दलितों की एक जाति चमार जिसे अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, ने देश-दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। चाहे राजनीतिक आंदोलन हो, सामाजिक आंदोलन या फिर धर्म का आंदोलन, यह जाति केंद्र में रही है। इसकी खासियत यह है कि यह दलित समाज की सभी जातियों को साथ लेकर चलती रही है। बाबासाहेब का अनुसरण करते हुए जब बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाना था, यही जाति सबसे आगे रही। तो वहीं दलित समाज में जन्मे संतों के संत, संत शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज के आंदोलन की कमान भी इसी समाज ने संभाली और रविदासिया धर्म की शुरुआत की। और इस नए धार्मिक और सामाजिक आंदोलन का केंद्र बना डेरा सच्चखंड बल्लां।
पंजाब के जालंधर में स्थित डेरा सच्चखंड बल्लां वर्तमान में रविदासिया धर्म का सबसे बड़ा केंद्र है। लेकिन डेरा सच्चखंड बल्लां महज एक धार्मिक केंद्र ही नहीं हैं, बल्कि सामाजिक आंदोलन भी कर रहा है, और देश एवं समाज को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है। इसके स्कूल चलते हैं, अस्पताल चलता है, 24 घंटे का लंगर चलता है। और इसके दरवाजे हर किसी के लिए हर वक्त खुले रहते हैं।
डेरा सच्चखंड बल्लां का यह प्रांगण अपने भीतर सतगुरु रविदास के विचारों को आगे बढाने वाले संतों की यादों को भी समेटे है। और इसकी परंपरा शुरू होती है 108 संत श्री सरवण दास से, जिनके नाम पर डेरा बल्लां बना है। संतों की परंपरा और उनकी यादों को भी डेरा सच्चखंड बल्लां में सहेज कर रखा गया है। यहां एक सत्संग भवन भी है, जहां हर रविवार को हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। तमाम मौकों पर मौजूदा गद्दीनशीन श्री 108 संत निरंजन दास जी महाराज श्रद्धालुओं को अमृतबाणी का प्रचार करते हैं।
यहां 24 घंटे का लंगर चलता है और सेवादार के रूप में रविदासिया समाज के लोग तन, मन, धन से इसके साथ जुड़े है।वाराणसी में सतगुरु रविदास के जन्म स्थान सिरगोवर्धनपुर में रविदास जयंती के मौके पर हर साल दुनिया भर से रविदासिया धर्म के लोग जुटते हैं। इसका संचालन भी जालंधर के डेरा सच्चखंड बल्लां से ही होता है। इस दौरान यहां देश के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा लगता है, जो रविदासिया समाज की बढ़ती ताकत की कहानी कहती है। जालंधर से विशेष ट्रेन बेगमपुरा एक्सप्रेस चलती है, जिसमें वर्तमान गद्दीनशीन श्री 108 संत निरंजन दास जी महाराज के साथ दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए एनआरआई भी संत रविदास जन्मस्थान वाराणसी पहुंचते हैं।
वाराणसी में सतगुरु रविदास जन्मस्थान को भव्य बनाने में मान्यवर कांशीराम से लेकर बहन मायावती तक ने अपना योगदान दिया था। तो यहां पूर्व राष्ट्रपति के.आर. नारायणन भी मत्था टेकने पहुंचे। हालांकि इस बीच एक सवाल यह भी उठता है कि रविदासिया धर्म को धर्म के रूप में मान्यता देने की मांग आखिर क्यों हो रही है? जानने के लिए देखिए यह वीडियो डाक्यूमेंट्री-
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।