वे पांच किताबें, जो आरएसएस की विचारधारा ( हिंदूवादी) के महल को पूरी तरह ध्वस्त कर सकती हैं

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आरएसएस की विचारधारा को पूरी तरह ध्वस्त किए बिना समता, स्वतंत्रता और भाईचारे पर आधारित भारत को न बचाया ( जिनता भी है, जैसा भी है) जा सकता है और न बनाया जा सकता है। आरएसएस की विचारधारा हिंदू धर्म- दर्शन ( वेद, पुराण, स्मृतियां, वाल्मीकि रामायण और गीता जिसका आधार हैं), ईश्वर के विभिन्न अवतारों और हिंदू धर्म के धार्मिक सांस्कृतिक नायकों ( मूलत: दशरथ पुत्र राम), वर्ण-जाति व्यवस्था और जातिवादी पितृसत्ता के आदर्शों-मूल्यों पर टिकी हुई है।

ये पांच किताबें आरएसएस की विचाराधारा की धज्जियां उड़ा देती हैं और आसएसएस को पराजित करने के लिए सबसे कारगर हथियार हैं।

1- गुलामगिरी- जोतिराव फुले
2- जाति का विनाश- डॉ. आंबेडकर
3- सच्ची रामायण- ई. वी. रामासामी पेरियार
4- हिंदू धर्म की पहेलियां- डॉ. आंबेडकर
5- हिंदू संस्कृति और स्त्री- आ. हा. सालुंखे
जहां जोतिराव फुले की गुलामगिरी विष्णु के विभिन्न अवतारों के निकृष्ट और ब्राह्मणवादी चरित्र को विस्तार से उजागर करती है। इसमें विष्णु के एक अवतार परशुराम का हिंसक और घिनौना चरित्र भी शामिल हैं।
दशरथ पुत्र राम आरएसएस के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सबसे बड़े महानायक हैं। उनके नाम पर चलाए गए राम मंदिर आंदोलन ने आरएसएस-भाजपा को भारतीय समाज और राजसत्ता पर वर्चस्व कायम करने का अवसर मुहैया कराया। आज जै श्रीराम नारा का हिंदुत्व की राजनीति का सबसे मुख्य नारा है।
पेरियार की सच्ची रामायण और आंबेडकर की किताब हिंदू धर्म की पहेलियां दशरथ पुत्र राम का चरित्र कितना निकृष्ट था, इसको वाल्मीकि रामायण के तथ्यों के आधार ही उजागर कर देती हैं। राम किसी तरह से आदर्श और अनुकरणीय चरित्र नहीं हैं पेरियार ने सच्ची रामायण में और आंबेडकर ने हिंदू धर्म की पहेलियां ( राम की पहेली) में तथ्यों और तर्कों के साथ यह साबित कर दिया है।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश ( त्रिदेव) हिंदू धर्म की त्रिमूर्ति हैं। इन्हीं पर हिंदू धर्म टिका हुआ है। आंबेडकर ने हिंदू धर्म की पहेलियां ( त्रिमूर्ति की पहेली) में इनके असली चरित्र को हिंदू पौराणिक ग्रंथों के आधार पर चित्रित किया। जिसमें इन्हें सती अनसूया के साथ सामूहिक बलात्कार का अपराधी भी ठहराया गया है।
हिंदू धर्म की देवियों की असली चरित्र को भी डॉ. आंबेडकर ने हिंदू धर्म की पहेलियों में उजागर किया है।
वेद, पुराण, वाल्मीकि रामायण और गीता हिंदू धर्म के आधार ग्रंथ हैं। इनकी इन ग्रंथो की असल हकीकत क्या है? डॉ. आंबेडकर ने हिंदू धर्म की पहेलियों में उजागर किया है।
वर्ण-जाति व्यवस्था हिंदू धर्म का प्राण है। डॉ. आंबेडकर ने अपनी किताब जाति के विनाश में वर्ण-जाति व्यवस्था के पक्ष में वेदों से लेकर आधुनिक युग में दयाननंद सरस्वती और गांधी द्वारा दिए तर्कों की धज्जियां उड़ा दी है और बताया है कि वर्ण-जाति व्यवस्था मानव इतिहास की सबसे निकृष्ट व्यवस्था थी और है। इसी किताब में डॉ. आंबेडकर ने हिंदू धर्मग्रंथों के मनुष्य विरोधी चरित्र को भी उजागर किया है और हिंदू धर्म ग्रंथों को डायनामाइट से उड़ा देने जोरदार पैरवी की है।
हिंदू धर्म महिलाओं को भी शूद्रों की श्रेणी में रखता है। वेदों- स्मृतियो से लेकर महाभारत और वाल्मीकि रामायण तक हिंदू धर्म महिलाओं के प्रति कितनी घिनौनी राय रखता है और कितना क्रूर है। और महिलाओं पुरूषों की दासी बनाए रखने के लिए क्या-क्या प्रावधान करता है। इसको विस्तार से उजागर आ. ह. सालुंखे ने अपनी किताब हिंदू संस्कृति और स्त्री में किया है।
इन पांच किताबों में से चार किताबों को अन्तर्वस्तु और साज-सज्जा दोनों मामलों में सबसे बेहतर तरीके से फारवर्ड प्रेस ने हिंदी प्रकाशित किया है। पांचवी किताब संवाद प्रकाशन ( आलोक श्रीवास्तव) ने प्रकाशित की है।
इन किताबों को आरएसएस-भाजपा को चुनौती देने की चाहत रखने वाले उदारवादी, वामपंथी और बहुजन-दलित आंदोलन के लोग क्यों कारगर तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। इस विषय पर फिर कभी।

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