अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को जब से आरक्षण का लाभ मिला है, एक वर्ग विशेष हमेशा से इस पर सवाल उठाता रहा है। पिछड़े वर्ग को आरक्षण मिलने के बाद तो विरोध ज्यादा बढ़ गया है। आए दिन आरक्षण खत्म करने को लेकर आंदोलन होता है। हैरत की बात यह है कि संवैधानिक संस्थाएं भी इस पर सवाल उठाने लगी है। 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर टिप्पणी की है, जिसके बाद बहुजन समाज में इसको लेकर रोष है।
बीते 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए आरक्षण की 50% की अधिकतम सीमा पर पुनर्विचार की संभावना जताई है। इस प्रकार शैक्षणिक संस्थाओं में पहले से चली आ रही आरक्षण की अधिकतम 50% की सीमा का विस्तार हो सकता है। इस विषय में आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में तरह-तरह की अटकलबाजियों का दौर शुरू हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सन 1992 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा अब वर्तमान समय की आवश्यकताओं के मद्देनजर उचित प्रतीत नहीं होती। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इतने वर्षों में हुए संवैधानिक संशोधनों के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं। ऐसे में राज्य एवं संविधान द्वारा सामाजिक आर्थिक बदलावों को देखते हुए आरक्षण के मुद्दे की जांच आवश्यक है।
गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। चुनौती देने वाले पक्ष के सामने सुप्रीम कोर्ट ने बहस के दौरान 6 महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि क्या इंदिरा साहनी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में दिए गए फैसले को और बड़ी पीठ के पास भेजे जाने की जरूरत है? या फिर इस फैसले के बाद हुए संवैधानिक संशोधनों निर्णय और समाज में आए बदलाव के अनुसार हमें इस पूरे मामले का फिर से विश्लेषण करने की आवश्यकता है?
इस टिप्पणी के बाद सुप्रीम कोर्ट में सभी राज्यों से राय मांगी है कि वे 50% आरक्षण की अधिकतम सीमा के विषय में स्वयं क्या सोचते हैं। इस प्रकार अब निर्णय लेने की बारी राज्यों की है अलग अलग राज्य अपनी तरफ से अपना मंतव्य एवं रिपोर्ट पेश करेंगे। अब यह देखना होगा कि सभी राज्यों की तरफ से आने वाले सुझाव क्या होते हैं। इसके बाद तय हो पाएगा कि आरक्षण के मुद्दे पर देश और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय लेता है।
इस मुद्दे पर सामाजिक आंदोलन से निकले, पूर्व मंत्री और वर्तमान में राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक का कहना है कि आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए आंदोलन की जरूरत है, ताकि आए दिन इस पर उठने वाले सवाल खत्म हो सके।
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