वह पत्रकार, जिसके कैंसर से जंग हार जाने पर पूरा मीडिया जगत कर रहा है याद

रवि प्रकाश के साथ बात करते अविनाश दास

(लेखक- अविनास दास) जनवरी, 2021 में रवि मुंबई आये थे। रांची में डॉक्टरों को कुछ शक़ हुआ, तो उन्हें टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल रेफ़र किया था। जब मालूम पड़ा कि रवि को आख़िरी स्टेज का लंग कैंसर है, उस वक़्त मैं उनके साथ था। ज़ाहिर है, हमारे पैरों के नीचे की ज़मीन ग़ायब हो चुकी थी। रवि रोने लगे। लेकिन उसके बाद से मैंने कभी रवि को रोते नहीं देखा। उसी दिन उन्होंने तय कर लिया था कि अगर उनके पास कम से कम छह महीने हैं, तो इन छह महीनों में क्या क्या करना है और अधिकतम साल भर है, तो साल भर में क्या क्या करना है। वह बचे हुए जीवन को जीने के लिए इस रफ़्तार में दौड़े कि मौत को उन तक पहुंचने में लगभग चार साल लग गये। डॉक्टरों की दी हुई समय सीमा से बहुत ज़्यादा जी कर गये। इसकी वजह उनकी जिजीविषा के अलावा और कुछ नहीं थी।

हम नब्बे के दशक के आख़िरी सालों में एक दूसरे से जुड़े। प्रभात ख़बर में काम करते हुए जब हरिवंश जी ने मुझे चंद्रशेखर रचनावली के संपादन के लिए दिल्ली भेजा और इस काम के लिए मुझे कोई सहयोगी साथ रखने को कहा, तो मैं रवि को अपने साथ ले गया। उसके बाद रवि ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। प्रभात ख़बर के देवघर संस्करण का पहला संपादक मैं था और मेरे बाद रवि को हरिवंश जी ने मेरी जगह भेजा। रवि जागरण और भास्कर समूह का अहम हिस्सा रहे। आख़िरी वर्षों में बीबीसी से जुड़े और इस मीडिया ग्रुप ने उनकी बीमारी ज़ाहिर होने के बाद जिस तरह से उनका साथ दिया, वह अद्भुत है, अनुकरणीय है।

 

रवि कीमो के लिए थोड़े थोड़े महीनों पर जब भी मुंबई आते, हमारी मुलाक़ात होती थी। वह हमेशा मुस्कुराते हुए और उत्साह से भरे हुए नज़र आते थे। जैसे कैंसर ने उन्हें कोई अलौकिक ऊर्जा दे दी हो। बचे हुए जीवन को वह बादशाह की तरह जीना चाहते थे और जी रहे थे। उन्होंने इस दरम्यान के हर पल को अपने कैमरे में क़ैद किया। “कैंसर वाला कैमरा” की प्रदर्शनी शृंखलाएं आयोजित की और उससे होने वाली आमदनी का बड़ा हिस्सा दूसरे कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए दान में दिया।

यह देखना भी कमाल था कि इस बीच उनकी पत्नी संगीता एक बेहद घरेलू महिला से किस तरह जुझारू महिला के रूप में सामने आयीं। यह जो तस्वीर है, संगीता जी ने ही ली थी – जब मैं दो साल पहले परेल के पास तारदेव में उनसे मिलने  गया था।

मुझे परसों उनके बेटे प्रतीक ने कॉल किया और कहा कि पापा की तबीयत बिगड़ रही है और अब शायद ही संभले। उसने मुझसे साफ़-साफ़ शब्दों में कहा कि सच बताऊं अंकल तो अब कुछ घंटे ही हैं। उसकी आवाज़ में ज़रा सी भी थरथराहट नहीं थी। आज भी जब मैं हॉस्पिटल पहुंचा, तो उससे पूछा कि सब ठीक है न – उसने बड़े ही संयत स्वर में कहा, “ही पास्ड अवे!” कब? दस मिनट पहले। प्रतीक अभी अभी आईआईटी दिल्ली से पढ़ कर निकला है और जीवन संघर्ष के नये दौर से मुख़ातिब है। उसे देख कर लगता है कि अब कोई भी झंझावात उसके आगे मामूली चीज़ होगी। वह अचानक से बहुत बड़ा हो गया है। हम सबसे भी बड़ा।

कल रवि का पार्थिव शरीर रांची पहुंचेगा। मैं भी साथ जा रहा हूं। वहां प्रेस क्लब में उन्हें दर्शनार्थ रखा जाएगा। मैंने रवि के साथ बहुत सारी यात्राएं की हैं। यह आख़िरी यात्रा भी मेरे हिस्से में लिखी थी।


फिल्म निर्देशक अविनाश दास के सोशल मीडिया एकाउंट एक्स से साभार।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.