आंध्र प्रदेश। एक बार फिर से जातिवाद का चेहरा नंगा हो गया है. पिछले दिनों जातिवादियों ने दलितों के लिए आम रास्ते का इस्तेमाल न करने को लेकर फरमान जारी किया था, जिसे न मानने पर दलित समुदाय का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया है. उनके बच्चों को स्कूल जाने से रोक दिया गया है और काम देने से इनकार कर दिया गया है. कथित अगड़ी जाति के लोगों का कहना है कि दलितों के गांव के मुख्य मार्ग से जाने पर उनके देवता अपवित्र हो जाएंगे. यह मंदिर सड़क के बीचों-बीच स्थित है. यह घटना 18 जनवरी की है, सामाजिक बहिष्कार से दलित समुदाय को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
घटना आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के कंचरलगुंटा गांव की है. गांव की अगड़ी जाति ‘खम्माज’ ने सितंबर, 2017 में मडिगा दलित समुदाय के लिए फरमान जारी करते हुए उन्हें मुख्य मार्ग का प्रयोग न करने की हिदायत दी गई थी. दलित समुदाय के कई लोगों ने इसे मानने से इनकार कर दिया था. जिसके बाद खम्माज ने मडिगा समुदाय के लोगों के साथ बैठक की थी. अगड़ी जाति के लोग इससे बेहद नाराज थे कि फरमान पर अमल नहीं किया जा रहा है. बैठक में दलितों को स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी गई थी कि गांव के मुख्य सड़क का इस्तेमाल करने पर उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाएगा.
इसके भय से समुदाय के लोगों ने अगड़ी जाति के साथ समझौते का प्रयास किया था. लेकिन, कथित तौर पर अगड़ी जाति के लोगों ने कहा कि दलित सड़क पर पैदल तो जा सकते हैं, वाहन के साथ नहीं. दलित समुदाय के एक व्यक्ति इसका विरोध करते हुए बाइक से जा रहा था. आरोप है कि अगड़ी जाति के कुछ लोगों ने कथित तौर पर बाइक की चाबी ले ली थी. इसके बाद स्थिति और बिगड़ गई थी. खम्माज समुदाय ने गांव के पूरे मडिगा समुदाय का बहिष्कार कर दिया.
बहिष्कार के चलते उनके बच्चे गांव में स्थित स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं. दलित समुदाय के जेसी. रमैया ने बताया, ‘खम्माज इस बात को लेकर आक्रोशित हैं कि दलित अब उनके आज्ञाकारी नहीं रहे’. तनातनी बढ़ने के बाद अगड़ी जाति के लोगों ने दलितों को दूध देना तक बंद कर दिया. यहां तक कि उन्हें खेतों में काम भी नहीं करने दिया जा रहा है. रमैया ने बताया कि दलितों से बात करने या दूध देने वालों पर दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया गया है.

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