24 जनवरी, 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया को अपने जन्म से धन्य करने वाले कर्पूरी ठाकुर वंचित बहुजन समाज में जन्मे उन दुर्लभ नेताओं में एक रहे, जिन्होंने स्वाधीनता संग्राम में प्रभावी योगदान के साथ स्वाधीन भारत की राजनीति में भी अमिट छाप छोड़ी। उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन से हुई थी।
कर्पूरी ठाकुर ने न सिर्फ सामाजिक न्याय के मोर्चे पर अद्भुत दृष्टान्त स्थापित किया, बल्कि ईमानदारी की भी दुर्लभ मिसाल कायम की। काबिले गौर है कि कर्पूरी उस नाई जाति से थे; जिस जाति का संख्या बल मतदान को प्रभावित करने की स्थिति में कभी नहीं रहा। बावजूद इसके 1952 से लेकर अपने जीवन की शेष घड़ी तक वह विधायक, एक बार सांसद, एक बार उप मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री बने।
कर्पूरी ठाकुर ने पिछड़ों के लिए 26 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का साहस दिखाया। 18 महीने बाद ही उन्हें आरक्षण लागू करने के कारण मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। उन्हें अंजाम पता था, बावजूद इसके उन्होंने वंचितों के हित में जोखिम लिया।
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