मुंबई। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई के स्टूडेंट्स ने विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. ये छात्र इंस्टीट्यूट का निजीकरण करने और एससी-एसटी वर्ग के छात्रों को मिलने वाली आर्थिक मदद बंद होने का विरोध कर रहे हैं. कैंपस के भीतर होने वाला यह सबसे बड़ा प्रदर्शन है क्योंकि बुधवार से चल रहा आंदोलन अब भी जारी है. और इसमें पूरे इंस्टीट्यूट के स्टूडेंट शामिल हैं.
इससे पहले पिछली रात को भी स्टूड़ेंट ने रात को कैंपस में मार्च किया था. फिर बुधवार की सुबह से ही छात्र कैंपस में विरोध प्रदर्शन के लिए निकल गए थे. 500 से ज्यादा छात्र-छात्राओं ने इंस्टीट्यूट के मेन गेट पर इकट्ठा होकर गेट बंद कर दिया. वहां तीन घंटे के लंबे विरोध प्रदर्शन के बाद इंस्टीट्यूट प्रशासन ने गेट पर जाकर ही छात्रों से मुलाकात की, हालांकि प्रशासन ने तुरंत कुछ भी कहने से इंकार कर दिया और चौबीस घंटे का वक्त मांगा है.
छात्रों का आरोप है कि इंस्टीट्यूट की फीस लगातार बढ़ाई जा रही है, ताकि गरीब बच्चे यहां दाखिला नहीं ले पाएं. इससे पहले ओबीसी छात्रों को मिलने वाली आर्थिक मदद 2015 में बंद की जा चुकी है, जिसके बाद संस्थान में ओबीसी विद्यार्थियों की संख्या तेजी से गिरी है.
इधर इंस्टीट्यूट के पूर्व डायरेक्टर परशुरामन का कहना है कि इंस्टीट्यूट पिछले 14 सालों से छात्रों को फंड दे रही है. उन्होंने छात्रों से बात करते हुए गलत भाषा का भी इस्तेमाल किया जिस पर छात्र भड़क गए. इसके बाद स्टूडेंट्स ने कहा है कि वह मांगे माने जाने तक विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे.
इधर एससी-एसटी विद्यार्थियों का कहना है कि जिस तरह से ओबीसी छात्रों की आर्थिक मदद रोकने के बाद इंस्टीट्यूट में अब ओबीसी स्टूडेंट्स की संख्या घट गई है. अगर एससी-एसटी स्टूडेंट्स की आर्थिक मदद बंद की गई तो उनका भी वही हाल होगा. एससी-एसटी स्टूडेंट्स ने सामाजिक न्याय मंत्रालय और ट्राइबल मंत्रालय तक इस बारे में अपनी गुहार पहुंचाई लेकिन इन दोनों जगहों से छात्रों को झूठे आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं मिला. फिलहाल छात्रों ने अपनी लड़ाई खुद लड़ने का बीड़ा उठा लिया है.
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