पटना। तेरह साल पहले 2003 में नीतीश कुमार के समता दल और शरद यादव के जनता दल के विलय के बाद अस्तित्व में आए जनता दल (यू) का चुनाव चिन्ह तीर हो गया था. इससे पहले समता दल का चुनाव चिन्ह मशाल था, जबकि जनता दल का चुनाव चिन्ह तीर था. नीतीश कुमार से अलगाव के बाद शरद यादव खेमा एक बार फिर तीर चुनाव चिन्ह पर दावा करने की तैयारी में है. साथ ही यह गुट खुद के असली जनता दल होने का दावा पेश करने की तैयारी में है. शरद यादव खेमा इसके लिए जल्द ही चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाएगा.
जदयू के महासचिव पद से हटाए गए अरुण श्रीवास्तव का कहना है कि शरद गुट ही असली जदयू है. यह दावा इसलिए भी किया जा रहा है कि पार्टी के 14 राज्यों के अध्यक्ष उनके साथ हैं. 17 अगस्त को शरद यादव के संयोजन में दिल्ली में हुए साझी विरासत सम्मेलन में भी इनमें से सात से आठ अध्यक्ष मौजूद थे.
इससे पहले नीतीश कुमार ने अरूण श्रीवास्तव को महासचिव, राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी को राज्यसभा में पार्टी के उपनेता पद से और शरद को राज्यसभा में नेता सदन के पद से हटा दिया था. बिहार में भी रमई राम समेत विभिन्न जिलों के 21 नेताओं को बर्खास्त कर दिया. यादव खेमा इस बात से ज्यादा नाराज है कि भाजपा के साथ जाने का फैसला नीतीश ने शरद यादव और अन्य वरिष्ठ नेताओं को बिना विश्वास में लिए किया.
अब जनता दल और चुनाव चिन्ह तीर को लेकर शुरू हुई लड़ाई नीतीश कुमार के लिए सरदर्द बन सकती है. अगर चुनाव आयोग ने अगर शरद यादव गुट को असली जनता दल मान लिया तो नीतीश कुमार के लिए बतौर राजनैतिक दल पहचान का संकट खड़ा हो सकता है.
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