नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट टीम के सफल कप्तानों में से एक सौरव गांगुली की ऑटोबायोग्राफी ‘ए सेंचुरी इज नॉट इनफ’ का विमोचन कार्यक्रम दिल्ली में 30 अप्रैल को हुआ. इस दौरान गांगुली के साथ क्रिकेट धुरंधर वीरेन्द्र सहवाग और युवराज सिंह भी मौजूद थी. इस मौके पर तीनों ने एक-दूसरे के बारे में कई कहानियां साझा की. इस मौके पर जब पत्रकारों ने सहवाग से सौरभ गांगुली के बीसीसीआई के अध्यक्ष बनने की संभावनाओं पर सवाल किया गया तो सहवाग ने कहा,” दादा (सौरभ गांगुली) 100 फीसदी एक दिन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन वह दिन आने से पहले दादा बीसीसीआई के प्रेसिडेंट बनेंगे.” तीनों क्रिकेट खिलाड़ियों ने अपने बीते दौर की मैदान और निजी जिन्दगी की मनोरंजक यादों को साझा किया.
सहवाग ने बताया, दादा मैच के बाद अक्सर हमारी तरफ आते और हमसे अपनी किट बैग को पैक करने के लिए कहते थे. उन्हें मैच के बाद तुरंत ही प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए भागना होता था, इसलिए वह हमसे ये काम करवाया करते थे. इस बात पर युवराज ने भी सहमति जताई. लेकिन गांगुली ने इस कहानी में थोड़ा सुधार करते हुए अलग ही बात बताई. गांगुली ने कहा, ये कहानी पूरी तरह से सही नहीं है. दरअसल मुझे प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए भागना होता था और युवराज को नाइट आउट के लिए भागना होता था. वह उसमें जरा भी लेट नहीं होना चाहता था. इसलिए युवराज खेल खत्म होने के बाद बाकी किसी भी खिलाड़ी से पहले मेरी किट को पैक कर देता था. जैसे ही गांगुली ने ये बात कही, पूरा हॉल ठहाकों से भर गया.
इस दौरान वीरू और युवराज ने उन दिनों को भी याद किया, जब वह टीम में नए थे और गांगुली ने उन दिनों में उनका समर्थन किया था. युवराज ने कहा कि, जब मैं टीम में शामिल हुआ तो दादा ने कहा कि बड़े दिनों के बाद इंडियन टीम में कोई अच्छा फील्डर आया है. दो-तीन मैच के बाद मैं अगली इनिंग्स में अच्छा नहीं खेल पाया और स्पिन गेंदबाजी से जूझने लगा, लेकिन दादा ने मुझे सहारा दिया क्योंकि वो जानते थे कि मैं मैच जिताने वाला खिलाड़ी हूं. गांगुली ने कहा, कि मैं हरभजन, युवराज और वीरू जैसे खिलाड़ियों को सिर्फ इसीलिए सहारा देता था क्योंकि ये बेहद प्रतिभाशाली खिलाड़ी थे और मैं ये बात जानता था. सबसे पहले मैंने उनके दिमाग से टीम से निकाले जाने का डर हटा दिया.
दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।