उच्च शिक्षा में भेदभाव को लेकर अक्सर खबरें सामने आती रहती हैं। इसमें दिल्ली और जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों के साथ-साथ IIT और IIM जैसे संस्थानों का भी जिक्र होता है। यहां की फैकल्टी में एससी/एसटी की गैरमौजूदगी को लेकर भी सवाल उठते हैं। हाल ही में आईआईटी मद्रास में वंचित समाज के प्रतिनिधित्व को लेकर एक आंकड़ा सामने आया है, जिसके बाद अंबेडकरी आंदोलन के लोग तमाम सवाल उठा रहे हैं।
दरअसल IIT मद्रास को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, उसके मुताबिक वंचित समाज से सिर्फ 9 फैकल्टी हैं, जबकि अगड़ी जातियों के 43 फैकल्टी मेंबर हैं। यानी कि आईआईटी मद्रास में देश की 85 फीसदी आबादी के सिर्फ 9 शिक्षक ही फैकल्टी के रूप में पढ़ा रहे हैं, जबकि 15 फीसदी आबादी वाले अगड़े समाज के 43 फैकल्टी मेंबर हैं। वंचित समाज के वर्गों के अलग-अलग हिस्सेदारी की बात करें तो 9 फैक्ल्टी में एससी समाज के 3, एसटी समाज का एक और ओबीसी समाज के 5 फैकल्टी मेंबर हैं। यह आंकड़ा सूचना के अधिकार के तहत सामने आया है।
इसी तरह दिल्ली विवि में बहुजन समाज के पूर्व एवं वर्तमान शिक्षकों ने एक आईआईएम को लेकर एक आंकड़ा साझा किया है। इसमें देश के चार आईआईएम में भी फैकल्टी का आंकड़ा सामने आया है। इसमें अहमदाबाद में 104, कोलकाता में 86, इंदौर में 104 और शिलांग में 20 मेंबर हैं। इन सभी चारों जगहों पर दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के एक भी सदस्य नहीं हैं। यानी सारे के सारे पदों पर सवर्णों का कब्जा है।
इस आंकड़े के सामने आने के बाद तमाम लोग इसके लिए भाजपा के 10 साल के शासनकाल को जिम्मेदार ठहरा हैं तो भाजपा समर्थक इसके लिए कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो, चाहे भाजपा की या फिर जनता दल सहित अन्य गठबंधनों की, उच्च शिक्षा में हमेशा से अगड़ी जातियों का दबदबा रहा है। ऐसा लगातार देखने में आता है कि अगड़ी जातियों के लिए मौजूद पदों पर भर्तियां हो जाती है, जबकि एससी, एसटी और ओबीसी के लिए मौजूद पदों को नॉट फाउंड सुटेबल यानी कि उपर्युक्त उम्मीदवार मौजूद नहीं है कह कर खाली छोड़ दिया जाता है। इस तरह अगड़ी जातियों का दखल उच्च शिक्षा में लगातार बढ़ता गया जबकि दलित, पिछड़े और आदिवासी समाज के युवा हाशिये पर रहे।
सिद्धार्थ गौतम दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं। पत्रकारिता और लेखन में रुचि रखने वाले सिद्धार्थ स्वतंत्र लेखन करते हैं। दिल्ली में विश्वविद्यायल स्तर के कई लेखन प्रतियोगिताओं के विजेता रहे हैं।