मेरे देशवासियों!
जश्न के अवसर पर
रोना वाला मनहूस होता है
मैं भी उन मनहूस लोगों में से एक हूं
जब पूरा देश
31 अक्टूबर के जश्न में डूबने के लिए उतावला है
तो मैं मनहूस
31 अक्टबूर के लिए
शोकगीत लिख रहा हूं
मेरे लिए तो यह खुशी का दिन होना चाहिए
मेरे प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट पूरा हो रहा है
विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा
हमारे देश में बनी है
वह भी सरदार पटेल की
गांधी के प्रिय शिष्य की
एकता-अंखडता के प्रतीक की
गर्व और जश्न के अवसर पर शोकगीत
लेकिन क्या करूं?
मुझे यह पता है कि
72 आदिवासी गांवों को उजाड़कर
बना है, पटेल का यह स्मारक
आप के लिए, दुनिया के लिए
यह पर्यटन स्थल होगा
मगर यह आदिवासियों के सपनों की कब्र है
आप कहेंगे कोई नई बात थोड़ी है
कब्रों पर तो ही सभ्यताएं विकसित हुई हैं
विकास परवान चढ़ा है,
आपको पता है,
31 अक्टूबर को
75 हजार आदिवासी घरों में चूल्हे नहीं जलेंगे
खाना नहीं बनेगा
ऐसा वे तब करते हैं,
जब किसी की मृत्यु होती है,
31 अक्टूबर को वे
सामूहिक मृत्यु दिवस मनाएंगे
मातम दिवस मनाएंगे
जब 31 अक्टूबर को
रंगारंग का कार्यक्रम हो रहा होगा
जश्न परवान पर होगा
प्रधानमंत्री जी
इस महान उपलब्धि पर गर्व कर रहे होंगे
मीडिया इस महान उपलब्धि का
ढिंढोरा पीट रही होगी
तब अपने घरों से उजाड़े गए हजाराें आदिवासी
दर-बदर भटक रहे होंगे
जहां उन्हाेंने अपना सारा जीवन गुजारा
उस जगह के लिए
हुड़क रहे होंगे
यह वही जगह है,
जहां सरदार पटेल की
विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा खड़ी की गई
उनका स्मारक बनाया गया है
मैं अपने उजाड़े गए आदिवासी
भाई-बहनों, चाचा-चाचियों के लिए
कुछ नहीं कर सकता
रो तो सकता ही हूं,
मातम तो मना ही सकता हूं
एक दिन उनके सामूहिक मृत्यु दिवस पर
उनके साथ भूखा तो रह ही सकता हूं
आपका जश्न आपको मुबारक
मैं उनके मातम में शामिल होऊंगा
भले आप मुझे मनहूस कहें
ताे कहते रहें
रामू सिद्धार्थ
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