Thursday, February 6, 2025
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उच्च शिक्षण संस्थानों में बहुजनों की आत्महत्या पर आया चौंकाने वाला आंकड़ा

 देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में पिछले सात सालों के दौरान 122 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या कर ली है। ये आंकड़ा केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बीते संसद सत्र के दौरान बताया। हैरानी की बात यह है कि आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों में ज्यादातर दलित, आदिवासी, पिछड़े और मुस्लिम समाज के युवा हैं। ज्यादा मौतें आईआईटी, आईआईएम और मेडिकल संस्थानों के छात्र-छात्राओं ने किया है।

 मौतों के आंकड़े की बात करें तो देश में बीते सात सालों 2014 से 2021 के बीच दलित समाज के 24 विद्यार्थियों ने खुदकुशी की, जबकि आदिवासी वर्ग से 3 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया। तो वहीं ओबीसी से 41 और धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के 3 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली। इस खबर में एक अन्य चौंकाने वाली बात यह है कि बीते सात साल में सबसे ज्यादा 34 आत्महत्याएं आईआईटी संस्थानों के छात्र-छात्राओं ने किया है। इसमें पांच स्टूडेंट आदिवासी समाज से जबकि 13 स्टूडेंट ओबीसी वर्ग से थे।

सरकारी आंकड़े से यह भी सामने आया है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 37 रही। इसके अलावा, आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में पांच विद्यार्थियों ने अपनी जान दे दी। हालांकि सामाजिक संगठन इस आंकड़े को पूरा सच नहीं मान रहे हैं और उनका दावा है कि मौत के आंकड़े ज्यादा होते हैं, क्योंकि छोटे शहरों के शिक्षण संस्थानों के मामले सामने नहीं आ पाते।

 शिक्षण संस्थानों में आत्महत्या को लेकर सबसे बड़ा बवाल साल 2016 में हुआ था, जब 17 जनवरी 2016 को हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के पीएचडी के छात्र रोहित वेमुला ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर तमाम आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर लिया था। तो साल 2019 में मेडिकल की छात्रा पायल तड़वी ने सवर्ण समाज की अपनी सहकर्मियों पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली थी। रोहित वेमुला और पायल तडवी दोनों दलित समाज से थे। माना जा रहा था कि इन दोनों की आत्महत्या के बाद उठे तूफान से स्थिति सुधरेगी, लेकिन सरकार द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के लिए देश के उच्च शिक्षण संस्थान कब्रगाह बनते जा रहे हैं।

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