किसी भी प्रकार के लोभ, मोह, भय आदि से मुक्त था। उनकी पंक्तियों में काम, क्रोध्, मद, लोभ, मोह आदि कुसंस्कारों के त्याग का आग्रह है। व्यक्तिगत गुणों से परिपूर्ण संत रैदास की मुक्ति मार्गी भूमिका उन्हें अस्मिता बोध् आंदोलनों के एक बड़े प्रणेता और प्रेरक के रूप में प्रस्तुत करती है। उनके व्यक्तित्व की महानता का प्रतीक उनके मार्ग का व्यापक प्रसार भी है और सदियों तक उन्हें कालजयी भी बनाता है।

संत रविदास की लोकप्रियता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि उनकी जन्म-जयंती माघ पूर्णिमा के दिन देश-विदेश से लाखों लोग उनकी जन्मस्थली मडुआडीह पहुंचते है और संत रविदास के प्रति अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं।

लोकप्रिय

संबंधित खबरें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Skip to content