इधर कई दिनों से अखबार की सुर्खियों में खबर बन रही है कि प्रदेश सरकार ने उ0 प्र0 की कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी, मछुआ को अनुसूचित जाति की सूची में सम्मिलित कर लिया है और इस सम्बंध में जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए मण्डलायुक्तों और जिलाधिकारियों को कहा गया है. यह आरएसएस और भाजपा के चरित्र के अनुरूप ही अति पिछड़े समाज के साथ की गयी बड़ी धोखाधड़ी का ही एक और उदाहरण है.
24 जून 2019 को प्रमुख सचिव समाज कल्याण द्वारा जारी किए गए शासनादेश को आप गौर से देखें, शासनादेश कहता है कि ‘नियमानुसार जाति प्रमाण पत्र निर्गत किए जाने हेतु आवश्यक कार्यवाही की जाए‘. शासनादेश में कहीं भी इन जातियों को सीधे तौर पर अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र जारी करने के लिए नहीं कहा गया है. शासनादेश में सब कुछ हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका 2129/2017 डा0 बी0 आर0 अम्बेडकर ग्रन्थालय एवं जन कल्याण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य में करीब दो साल पहले 29 मार्च 2017 अंतरिम आदेश के सम्बंध में है. यह याचिका सपा सरकार द्वारा 2016 में इन जातियों को एससी की सूची में डालने के शासनादेश के विरूद्ध दाखिल की गयी थी. जिसमें हाईकोर्ट ने शासनादेश के विरूद्ध स्थगनादेश दिया हुआ है.
29 मार्च के इस आदेश में भी हाईकोर्ट इन जातियों को अनुसूचित जाति का जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए नहीं कहता है. आदेश में हाईकोर्ट ने कहा है कि इस अवधि में यदि इनमें से किसी जाति को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी हो गया था तो वह कोर्ट के अंतिम आदेश के अतंर्गत रहेगा. महज उपचुनाव में राजनीतिक लाभ के लिए दो साल पूर्व आए हाईकोर्ट के आदेश को आधार बनाकर किए इस शासनादेश से आरएसएस-भाजपा सरकार द्वारा इन अति पिछड़ी जातियों को अधर में लटका दिया गया है न तो यह अनुसूचित जाति में संवैधानिक रूप से जा पायेगी और न ही इनको मिल रहा अन्य पिछड़ा वर्ग का लाभ ही इन्हें मिल पायेगा.
दरअसल उ0 प्र0 में इन सत्रह जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने के नाम पर भ्रमित करने का खेल पिछले करीब पंद्रह वर्षो से चल रहा है. सबसे पहले मुलायम सरकार में यह शासनादेश जारी किया गया जिसे हाईकोर्ट ने इस आधार पर रद्द किया था कि संविधान की धारा 341 के तहत अनुसूचित जाति की सूची में किसी जाति को जोड़ने व हटाने का अधिकार राज्य सरकार के पास नहीं है. इसके बाद बनी मायावती सरकार ने इन जातियों को एससी की सूची में शामिल करने के लिए केन्द्र सरकार को अपनी संस्तुति भेजी और यहीं काम अखिलेश सरकार ने भी किया. जिस पर आरएसएस की मोदी सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के सचिव सुधीर भार्गव ने दिनांक 24 दिसम्बर 2014 को उ0 प्र0 के मुख्य सचिव आलोक रंजन को लिखे पत्र में कहा कि गृह मंत्रालय के अधीन भारत के महारजिस्ट्रार ने राज्य सरकार के प्रस्ताव पर असहमति व्यक्त की है और इसे पुर्नसमीक्षा के लिए भेज दिया था.
इसके बाद दिनांक 1 अप्रैल 2015 को पुनः भारत सरकार को पुर्नसमीक्षा कराकर अखिलेश सरकार द्वारा प्रस्ताव भेजा गया. जिसे फिर मोदी सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय ने 22 जुलाई 2015 के पत्र द्वारा अस्वीकार कर दिया और साथ ही यह भी कहा कि यदि अनुसूचित जाति की सूची में संशोधन के राज्य सरकार के प्रस्ताव से भारत के महारजिस्ट्रार दूसरी बार भी सहमत नहीं होते तो भारत सरकार ऐसे प्रस्तावों को निरस्त कर सकती है और इस अनुसार इस प्रस्ताव को सक्षम अधिकारी द्वारा निरस्त कर दिया गया. इस तथ्य से तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्रावली पर अवगत करा दिया गया था. बावजूद इसके अखिलेश सरकार ने 2016 में इन जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का अवैधानिक आदेश दिया. जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगायी हुई है.
यह सच है कि इनमें से कई जातियां जैसे बिंद आदि की आर्थिक स्थिति दलितों से भी बदतर है. लेकिन इन जातियों को आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद संवैधानिक रूप से एससी में शामिल नहीं किया जा सकता. क्योंकि अनुसूचित जाति में वहीं जातियां आती है जो मूलतः अछूत जातियां रही है. अति पिछड़े वर्ग की यह सभी जातियां अपने चरित्र और ऐतिहासिक विकास में श्रमिक जातियां रही है और अछूत नहीं रही है. इसलिए वास्तव में इन जातियों के सामाजिक न्याय और इनकी भागेदारी के लिए यह जरूरी है कि इनका आरक्षण कोटा अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण कोटे में से अलग कर दिया जाए, जैसा कि बिहार में कपूर्री ठाकुर फार्मूले के अनुसार पिछड़ा वर्ग में है.
यह काम संवैधानिक रूप से राज्य सरकार कर सकती है. इन्द्रा साहनी के केस में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसको माना है. इस मांग को स्वराज अभियान की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य अखिलेन्द्र प्रताप सिंह के नेतृत्व में लम्बे समय से उठाया जाता रहा है. कई बार इस सवाल पर सम्मेलन और धरना प्रदर्शन किए गए. खुद अखिलेन्द्र जी ने लखनऊ और दिल्ली में किए अपने दस दिवसीय उपवास में इस सवाल को मजबूती से उठाया था और तत्कालीन मनमोहन की केन्द्र सरकार व प्रदेश की अखिलेश सरकार को पत्रक दिए गए थे. लेकिन इस संवैधानिक काम को करने की जगह महज अति पिछड़ी इन श्रमिक जातियों को गुमराह किया जाता रहा जिसमें उ0 प्र0 के सभी शासकवर्गीय दल शामिल रहे है. इसलिए आज जनराजनीति ही अति पिछड़ों के सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करेगी और अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण कोटे में से अति पिछड़े वर्ग का आरक्षण कोटा दिलायेगी.
दिनकर कपूर
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