देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में पिछले सात सालों के दौरान 122 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या कर ली है। ये आंकड़ा केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बीते संसद सत्र के दौरान बताया। हैरानी की बात यह है कि आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों में ज्यादातर दलित, आदिवासी, पिछड़े और मुस्लिम समाज के युवा हैं। ज्यादा मौतें आईआईटी, आईआईएम और मेडिकल संस्थानों के छात्र-छात्राओं ने किया है।
मौतों के आंकड़े की बात करें तो देश में बीते सात सालों 2014 से 2021 के बीच दलित समाज के 24 विद्यार्थियों ने खुदकुशी की, जबकि आदिवासी वर्ग से 3 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया। तो वहीं ओबीसी से 41 और धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के 3 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली। इस खबर में एक अन्य चौंकाने वाली बात यह है कि बीते सात साल में सबसे ज्यादा 34 आत्महत्याएं आईआईटी संस्थानों के छात्र-छात्राओं ने किया है। इसमें पांच स्टूडेंट आदिवासी समाज से जबकि 13 स्टूडेंट ओबीसी वर्ग से थे।
सरकारी आंकड़े से यह भी सामने आया है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 37 रही। इसके अलावा, आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में पांच विद्यार्थियों ने अपनी जान दे दी। हालांकि सामाजिक संगठन इस आंकड़े को पूरा सच नहीं मान रहे हैं और उनका दावा है कि मौत के आंकड़े ज्यादा होते हैं, क्योंकि छोटे शहरों के शिक्षण संस्थानों के मामले सामने नहीं आ पाते।
शिक्षण संस्थानों में आत्महत्या को लेकर सबसे बड़ा बवाल साल 2016 में हुआ था, जब 17 जनवरी 2016 को हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के पीएचडी के छात्र रोहित वेमुला ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर तमाम आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर लिया था। तो साल 2019 में मेडिकल की छात्रा पायल तड़वी ने सवर्ण समाज की अपनी सहकर्मियों पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली थी। रोहित वेमुला और पायल तडवी दोनों दलित समाज से थे। माना जा रहा था कि इन दोनों की आत्महत्या के बाद उठे तूफान से स्थिति सुधरेगी, लेकिन सरकार द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के लिए देश के उच्च शिक्षण संस्थान कब्रगाह बनते जा रहे हैं।
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विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।