प्रधानंत्री नरेन्द्र मोदी ने बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ का नारा दिया तो जनता को यकीन हो गया कि अब प्रशासन उनकी बेटियों की हिफाजत करेगा। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अपनी बेटी की संदेहास्पद मौत के बाद एक परिवार बीते 18 दिनों से न्याय की गुहार लगा रहा है और प्रशासन ने आंख और कान मूंद रखा है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रामेश्वर गर्ल्स हॉस्टल में रहकर जेईई की तैयारी करने वाली स्नेहा कुशवाहा की एक फरवरी को संदिग्ध मौत हो गई। 17 साल की स्नेहा बिहार के सासाराम के नगर थाना के तकिया मोहल्ले की रहने वाली थी। वह इंटर की छात्रा थी। एक फरवरी को स्नेहा भेलूपुर थाना क्षेत्र स्थित रामेश्वरम गर्ल्स हॉस्टल के अपने कमरे में फंदे से लटकी हुई पाई गई।
यह पूरे परिवार के लिए चौंका देने वाली घटना थी। क्योंकि 31 जनवरी की देर रात तक स्नेहा की उसकी मां से बातचीत होती रही। सब कुछ सामान्य था। फिर ऐसा क्या हो गया कि सुबह में खिड़की के ग्रिल से उसकी लाश लटकती हुई मिली। यह सवाल पूरे परिवार को खा रहा है जिसका जवाब यह परिवार पुलिस से तलाश रहा है। लेकिन जवाब देना तो दूर, इस मामले में वाराणसी पुलिस ही सवालों के घेरे में है। पिता सुनील सिंह कुशवाहा ने मीडिया से बातचीत में तमाम सवाल उठाए। उनका कहना है कि-
बेटी की मृत्यु की सूचना मिलने पर वे लोग वाराणसी पहुंचे तब तक उसकी बेटी का शव पोस्टमार्टम हाउस के अंदर चला गया था। वे लोग जब पोस्टमार्टम से पहले अपनी बेटी के लाश को देखना चाह रहे थे तो उन्हें देखने नहीं दिया गया। पोस्टमार्टम के उपरांत प्लास्टिक में लपेटकर स्नेहा का शव उन्हें सौंपा गया। इतना ही नहीं, वह शव को घर लाना चाहते थे। लेकिन वाराणसी में ही दाह संस्कार करने के लिए पुलिस ने उन पर दबाव बनाया। अंतत: उन्हें बनारस के मणिकर्णिका घाट पर अपनी बेटी की अंत्येष्टि करनी पड़ी।
परिजनों को हॉस्टल के संचालक पर शक है कि उसी ने कुछ गड़बड़ी की है।
स्नेहा की संदिग्ध मौत को लेकर कुशवाहा समाज सहित तमाम लोग बिहार से लेकर दिल्ली तक सड़कों पर हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में स्नेहा को न्याय दिलाने के लिए प्रदर्शन और कैंडल मार्च किया जा रहा है। कुशवाहा बुद्धिजीवी मंच के अध्यक्ष देवेन्द्र भारती ने पुलिस पर किसी के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया है।
कुशवाहा समाज द्वारा 16 फरवरी को दिल्ली के उत्तर प्रदेश भवन का घेराव किया गया। तो 17 फरवरी को कुशवाहा समाज ने इस मामले में राष्ट्रपति, पीएमओ, गृह मंत्रालय व उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक को एक ज्ञापन दिया। इसमें मांग की गई है कि-
- एफ आई आर में पॉक्सो के प्रावधान को तुरंत शामिल किया जाए।
- इस घटना की गहन जांच के लिए तत्काल सी बी आई को सौप कर अपराधी को न्याय के कटघरे में लाया जाए।
- पोस्टमार्टम रिपोर्ट पीड़िता के परिवार को सौपा जाए और डॉक्टर पर कर्रवाई की जाए।
- पीड़िता के शव को सही तरीके से नहीं सौपने और उसके साथ किये गए अपमान जनक व्यवहार व गुंडागर्दी करने वाली पुलिस कर्मियों को तुरंत प्रभाव से बर्खास्त किया जाए।
- पीड़िता के परिवार को दो करोड़ रूपये की आर्थिक सहयता दी जाए
- गर्ल्स हॉस्टल में सुरक्षा के नियमों को सख़्ती सेलागूकिया जाए
अब गेंद सरकार के पाले में है जो फिलहाल महाकुंभ में व्यस्त है। लेकिन प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में इस तरह की घटना कई सवाल खड़े करती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि घटना को रोकना अगर पुलिस के वश में नहीं था तो इसका पर्दाफाश करना और दोषियों को सजा देना तो उसके हाथ में है। फिर आखिर चारो ओर चुप्पी क्यों है?
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