Saturday, April 19, 2025
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इस दलित उद्यमी को खास तरह के जूते के लिए मिला इंटरनेशनल पेटेंट

विषम परिस्थितियों में भी दलित उद्यमी अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ने में सफल हो रहे हैं। ऐसे ही एक युवा हैं उपेंद्र रविदास, जो कि मूलत: बिहार के रहनेवाले हैं लेकिन देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई में अपना कारोबार करते हैं। इनकी कंपनी का नाम है रविदास इंडस्ट्रीज लिमिटेड। हाल ही में उपेंद्र रविदास ने एक नये तरह के जूते का अंतरराष्ट्रीय पेटेंट हासिल किया है। यह जूता खास तौर पर किसानों और उन मजदूरों के लिए है जो पानी में काम करते हैं। 

यह पूछने पर कि इस तरह के जूते बनाने की प्रेरणा कहां से मिली, उपेंद्र रविदास बताते हैं कि उनकी कंपनी मुख्य रूप से सेफ्टी जूते ही बनाती है। इसी क्षेत्र में हमारी विशेषज्ञता भी है। वह कहते हैं कि फैशनेबुल जूते व चप्पल बनाने के काम में तो सभी लगे हैं, लेकिन हम तो मिहनतकश लोगों के लिए काम करते हैं।

नये तरह के जूतों के बारे में उन्होंने बताया कि यह एक खास तरह का जूता है जो है तो गम बूट के जैसा ही, लेकिन यह रबर का है और इसके अंदर पाइप की व्यवस्था की गयी है ताकि उसके अंदर हवा रहे। यह जूता उनके लिए है जो लंबे समय तक पानी में काम करते हैं। ऐसे लोगों को सांप व अन्य विषैले जंतुओं का खतरा रहता है। इसके अलावा गांवों में जोंक आदि का डर भी रहता है। यह जूता उन सफाईकर्मियों के लिए भी है जो सीवर वगैरह में उतर कर काम करते हैं। अभी तक जो जूते इस्तेमाल में लाए जाते हैं, उनमें खामी यह है कि वे उपर से खुले होते हैं और उनके अंदर पानी घुस जाता है। लेकिन जिस जूते के डिजायन का हमें पेटेंट मिला है, और जिसका उत्पादन हमलोगों ने शुरू कर दिया है, उसमें व्यवस्था है कि पानी जूते के अंदर ना जाय। 

बताते चलें कि महज आठवीं पास उपेंद्र रविदास ने कोलकाता में अपने पिता के साथ मिलकर जूते गांठने का काम शुरू किया और बाद में मुंबई चले गए। वहां उन्होंने सेफ्टी जूतों के कारोबार में हाथ आजमाया और खुद को सफल साबित किया। अपने पारंपरिक पेशे को अपनाने के संबंध में उपेंद्र कहते हैं कि यदि हमारे पास हुनर है तो हम इसका उपयोग क्यों ना करें। हमें अपने पारंपरिक हुनर को आज के बाजार के अनुसार विकसित करना चाहिए और इसमें कोई बुराई नहीं है।

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