यूपी में बड़ा नौकरी घोटालाः योगी सरकार ने सवर्णों को दे दी बहुजनों की 6000 नौकरी

5107

भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रह्मणयम स्वामी के आरक्षण को लेकर दिये उस बयान को बार-बार दोहराने और याद रखने की जरूरत है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भाजपा सरकार आरक्षण को कानूनी तौर पर खत्म नहीं करेगी, बल्कि उसे ऐसी जगह लाकर छोड़ देगी कि आरक्षण होने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

 आप केंद्र यूसे लेकर भाजपा शासित तमाम राज्यों के आंकड़े उठा कर देख लिजिए, आरक्षित वर्ग को नौकरियों में मिलने वाले आरक्षण को लेकर तमाम अनियमितताएं देखने को मिल जाएगी। केंद्र सरकार द्वारा घोषित लैटरल एंट्री का नतीजा सबके सामने है। नया घोटाला उत्तर प्रदेश में सामने आया है, जिसमें बहुजन समाज के युवाओं की तकरीबन 6000 नौकरियां साजिश के तहत सवर्ण समाज के युवाओं को दे दिया गया है। उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने कहा है कि परिषदीय प्राइमरी स्कूलों के लिए निकली 69 हजार सहायक शिक्षकों की भर्ती में रिजर्वेशन के नियमों का पालन ठीक से नहीं किया गया।

रिक्रूटमेंट प्रोसेस में रिजर्वेशन को लेकर बड़े स्तर पर हुई इस गड़बड़ी की शिकायत राष्ट्रपति और राज्यपाल तक पहुंची थी। OBC और SC समाज के तमाम अभ्यर्थियों ने विरोध जताते हुए राष्ट्रपति और राज्यपाल को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की थी। तब जाकर जांच शुरू हुई और इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. लोकेश कुमार प्रजापति ने इस मामले में एक अंतरिम रिपोर्ट दी है। इस रिपोर्ट में यह सामने आया है कि हर जिले की लिस्ट में भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई है और आरक्षित वर्ग के कैंडिडेट्स की जगह गैर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की नियुक्ति हुई है। यानी बहुनजों की नौकरी सवर्णों को दे दी गई है।

इस घोटोले को लेकर हर ओर से सवाल उठ रहा है और योगी सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। और ऐसा नहीं है कि ऐसा अनजाने में हो गया है। दरअसल इस भर्ती प्रक्रिया में अंतिम तौर पर जारी किए गए सफल कैंडिडेट्स की लिस्ट में कैंडिडेट्स की कैटेगरी का उल्लेख ही नहीं किया गया है। यानी कि लिस्ट में बताया ही नहीं गया कि चयनित होने वालों में कौन एससी वर्ग से है, कौन ओबीसी है और कौन सामान्य वर्ग से है। हालांकि जब सभी लिस्ट को जिलेवार प्रकाशित किया गया था तो उनमें चयनित उम्मीदवारों की श्रेणी भी बताई गई थी और यहीं से मामला सामने आ गया।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के उपाध्यक्ष द्वारा जारी की गई अंतरिम रिपोर्ट में बताया गया है कि सभी जिलों में प्रकाशित लिस्ट और कैंडिडेट्स की कैटेगरी को लेकर चयन प्रक्रिया में काफी बड़े लेवल पर अनियमितता पाई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि OBC को 18,598 सीटें मिली थीं, लेकिन उनके हिस्से की 5844 सीटें गैर आरक्षित वर्ग को दे दी गई है। जो सूचना सामने आ रही है उसके मुताबिक 69 हजार शिक्षक भर्ती में आरक्षण के नियमों का घोर उल्लंघन हुआ है। OBC को 27% की जगह मात्र 21% और SC-ST को 22.5% की जगह सिर्फ 18% आरक्षण दिया गया है जो असंवैधानिक है। हालांकि इस मामले में 15 दिनों में रिपोर्ट मांगी गई है, जिसके बाद साफ हो पाएगा कि यह घोटाला कितने बड़े स्तर का है।

निश्चित तौर पर प्रदेश का मुखिया होने के नाते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी सवाल उठता है, क्योंकि योगी एक कड़े प्रशासक माने जाते हैं और उनकी सहमति और जानकारी के बिना इतना बड़ा नौकरी घोटाला संभव नहीं है। और अगर यह घोटाला उनकी नाक के नीचे हुआ है तो सवाल उनकी नेतृत्व क्षमता पर उठता है। सवाल उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या पर भी उठता है, क्योंकि वह पिछड़े वर्ग से आते हैं और अगर इसके बावजूद वह पिछड़े वर्ग के ही हितों की रक्षा करने में नाकाम रहे हैं, तो संभवतः वह भाजपा की सरकार में रबर स्टैंप के अलावा कुछ भी नहीं हैं।

इस नौकरी घोटाले के सामने आने के बाद भाजपा सरकार को वोट देने वाले उन पिछड़े और दलित समाज के युवाओं को भी एक बार समझना होगा कि वो जिस भाजपा को वोट देकर सत्ता में लाए थे, और वह जिनसे ‘अच्छे दिन’ लाने की उम्मीद लगाए बैठे थे, दरअसल वह उनकी नहीं, सिर्फ सवर्णों की परवाह करती है। क्योंकि यह सरकार उन्हें नौकरी देने की बजाय उनकी नौकरियां छीनकर ऊंची जाति के लोगों को दे रही है। ऐसे में वक्त आ गया है कि बहुजन युवा यह समझें कि उनके हितों की रक्षा कौन सा राजनैतिक दल और कौन सा नेता कर सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.