अब हमें सीवर/सेप्टिक टैंकों में मारना बंद करो! बस, बहुत हो चुका! अब और नहीं चलेगा ये सब!
पिछले दिनों सफाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन किया गया जिसमें मैनुअल स्केवेंजरों, सीवर में मृतक उनके आश्रितों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सीवरों में मौतों के खिलाफ आवाज उठाई, सवाल पूछे और अपनी मांगे रखीं.
सवाल कुछ इस तरह थे –
- सीवर में मारे गए अब तक 1790 नागरिकों की मौतों का जिम्मेदार कौन? प्रधानमंत्री?? मुख्यमंत्री???
- प्रधानमंत्री /मुख्यमंत्रियों चुप्पी तोड़ो, बताओं मौतों के इन सिलसिलों को कब बंद करोगे?
इसके साथ ही उनकी मांगे थीं –
- जिन लोगों की जान सीवर/सेप्टिक में सफाई के दौरान जहरीली गैसों से दम घुटने से हुई है उन की जिम्मेदारी भारत सरकार ले और उनसे माफी मांगे.
- सीवर में हत्याओं को रोकने के लिए प्रधानमत्री तुरन्त एक्शन प्लान की घोषणा करें.
- सुप्रीम कोर्ट के 27 मार्च 2014 के आदेश का सख्ती से क्रियान्वयन किया जाए.
- मैनुअल स्केवेंजर्स अधिनियम 2013 का तुरन्त व गंभीरतापूर्वक पालन किया जाए.
- जो लोग सीवर में मृतकों की मौत के जिम्मेदार हैं उनको सजा दी जाए.
- सीवर सफाई के 100 प्रतिशत मशनीकरण का कार्य युद्धस्तर पर किया जाए.
- मृतक के परिवार के कम से कम एक सदस्य को गैर-सफाई कार्य में नौकरी दी जाए.
- मैनुअल स्केवेंजर्स के बच्चों को शुरू से उच्च शिक्षा तक सरकारी एवं निजी स्कूलों/कालेज में निशुल्क शिक्षा प्रदान की जाए.
- अभी मैनुअल स्केंवेंजिंग का कार्य कर रहे मैनुअल स्केवेंजरों को 10 लाख का ऋण नहीं बल्कि मुआवजा दिया जाए.
- 1993 से अब तक जिन लोगों की सीवर/सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान मृत्यु हुई है उनके आश्रितों को 10 लाख से बढ़ाकर 25 लाख मुआवजा दिया जाए.
सफाई कर्मचारी आंदोलन ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा उसमें भी उपरोक्त मांगों के अलावा ज्ञापन में उल्लेख किया गया कि –
- पिछले कुछ दिनों में 13 लोगों की सीवर सफाई के दौरान जहरीली गैस से दम घुटने से मृत्यु हो चुकी है इनमें से 6 लोग तो देश की राजधानी दिल्ली में ही मरे हैं. पिछले कुछ महीनों में 83 लोगों की सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान मृत्यु हुई है. वर्ष 2017 से अब तक 221 लोगों की मौत सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हुई है. वर्ष 1993 से अब तक 1790 लोगों की मौत सीवर/सेप्टिक टैंकों की सफाई करते समय हो चुकी है.
उपरोक्त आंकड़े तो वे हैं जो रिपोर्ट हुए हैं. ऐसे हजारों लोगों की मौत हुई है जिनको दर्ज नहीं किया गया है. इतने भयावह आंकड़े होते हुए भी दुखद है कि इन मौतों की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली है.
यू तो सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मृत्यु होने पर तुरन्त अनिवार्य रूप से मामला मैनुअल स्केवेंजर एक्ट 2013 एवं एससी/एसटी एक्ट संशोधित 2015 के तहत दर्ज किया जाना चाहिए परन्तु वास्तविकता यह है कि इसकी अनदेखी की जा रही है. किसी भी व्यक्ति को इसके लिए सजा न मिलना सरकार की रजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी को दर्शाता है. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने इस बारे में ठीक ही कहा था – ‘‘कानून विभिन्न अधिकारों की गारंटी दे सकता है. पर वास्तविक अधिकार वही होंगे जो आपको आपके संघर्ष से मिलेंगे.’’ इन कानूनों का क्रियान्वयन हमारे लिए कभी नहीं किया गया. सीवर में हमारी हत्याएं लोकतंत्र की भी हत्या है. यह बहुत ही भयावह एवं नाकाबिले-बर्दाश्त हैं.
गौरतलब है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत पूरे देश में लाखों शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है. इसके लिए लाखों की संख्या में सेप्टिक टैंक एवं ड्रेन बनाए जा रहे हैं. हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि ये हमारी समस्या को और बढ़ा रहे हैं. जितने अधिक शौचालय होंगो उतने अधिक मैनुअल स्केवेंजर होंगे और उतनी ही अधिक मौतें होंगीं. हमारी रक्षा की बजाय सरकार हमें और अधिक असुरक्षित बना रही है और बार-बार इस प्रकार की हत्याओं के लिए उकसा रही है.
मैनुअल स्केवेंजरों के पुनर्वास लिए वर्ष 2013-14 में सरकार ने 570 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया था उसे वर्ष 2017-18 में घटाकर सिर्फ 5 करोड़ कर दिया. क्या बिडंबना है!
सरकार मैनुअल स्केवेंजरों को सर्वे कर चिन्हित कर उन्हें मैला प्रथा से मुक्त कर उनका पुनर्वास करने के बजाय उनके अस्तित्व से इनकार कर उनके हक-अधिकारों को देने से ही इनकार कर रही है. जो लोग सीवर /सेप्टिक टैंको की सफाई के दौरान मारे गए थे सर्वे में उनका नाम कहीं नहीं आया. यदि सर्वे ठीक से कराया गया होता तो निश्चित ही अधिक से अधिक मैनुअल स्केवेंजरों और उनके आश्रितों के पुनर्वास होने की उम्मीद होती पर सरकार उचित ढंग से सर्वे न कर बस खानापूर्ति कर रही है.
जंतर–मंतर पर उपस्थित मेनुअल स्केवेंजरों और उनके लिए कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं का तेवर था कि – अब हमें सीवर/सेप्टिक टैंकों में मारना बंद करो! बस, बहुत हो चुका! अब और नहीं चलेगा ये सब!
भारत में साल में जितनी मौतें सीमा पर सैनिकों की होती हैं उससे अधिक मौतें सीवर/सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान मेनुअल स्केवेंजरों की होती हैं. सीमा पर सैनिकों की मौत की दुहाई देने वाली सरकार सीवर में मौतों पर चुप्पी क्यों साध लेती है? क्या इसलिए कि सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई में शत-प्रतिशत दलित होते हैं? क्या सरकार की जातिवादी, मनुवादी मानसिकता का परिणाम हैं ये मौते? क्या सरकारी नेता, मंत्रीं नौकरशाह स्वयं को या अपने बच्चों को इनमें घुसने की अनुमति दे सकते हैं? मानव मल की सफाई को आध्यात्मिक कार्य बताने वाले क्या खुद कभी सीवर/सेप्टिक टैंक में घुसकर इस आध्यात्मिकता का अनुभव करेंगे?
कई राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश से आए मैनुअुल स्कवेंजारों तथा क्रांतिकारी युवा संगठनं ने भी अपनी-अपनी मांगे रखीं. इनमें कुछ मुख्य मांगे थीं-
- सफाई कार्यों में निजीकरण और ठेका प्रथा पर तुरंत रोक लगाओ.
- सीवरों और नालों की सफाई का कार्य मशीनों से किया जाए और सभी सफाई मजदूरों को गैर-सफाई की पक्की नौकरी दी जाये.
- सफाई के कार्यों में लगे मजदूरों को विशिष्ट मजदूरों का दर्जा दिया जाए और उनके वेतन व भत्तों को बढ़ाया जाये.
- सफाई मजदूरों की सुरक्षा और आवास का प्रबंध किया जाये.
- मानव संभ्यता के लिए कलंक मानी जाने वाली मैला ढोने जैसे तमाम कामों पर तुरंत रोक लगाई जाये.
यहां पर विभिन्न राज्यों से आईं विधवाओें(जिनके पति सीवर सफाई के दौरान अपनी जान गंवा चुके थे) ने भी अपनी दर्द की दास्तान बयां की. उन्होंने कहा कि ये सीवर का काम तुरंत बंद किया जाए जिससे किसी और महिला को अपना पति न खोना पड़े. किसी और के बच्चे अनाथ न हों. अपनी व्यथा बताते-बताते महिलाएं भावुक हो गयीं. उनके आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे.
इस अवसर पर सफाई कर्मचारी आंदोलन के साथ अनेक लोगों और संगठनों ने अपनी भागीदारी, हिस्सेदारी और साझेदारी की जिसमें प्रमुख संगठनों के नाम हैं -एनसीडीएचआर, सीबीजीए, नैक्डोर, अस्मिता, भीम आर्मी, क्रांतिककारी युवा संगठन, अखिल भारतीय जाति विरोधी मंच आदि. वक्ताओं में बेजवाड़ा विल्सन, अंरूंधती रॉय , योगेन्द्र यादव, अशोक भारती, पॉल दिवाकर, एनी नामला, ऊषा रामानादन, दीप्ति सुकुमार, भाषा सिंह, डी.राजा, मनोज झा आदि गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया.
बीबीसी, न्यूज क्लिक, दलित दस्तक, नेशनल दस्तक, द वायर, सहित अनेक मीडियाकर्मियों ने भाग लिया.
इस धरना-प्रदशर्न का सीवर के सैंपल जलाते हुए तथा प्रधानमंत्री शर्म करो, सीवर में हत्याएं बंद करो के नारों से समापन हुआ.
राज वाल्मीकि
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दलित दस्तक ने सीवर/सेप्टिक टैंको में हो रही मौतों के विरोध में सफाई कर्मचारी आन्दोलन के विरोध को बहुत अच्छी तरह कवर किया.
इसके लिए वीरेंदर जाटव जी सहित पूरी दलित दस्तक टीम को बहुत बहुत बधाई !
“दलित दस्तक” ने हमेशा दर किनार कर दिए गए समाज की आवाज़ को स्थान दिया है.
मैंने दलित दस्तक के वीरेंदर जाटव जी द्वारा बनाए गए विडिओ को भी देखा.
उनकी प्रस्तुति का अंदाज़-ए-बयाँ बहुत आकर्षक है.
एक बार फिर वीरेंदर जाटव जी को अशोक दास जी को और दलित दस्तक की पूरी टीम को उनके सराहनीय कार्य के लिए हार्दिक धन्यवाद.
सादर
राज वाल्मीकि