इतिहास की अपनी एक निश्चित दिशा और गति होती है, जिसमें सामान्यतः व्यक्ति विशेष का स्थान गौण होता है। लेकिन कुछ व्यक्तित्व अपनी असाधारण मेहनत, लगन, बौद्धिक प्रखरता, बलिदान और संघर्ष के माध्यम से इतिहास निर्माण की इस सतत प्रक्रिया में विशिष्ट योगदान देते हैं।
ये महान व्यक्तित्व समाज की दिशा और दशा को नया आकार प्रदान करते हुए अपने युग पर अमिट छाप छोड़ते हैं। इन्हें हम सामाजिक क्रांतिकारी कहते हैं, जो लोक-कल्याण के लिए मानवीयता का प्रसार करते हैं, और इतिहास उन्हें अपने आदर्श के रूप में स्वीकार करता है। ऐसे लोग नैतिकता और सच्चाई की राह पर अडिग रहते हुए महानता की पराकाष्ठा तक पहुंचते हैं। उनकी महानता उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर समाज को चलने के लिए प्रेरित करती है।
इन पथप्रदर्शक महान विभूतियों में माननीय शांति स्वरुप बौद्ध जी का नाम अग्रणी है, जिन्होंने सामाजिक परिवर्तन के आंदोलन में अद्वितीय योगदान दिया। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1949 को दिल्ली के एक प्रबुद्ध अंबेडकरवादी परिवार में हुआ था। उनके परिवार ने प्रारंभ से ही डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों का अनुसरण किया। शांति स्वरुप जी ने 1975 में सम्यक प्रकाशन की स्थापना कर हिंदी भाषी प्रदेशों में बहुजन साहित्य, इतिहास, कला और संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया। उनके प्रयासों से हजारों किताबें प्रकाशित की गईं, और बहुजन समाज की सांस्कृतिक धरोहर को घर-घर पहुंचाया गया।
सम्यक प्रकाशन के माध्यम से शांति स्वरुप बौद्ध जी ने न केवल साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया, बल्कि बहुजन समाज के विचारकों, लेखकों, और कलाकारों को भी अपनी पहचान बनाने का अवसर दिया। सम्यक प्रकाशन के तले प्रकाशित लगभग दो हजार किताबें बहुजन समाज की धरोहर बन चुकी हैं। उनके द्वारा डिज़ाइन किए गए पोस्टर, कैलेंडर, और सांस्कृतिक प्रतीक आज भी जागरूक परिवारों के जीवन का हिस्सा हैं।
शांति स्वरुप बौद्ध जी की असामयिक मृत्यु 6 जून 2020 को, बहुजन समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। समाज ने सोशल मीडिया पर अपने श्रद्धांजलि संदेशों के माध्यम से उनकी कृतज्ञता प्रकट की। यह श्रद्धांजलि समाज के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें हजारों लोगों ने अपनी प्रोफाइल तस्वीरें उन्हें समर्पित कीं।
शांति स्वरुप जी एक अद्वितीय बुद्धिजीवी, उच्च कोटि के चित्रकार, और ओजस्वी वक्ता थे। उन्होंने हजारों लेखकों को लिखने के लिए प्रेरित किया और बहुजन आंदोलन के लिए साहित्य का विशाल खजाना तैयार किया। दिल्ली में आयोजित होने वाले बौद्ध सांस्कृतिक सम्मेलन का श्रेय भी उन्हें जाता है, जिसने बहुजन समाज को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने का काम किया। इन सम्मेलनों में हर बार भाग लेना समाज के लोगों के लिए गौरव की बात होती थी।
उनका एक और महत्वपूर्ण योगदान “रन फॉर आंबेडकर” रहा, जिसमें देश भर से हजारों युवा भाग लेकर अंबेडकरवादी विचारधारा का समर्थन करते थे। इस आयोजन की विशिष्ट छटा नीले और पंचशील झंडों के साथ सफेद टी-शर्ट पहने जोशीले युवाओं की होती थी। यह आयोजन हमारे समाज की समृद्ध विरासत और गौरवशाली संस्कृति को प्रतिबिंबित करता था।
शांति स्वरुप बौद्ध जी के साथ बिताए हर पल ज्ञानवर्धक थे। मैंने उन्हें पहली बार आंबेडकर भवन दिल्ली में लगभग 15-16 साल पहले सुना था, जहाँ वे “श्री” शब्द के उपयोग पर एक बहुत ही सारगर्भित व्याख्यान दे रहे थे। आज भी उनके शब्द हूबहू याद हैं, जब उन्होंने कहा, “पागल कहिए, दीवाना कहिए, या गधा कहिए, लेकिन श्री कभी न कहिए।” उनके शब्दों का चयन और उनका महत्व मुझे हमेशा प्रभावित करता था।
विशेष रूप से, समता बुद्ध विहार (जो उनके निवास स्थान पश्चिम विहार में स्थित था) में हुई हमारी तमाम मुलाकातें मेरी स्मृतियों में अमिट हैं। इन मुलाकातों में अक्सर भंते चंदिमा जी भी मौजूद रहते थे। हर बार उनसे मिलने पर, ऐसा लगता था जैसे ज्ञान के असीम सागर में डूब रहे हों – किसी भी विषय पर उनसे बात करना शुरू करिए और वे आपको ज्ञान के अनमोल मोती सौंपते चले जाते थे। उनकी बातचीत की गहराई और विषयों की समझ अद्वितीय थी। उन्होंने शब्दों के महत्व को गहराई से समझा और उनका उपयोग अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ किया।
शांति स्वरुप बौद्ध जी के सानिध्य में मैंने कई बार दयाल सिंह कॉलेज का भी जिक्र सुना, जहाँ वे पढ़े थे और जहाँ मैं पढ़ाता हूँ। वे अकसर वहाँ के संस्थापक सरदार दयाल सिंह मजीठिया के चित्र, जिसे उन्होंने स्वयं बनाया था, का जिक्र किया करते थे। उनका स्नेह मेरे ऊपर हमेशा बना रहा, और मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। उनके साथ बिताए समय से मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूँ। उनकी यादें, उनके विचार और उनका ज्ञान मेरे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं।
आज 2 अक्टूबर को उनके जन्मदिन के अवसर पर, देश भर में हजारों लोग उन्हें अपने-अपने तरीके से याद कर रहे हैं। यह देखकर गर्व होता है कि कैसे कोई व्यक्ति अपने चारित्रिक गुणों और समाज के प्रति असीम समर्पण से एक संस्था बन जाता है। वे गर्व के साथ बताते थे कि स्वयं बाबा साहब डॉ. आंबेडकर ने उनका नाम शांति स्वरुप बौद्ध रखा था। उन्होंने इस नाम को पूरी तरह सार्थक किया और अपने जीवन को भारत के प्रबुद्ध निर्माण के लिए समर्पित कर दिया।
मुझे गर्व है कि मैंने उनके साथ कुछ समय बिताया और उनके प्रयासों से प्रेरित होकर अपने जीवन को सामाजिक सेवा और समता के उद्देश्यों के प्रति समर्पित कर पाया। उनके बिना बहुजन समाज के आंदोलन में एक शून्य पैदा हुआ है, लेकिन उनका जीवन और कार्य इस आंदोलन को मील का पत्थर साबित करते रहेंगे।
आज 2 अक्टूबरउनके जन्मदिन पर, हम सभी साथी उन्हें कृतज्ञतापूर्ण नमन करते हैं और उनके बहुआयामी प्रयासों की प्रशंसा करते हैं।
डॉ. राजकुमार दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज में पढ़ाते हैं।