उत्तर प्रदेश में चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, सत्ता की लड़ाई तेज होती जा रही है। और इस राजनैतिक लड़ाई में भाजपा की हवा टाईट होती जा रही है। 11 जनवरी को मंत्री पद और भाजपा से इस्तीफा देकर स्वामी प्रसाद मौर्या ने एक ऐसा धमाका कर दिया है, जिसकी गूंज एक दिन बाद तक सुनाई दे रही है।
मौर्या अपने साथ चार अन्य विधायकों को भी सपा में ले गए हैं, जिसमें दो मंत्री हैं। तो वहीं उनके इस दावे के बाद कि कतार में कई और भी विधायक हैं, भाजपा घबराई हुई है। भाजपा इतनी घबराई है कि एक ओर उसके नेता सिद्धार्थ सिंह कह रहे हैं कि पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता तो दूसरी ओर अंदरखाने भाजपा मौर्य से वापसी की मिन्नते कर रही है। क्योंकि मौर्य जिस केईरी कुशवाहा समाज से ताल्लुक रखते हैं, प्रदेश में उसका वोट 5 प्रतिशत है। तो दारा सिंह चौहान भी अपने समाज में पैठ रखते हैं। दरअसल स्वामी प्रसाद मौर्य के इस झटके से यूपी की सियासत बदलने लगी है और भाजपा जिस ओबीसी के बूते पिछले पांच साल से उत्तर प्रदेश में और तकरीबन आठ साल से केंद्र में राज कर रही है, उसका यह किला दरकने लगा है। एक के बाद एक जैसे-जैसे भाजपा से ओबीसी नेता बाहर आते जा रहे हैं, उससे भाजपा अपनी पुरानी छवि ब्राह्मण-बनिया पार्टी के रूप में एक बार फिर से स्थापित होती जा रही है।
भाजपा इससे इतना घबरा गई है कि वह पार्टी में बचे ओबीसी नेताओं को हर कीमत पर साधने में जुटी है। और जब मामला सीएम योगी और यूपी के नेताओं से नहीं संभल रहा है तो खुद भाजपा के नंबर दो नेता अमित शाह सामने आ गए हैं। और जिन ओबीसी नेताओं के भाजपा छोड़ने की अटकलें हैं, उनको दिल्ली बुलाकर समझाने या ऐसा कहें कि मैनेज करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को तब झटका लगा जब दारा सिंह चौहान ने केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया।
भाजपा की घबराहट की एक बड़ी वजह यह भी है कि भाजपा छोड़ने वाले तमाम ओबीसी नेता समाजवादी पार्टी में जा रहे हैं जिससे एक ओर जहां भाजपा का जनाधार खिसकता जा रहा है तो सपा का जनाधार बढ़ता जा रहा है। 10 फरवरी को चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति में अभी काफी हचलच बाकी है।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।