6 दिसंबर को बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर का परिनिर्वाण दिवस होता है. इस साल बाबासाहेब का 63वां परिनिर्वाण दिवस है. अम्बेडकरी आंदोलन से जुड़े लोग इस दिन देश भर में कार्यक्रम आयोजित कर बाबासाहेब को श्रद्धांजलि देते हैं. लेकिन क्या डॉ. आम्बेडकर सिर्फ वंचित तबके के लिए ही महत्वपूर्ण हैं. अगर आप अपने दिमाग को खुला रख कर इस सवाल का जवाब ढूंढ़ेंगा तो जवाब होगा नहीं.
क्योंकि डॉ. आम्बेडकर ने न सिर्फ देश के शोषित समाज के लोगों को संविधान में अधिकार दिलवाया, बल्कि महिलाओं और मेहनतकशों की बेहतरी और मुक्ति के लिए भी कई कानून बनाएं. वह भारत के संविधान निर्माता थे, देश के पहले कानून मंत्री थे. रिजर्व बैंक के गठन में भी डॉ. आम्बेडकर का महत्पूर्ण रोल रहा. देश की इस महान शख्सियत के परिनिर्वाण के मौके पर “दलित दस्तक” ने देश के प्रमुख अखबारों और वेबसाइटों को खंगाला और जानने की कोशिश की कि आखिर उन्होंने बाबासाहेब को और उनके काम को कितना याद किया है.
हमारी इस पड़ताल के नतीजे चौंकाने वाले थे. तमाम महान कामों के जरिए देश की आधी से ज्यादा आबादी की जिंदगी बदल कर रख देने वाले डॉक्टर आम्बेडकर की पुण्यतिथि पर इस देश की मीडिया ने चुप्पी साध रखी है.
हमने प्रमुख अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस को खंगाला. तो वहीं हिन्दी के अखबार हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण और अमर उजाला को भी टटोला. जबकि नवभारत, आजतक और एनडीटीवी की वेबसाइट को सर्च किया. इसके बाद हमें जो नतीजा मिला, वह सुनिए. किसी भी अखबार के पहले पन्ने पर डॉ. आम्बेडकर से जुड़ी कोई खबर नहीं थी. यहां तक की एडिटोरियल में भी डॉ. आम्बेडकर को पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया गया. उनको याद नहीं किया गया. सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस में वरिष्ठ नेता डी. राजा का लिखा एक आर्टिकल अखबारों की इज्जत बचा रहा है.
लेकिन अगर हिन्दी अखबारों की बात करें तो हिन्दुस्तान से लेकर जागरण और अमर अजाला तक ने पुरी तरह से चुप्पी साध रखी है. हां, तमाम अखबारों ने बाबरी विध्वंस की खबर का जिक्र प्रमुखता से जरूर किया है.
हमने हिन्दी के जिन वेबसाइटों को खंगाला उनमें कुछ वेबसाइटों ने नीचे एक खबर जरूर डाली है, लेकिन उसे प्रमुख रूप से नहीं दिखाया गया है.
हां, तमाम अखबार सरकारी विज्ञापन बटोरने में जरूर कामयाब रहे हैं. इसमें एक विज्ञापन केंद्र सरकार द्वारा दिया गया है तो दूसरा दिल्ली के केजरीवाल सरकार के मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम द्वारा.
आप फर्ज करिए कि आज दो अक्टूबर होता, या फिर जयप्रकाश नारायण, इंदिरा गांधी, जवाहर लाल नेहरू जैसे नेताओं की पुण्यतिथि होती, तो भी क्या अखबार ऐसे ही खामोश रहतें. जाहिर है… नहीं. फिर आखिर इस देश का मीडिया डॉ. आम्बेडकर को नजरअंदाज क्यों करता है, वह उनके विचारों का जिक्र करने से आंखें क्यों चुराता है. जाहिर है कि बाबासाहेब के विचार इस देश की सत्ता और मीडिया पर कब्जा जमाए लोगों को रास नहीं आता. शायद इसीलिए वंचित तबके को भी अपनी एक मीडिया की जरूरत है.
अशोक दास, संपादक (दलित दस्तक)
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।
Koi bhala aapki baaton ko kyon sunega aur kyon likhega inn tamam media houses mein?????????????????????
Hamare log, hamare apne bahujan bhai-bandhu log jabtak wahan tak nahi jaate, wahan nahi pahunchte, tab tak Baba Sahab ke Parinirvan Divas toh chhodiye, unke Janm Divas ke baare mein koi nahi bateyega. Isiliye hum sabse pehle apne logon ko shikshit karein, taaki hamare log wahan tak pahunche aur hamare vanchit samaj ki baatein batayein.