बाराबंकी। देश की राजनीति में ऐसा दौर चल निकला है, जिसमें काम के इतर उसके प्रचार पर ज्यादा जोर दिया जाता है. ऐसा ही एक वाक्या यूपी के बाराबंकी जिले में हुआ. जहां, जिले के डिघावां गांव में एक पुल का शिलान्यास दो बार किया गया. दरअसल पहली बार सपा सरकार के अंतिम दिनों में इस पुल का शिलान्यास किया गया. हालांकि चुनाव आचार संहिता लागू होने की वजह से पुल का निर्माण कार्य तो शुरु नहीं हो सका. लेकिन सपा सरकार ने इसे लेकर वाहवाही जरुर लूटी. सपा को उम्मीद थी कि इसके बदले उन्हें भारी वोट मिलेंगे. लेकिन ऐसा हो नहीं सका और जिले की छह विधानसभा सीटों में से पांच पर भाजपा का कब्जा हो गया और इस तरह राजनीतिक उठापटक में पुल का निर्माण शुरु होने से पहले बंद हो गया.
हालांकि क्षेत्र के नए विधायक उपेंद्र रावत ने मौके की नज़ाकत को समझा और जिले की सांसद प्रियंका रावत के हाथों पुल का दोबारा शिलान्यास कराकर निर्माण कार्य शुरु करा दिया. वैसे तो सांसद प्रियंका रावत के कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं. ऐसे में उन्हें पुल का शिलान्यास नहीं बल्कि उद्घाटन करना चाहिए था. इसी को मुद्दे बनाकर पूर्व सपा विधायक राम गोपाल रावत ने भाजपा पर फर्जी वाहवाही लूटने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि भाजपा की न कोई नीति है और न कोई नीयत. इन्हें केवल राम-राम जपना, पराया माल अपना करना आता है. सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर मामले पर बयानबाजी का दौर शुरु हो चुका है.
राजनीतिक झगड़े से अलग सच्चाई यह है कि सपा और भाजपा किसी ने भी क्षेत्र की जनता की सहूलियत के लिए कार्य नहीं किया. दोनों पार्टी की ओर से सारा खेल श्रेय लेने का है. वाजिब है कि वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बाराबंकी जिले की सभी छह सीटें सपा को मिली. जिले के तीन विधायकों को मंत्रीमंडल में जगह मिली. इसके बावजूद सपा की ओर से बाराबंकी जिले के विकास को लेकर कोई खास काम नहीं किया गया. सपा सरकार के अंतिम दिनों में पुल के निर्माण की जद्दोजहद शुरु की गई, जिसका सीधा मतलब विधानसभा चुनाव में वोट बैंक हासिल करना था. दूसरी सच्चाई यह है कि भाजपा सांसद प्रियंका रावत की इन तीन वर्षों में जिले में कुछ खास काम नहीं किया गया.
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