लखनऊ। भदन्ताचार्य बुद्धत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान (बालाघाट, मध्यप्रदेश) की ओर से देश के विभिन्न शैक्षणिक व सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर पालि पखवाड़ा महोत्सव के तहत विविध कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। इसीक्रम में लखनऊ स्थित अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान परिसर में शनिवार को विचार संगोष्ठी आयोजित हुई।
इस दौरान वक्ताओं ने पालि भाषा-साहित्य एवं बौद्ध पर्यटन के विकास की सम्भावनाएं विषय पर अपने विचार साझा किए। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता भंते सुभीत ने कहा-बौद्ध धम्म के प्रचार-प्रसार के लिए सरकारों से ज्यादा समाज की जिम्मेदारी है। समाज जब तक जागरूक नहीं होगा। धम्म का प्रचार-प्रसार कर पाना मुश्किल है।
वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी डॉ. राजेश चंद्रा ने कहा कि बौद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार तब शुरू होगा, जब हम अपने बच्चों को पाली भाषा एवं साहित्य की शिक्षा देंगे। केंद्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रफुल्ल गणपाल ने कहा कि भगवान बुद्ध की शिक्षा मानव कल्याण पर केंद्रित थी। विश्व शांति व कल्याण को प्राप्त करने का मार्ग विपश्यना है।
अध्यक्षीय भाषण में केंद्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय के सहायक निदेशक प्रो. गुरुचरण नेगी ने कहा कि जब भारत में बौद्ध धम्म का प्रभाव घटने लगा तो श्रीलंका और तिब्बत में इसका प्रभाव बढने लगा। धीरे-धीरे बौद्ध धम्म विश्व के दूसरे देशों में फैल गया। अब भारत के लोग फिर से बौद्ध धम्म की ओर लौट रहे है।
पाली भाषा के शोध छात्र भीमराव अम्बेडकर ने कहा-हमारे देश के नेता विदेश जाते हैं तो वहां बोलते हैं कि हम बुद्ध के देश से आए है, लेकिन जब वापस आते है तो देश में बौद्ध धम्म के विकास के लिए कुछ नहीं करते। हमारे समाज को इसके लिए जागरूक होना होगा।
डॉ. आर.के. सिंह ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि हम पाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करवाने व राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देने के अभियान को फिर से शुरू करें। संगोष्ठी में सुजाता अम्बेडकर, सिद्धार्थ कुमार, तथागत कुमार ने भी विचार व्यक्त किए। इस दौरान चेतना कुमारी, नेहा बौद्ध, सुमन कुमार सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।
‘दलित दस्तक’ में डिजिटल कंटेंट एडिटर अरुण कुमार वर्मा पिछले 15 सालों से सक्रिय पत्रकार हैं। भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता करने के बाद अरुण वर्ष 2008 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। हिंदी दैनिक अमर उजाला से पत्रकारिता की शुरुआत करने के पश्चात राजस्थान पत्रिका व द मूकनायक जैसे प्रिंट व डिजिटल मीडिया संस्थानों में बतौर रिपोर्टर और एडिटर काम किया है। अरुण को 2013 में पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए ‘पण्डित झाबरमल पत्रकारिता पुरस्कार’ व वर्ष 2015 में प्रतिष्ठित ‘लाडली मीडिया पुरस्कार’ जीता है। अरुण उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के मूल निवासी है।