लोकसभा चुनाव में आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिलने और फिर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़ने के बाद बसपा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. देश भर से पार्टी के भीतर से ही विरोध की खबरें आ रही हैं. पिछले दिनों महाराष्ट्र के अमरावती और यूपी के हाथरस से भरी बैठक में पार्टी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के समर्थकों के बीच मारपीट की खबर तक आई थी. नई सूचना गोरखपुर से है, जहां क्षेत्र के एक कद्दावर युवा नेता श्रवण कुमार निराला के समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच जमकर जूतम पैजार हुई है.
दरअसल मंगलवार 9 जुलाई को बहुजन समाज पार्टी की समीक्षा बैठक चल रही थी. इस बैठक में गोरखपुर मंडल के कार्यकर्ताओं को बुलाया गया था. मुख्य अतिथि के रूप में प्रमुख जोन इंचार्ज घनश्याम खरवार मौजूद थे. इस दौरान हर लोकसभा सीट की समीक्षा शुरू होने लगी. बांसगांव लोकसभा की समीक्षा के दौरान पदाधिकारियों ने श्रवण कुमार निराला को बताया कि बहनजी उनको वापस संगठन में लेना चाहती हैं और उनको महाराजगंज का प्रभारी बनाया जा रहा है.
बस फिर क्या था, निराला नाराज हो गए. नाराज होने की वजह यह थी कि बसपा मुखिया ने ही निराला को बांसगांव विधानसभा क्षेत्र का प्रभारी बनाया था. जहां पिछले दो साल से निराला मेहनत भी कर रहे थे. लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस विधानसभा क्षेत्र से बसपा को सबसे अधिक 85 हजार वोट भी मिले थे. निराला क्षेत्र में लगातार सक्रिय थे और विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारियों में लगे थे. ऐसे में अचानक उन्हें संगठन में लगाने का मतलब था, उनका टिकट काटा जाना.
इस सूचना के मिलते ही निराला मंच पर चढ़ गए और अपने समर्थकों को जानकारी दी कि बांसगांव से पार्टी ने उनका टिकट काट दिया है. निराला यहीं नहीं रुके और लगे हाथ मंच से ही बसपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी. इस दौरान उनका कहना था कि चूकि वो पैसे नहीं दे सकते, इसलिए उनका टिकट काटा जा रहा है.
इसके बाद दोनों पक्षों की ओर से न सिर्फ जमकर नारेबाजी शुरू हो गई, बल्कि नौबत मारपीट तक पहुंच गई. हाथा-पाई में कई कार्यकर्ताओं के कपड़े फट गए.
जहां तक श्रवण कुमार निराला की बात है तो वह पिछले दो दशक से ज्यादा समय से बहुजन समाज पार्टी से जुड़े हुए हैं. गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति करने वाले और विश्वविद्यालय के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने वाले निराला ने जब सक्रिय राजनीति में कदम रखने की सोची तो अम्बेडकरी विचारधारा से जुड़े होने के कारण उन्होंने बहुजन समाज पार्टी को चुना. उनकी काबिलियत को पहचानते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने उन्हें संगठन के भीतर कई पदों पर भी रखा. 2008 में उन्हें जोनल को-आर्डिनेटर बनाया गया था. पिछले दो साल से वह बांसगांव विधानसभा के प्रभारी या यूं कहें कि प्रत्याशी के रूप में सक्रिय थे. लेकिन अब अचानक उनका टिकट काटने की खबर आ गई.
श्रवण निराला के इस्तीफे के बाद आनन-फानन में गोरखपुर के बसपा जिलाध्यक्ष ने एक विज्ञप्ति जारी कर बसपा प्रमुख मायावती के निर्देश पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने की बात कह कर निराला को पार्टी से निष्कासन की बात कही, हालांकि पहले के तमाम मिशनरी नेताओं की तरह पार्टी की ओर से इस बार भी नहीं बताया कि आखिर निराला ने क्या काम किया था जो पार्टी विरोधी था. इस तरह पार्टी को अपने जीवन के कीमती साल देने के बावजूद पार्टी से निकाले जाने वाले नेताओं की सूची में एक और नाम जुड़ गया है.
लेकिन यहां एक सवाल यह है कि आखिर बसपा की समीक्षा बैठकों के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से कार्यकर्ताओं के हंगामा करने की खबरें क्यों आ रही है. आखिर क्यों महाराष्ट्र के अमरावती में समीक्षा बैठक के दौरान कार्यकर्ताओं के गुस्से का शिकार होने के बाद पदाधिकारियों को बैठक से भागना पड़ा. सवाल है कि आखिर देश के तमाम हिस्सों से पार्टी के भीतर विरोध की खबरें क्यों आ रही हैं.
दरअसल तमाम जगहों पर विरोध की वजह यह है कि बैठक के दौरान कार्यकर्ता पार्टी पदाधिकारियों के सामने अपनी बात रखना चाहते हैं, जिसे सुनने में कुछ बड़े पदाधिकारियों की कोई दिलचस्पी नहीं दिखती है. तो वहीं सालों से पार्टी के भीतर लगे कार्यकर्ताओं को पार्टी संगठन में तो खूब इस्तेमाल करती है लेकिन जब इसमें से तमाम लोग टिकट की मांग करते हैं तो उन्हें निराशा हाथ लगती है. ऐसे में कार्यकर्ता खुद को ठगा हुआ महसूस करता है और विरोध पर उतर जाता है. इस तरह की खबरों से पार्टी की छवि को लगातार धक्का लग रहा है. इस बारे में बसपा नेतृत्व को गंभीरता से सोचने की जरूरत है.
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।