लखनऊ। बीएसपी प्रमुख मायावती की सियासी दिनचर्या में थोड़ा सा बदलाव देखने को मिला है. छठे चरण तक रैलियों के मंच से ही पीएम नरेंद्र मोदी उनके निशाने पर थे. सातवें चरण में अब उनकी सुबह का आगाज भी मोदी पर हमले से हो रहा है. मोदी पर माया के आक्रमक तेवर निजी हमलों में बदल चुका है. जानकारों का कहना है कि आखिरी चरण की नजदीकी लड़ाई में मायावती की चिंता कोर वोटों में सेंध बचाने की है. साथ ही मोदी से सीधे मुकाबला होना 23 मई के बाद त्रिशंकु नतीजों की स्थिति में ‘विकल्प’ बनने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है.
यूपी में अब आखिरी चरण की 13 सीटों पर चुनाव बचा हुआ है. यह सभी सीटें पूर्वांचल की हैं. इसमें अधिकतर सीटें पिछड़ा, सवर्ण व दलित बहुल हैं. पिछड़े में गैर यादव अति-पिछड़ी जातियां अधिकतर सीटों पर प्रभावी हैं. वहीं दलितों में भी गैर जाटव वोटर कई सीटों पर अच्छी तादाद में हैं. 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दलित वोटों में भी अच्छी सेंधमारी की थी. अब एक बार फिर पूर्वांचल के जातीय कुरुक्षेत्र में मोदी की अगुआई में बीजेपी ने बीएसपी के इन कोर वोटों पर नजर गड़ा रखी है. पीएम मोदी जिस तरह से राजस्थान के अलवर में हुई सामूहिक बलात्कार की वीभत्स घटना पर मायावती की ‘जवाबदेही’ तय कर रहे हैं, यह इसकी नजीर है.
सीधी लड़ाई में परसेप्शन अपने वोटरों को जोड़ने के साथ ही फ्लोटिंग वोटरों को भी पाले में करने में अहम भूमिका निभाता है. महागठबंधन से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मायावती का मोदी पर तीखा हमला इसी रणनीति का हिस्सा है. आम तौर पर केंद्रीय एजेंसियों के दबाव या अपनी स्थानीय मजबूरियों में दबे क्षेत्रीय दलों (इक्का-दुक्का) ने मोदी पर इतने तीखे हमले नहीं किए है, जितना मायावती ने किया है. खुद मायावती पर कांग्रेस सीबीआई के दबाव में काम करने का आरोप लगा चुकी है. बीएसपी के एक नेता का कहना है कि मोदी पर सीधा व निजी हमला बोलकर मायावती की रणनीति अपने वोटरों को यह संदेश देने की है कि वह अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं और बीजेपी चुनाव हार रही है. कोर वोटरों को जोड़े रखने और जमीनी पर गठबंधन की गणित को और मजबूत करने के लिए यह संदेश जरूरी भी है. इसका असर हुआ तो बीजेपी के पाले में छिटकने वाली गैर-जाटव व अति पिछड़े जाति के वोटरों को भी गठबंधन के पाले में वापस लाना आसान होगा.
2019 के चुनाव की सबसे दिलचस्प बात यह है कि मोदी की राह में सबसे बड़ा रोड़ा इस बार यूपी बनता नजर आ रहा है. 2014 में इसी ने मोदी को शीर्ष पर बिठाया था. यूपी से हो रहे नुकसान की भरपाई के लिए बीजेपी को सबसे अधिक उम्मीद ममता बनर्जी की अगुवाई वाले पश्चिम बंगाल से है. ममता बनर्जी का मोदी के खिलाफ विरोध तो लोकतंत्र के ‘थप्पड़’ तक पहुंच चुका है. विपक्षी एकता के सूत्रधारों के लिए ममता और मायावती दोनों ही सबसे अहम किरदारों में हैं. मायावती के प्रधानमंत्री बनने के सपनों को उनके गठबंधन पार्टनर अखिलेश यादव से लेकर बिहार में आरजेडी के अगुआ लालू प्रसाद यादव भी दे चुके हैं.
हाल में ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी मायावती को संघर्षों का नैशनल सिंबल बताया. दिल्ली में तीसरे मोर्चे के लिए संभावना तभी बनेगी तब यूपी में महागठबंधन बीजेपी के आंकड़ों को काफी नीचे पहुंचा दे. ऐसी स्थिति में मायावती एसपी-बीएसपी गठबंधन के मुखिया के तौर पर दिल्ली की राजनीतिक फैसलों में भी अहम भूमिका निभाएंगी इसलिए भी नतीजों की घड़ी में मायावती ने खुद को मोदी के मुखर विरोधी के तौर पर स्थापित करना शुरू कर दिया है. रणनीतिक तौर पर रिजल्ट के पहले विपक्षी दलों की बैठकों से भी एसपी-बीएसपी की दूरी भी सभी विकल्पों को खुले रखने की ओर इशारा कर रही है.
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