जरा बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के शासनकाल को याद करिए। बसपा शासनकाल में जैसे ही बड़े पदों पर दलितों की पोस्टिंग हो जाती है या फिर सपा शासनकाल में जैसे ही बड़े पदों पर यादव आ जाते थे, इन सरकारों पर जातिवादी होने का ठप्पा लगा दिया जाता था। इस काम में जातिवादी मीडिया और भाजपा के लोग सबसे आगे रहते हैं। लेकिन भाजपा सरकार में अधिकारियों की तैनाती का जो आंकड़ा सामने आया है, वह भाजपा के भीतर के जातिवाद की कहानी कहता है।
अभी यूपी में भाजपा की सरकार है और प्रदेश में अधिकारियों की तैनाती का 30 दिसंबर 2021 तक का जो आंकड़ा सामने आया है, वो इस बात की ओर इशारा करती है कि बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में अधिकारियों की तैनाती उनकी जाति के हिसाब से हुई है। और इसमें ऊंची जाति के लोग भरे पड़े हैं। हम ये आंकड़े आपके सामने इसलिए रख रहे हैं क्योंकि यही बीजेपी सरकार जब अपोजिशन में थी तो उत्तर प्रदेश में बड़े पदों पर ओबीसी या एससी/ एसटी की तैनाती पर सवाल उठा रही थी और उसे सपा/बसपा का जातिवाद बता रही थी।
जो डेटा हमारे पास है उसके मुताबिक यूपी के 75 जिलों में से 30 जिलाधिकारी यानी DM सामान्य वर्ग के हैं, इनमें सीएम योगी की जाति यानी राजपूत जाति के 20 डीएम हैं। तो करीब 11% ब्राह्मण जाति के डीएम हैं। अनुसूचित जाति की बात करें तो सिर्फ 4 DM दलित समाज से आते हैं।
अब उत्तर प्रदेश के जिलों में SSP/SP की तैनाती पर नजर डालेंगे तो वहां पर भी यही देखने को मिलता है… प्रदेश के 18 जिलों की कमान ठाकुर जाति के हाथ में है, जबकि इतने ही यानी 18 जिलों में ब्राह्मण जाति के SSP तैनात हैं। सिर्फ 5 जिलों के पुलिस कप्तान SC-ST समाज से हैं।
OBC जाति की बात करें तो उनकी स्थिति थोड़ी बेहतर है। सूबे में ओबीसी समाज के 14 DM तैनात हैं। जबकि प्रदेश के 12 जिलों में ओबीसी पुलिस कप्तान हैं। हालांकि इसमें दिलचस्प यह भी है कि योगी सरकार ने यादव अधिकारियों पर भरोसा नहीं जताया है। और सिर्फ 1-1 जिले में DM और पुलिस कप्तान यादव रखे गए हैं।
तो वहीं एक भी जिले की कमान मुस्लिम अधिकारियों को नहीं सौंपी गई है। हालांकि 1 सिख और 1 क्रिश्चियन को जिले की कमान डीएम के तौर पर सौंपी गई हैं।
हालांकि तमाम सरकारें अपनी जाति के अधिकारियों की भर्ती करती रही है, लेकिन सवाल यह है कि सपा और बसपा के शासनकाल में ऐसी नियुक्तियों को जातिवाद कहने वाली भाजपा और उसके नेताओं को अपना जातिवाद क्यों नहीं दिख रहा? क्योंकि जिस तरह से इस सरकार में सवर्ण अधिकारियों को और खासकर सीएम योगी की जाति के अधिकारियों को विशेष तव्वजो दी जा रही है, वह जातिवाद नहीं तो और क्या है?

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।