Saturday, February 22, 2025
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पानी की हर बू्ंद के लिए संघर्ष करने वाली महिलाओं की कहानी

जल सहेलियों ने बिना किसी सरकारी या बाहरी सहायता के अपने बलबूते पर काम शुरू किया। उन्होंने बालू भरी बोरियों का इस्तेमाल करके छोटे-छोटे "चेकडैम" (अस्थायी बांध) बनाए ताकि बारिश का पानी नदी में ठहर सके। दिन-रात की मेहनत के बाद छह दिनों में उन्होंने एक ऐसा जलाशय तैयार कर दिया, जिसने सूखी पड़ी घूरारी नदी को फिर से जीवन दे दिया।

झांसी। झांसी के बबीना ब्लॉक का सिमरावारी गांव, जहां पानी की हर बूंद के लिए संघर्ष करना लोगों की नियति बन चुकी थी। बारिश के दिनों में भी घूरारी नदी सूखी ही रहती, और गर्मियों में हालात और भी बदतर हो जाते। पीने के पानी से लेकर खेतों की सिंचाई तक, हर चीज के लिए लोग तरसते थे। गांव की महिलाओं को रोज़ कई किलोमीटर दूर पैदल चलकर पानी लाना पड़ता था। यह मुश्किल सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे बुंदेलखंड की थी, जहां जल संकट आम बात थी। गांव की कुछ जागरूक महिलाओं ने तय किया कि वे इस समस्या को यूं ही नहीं छोड़ेंगी। उन्होंने मिलकर एक स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाया और खुद को “जल सहेलियां” नाम दिया।

जल सहेलियों ने जल संरक्षण और नदी पुनर्जीवन का संकल्प लिया, लेकिन यह सफर आसान नहीं था। जब उन्होंने गांव के लोगों को इस मुहिम से जुड़ने के लिए कहा, तो कई लोगों ने इसे असंभव बताया। कुछ ने कहा, “जो नदी सालों से सूखी पड़ी है, उसे हम जैसे साधारण लोग कैसे जिंदा कर सकते हैं?” लेकिन जल सहेलियां हार मानने वालों में से नहीं थीं।

जल सहेलियों ने बिना किसी सरकारी या बाहरी सहायता के अपने बलबूते पर काम शुरू किया। उन्होंने बालू भरी बोरियों का इस्तेमाल करके छोटे-छोटे “चेकडैम” (अस्थायी बांध) बनाए ताकि बारिश का पानी नदी में ठहर सके। दिन-रात की मेहनत के बाद छह दिनों में उन्होंने एक ऐसा जलाशय तैयार कर दिया, जिसने सूखी पड़ी घूरारी नदी को फिर से जीवन दे दिया। गांव के बुजुर्गों ने जब नदी में पानी देखा, तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। बच्चों ने पहली बार नदी में नहाने का आनंद लिया, और किसानों को अपनी फसलें उगाने की उम्मीद दिखी। लेकिन जल सहेलियों का संघर्ष सिर्फ नदी पुनर्जीवन तक सीमित नहीं था। उन्होंने पानी बचाने के लिए पूरे क्षेत्र में एक “जल यात्रा” निकाली। वे गांव-गांव जाकर लोगों को जल संकट और जल संरक्षण के उपायों के बारे में जागरूक करने लगीं।

उन्होंने समझाया कि सिर्फ एक नदी को पुनर्जीवित करने से समस्या हल नहीं होगी, जब तक कि हर व्यक्ति पानी की बचत के लिए प्रयास न करे। उन्होंने रेनवॉटर हार्वेस्टिंग, तालाबों की सफाई, और जल संरक्षण तकनीकों पर लोगों को प्रशिक्षित किया। यह सिर्फ एक नदी पुनर्जीवित करने की कहानी नहीं थी, बल्कि यह नारी शक्ति और सामूहिक प्रयासों की ताकत का प्रमाण थी। आज जल सहेलियां केवल झांसी तक सीमित नहीं हैं। वे पूरे बुंदेलखंड और उत्तर प्रदेश के अन्य जल संकटग्रस्त क्षेत्रों में जाकर जल संरक्षण के प्रति जागरूकता फैला रही हैं। उनकी मुहिम अब एक आंदोलन बन चुकी है। झांसी की जल सहेलियों ने यह साबित कर दिया कि अगर संकल्प दृढ़ हो, तो किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। यह कहानी सिर्फ झांसी की महिलाओं की नहीं, बल्कि पूरे देश की महिलाओं के लिए प्रेरणा है कि यदि हम एकजुट होकर कुछ करने की ठान लें, तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। उनकी मेहनत और दृढ़ संकल्प का ही परिणाम है कि उनकी सफलता के किस्सों की चर्चा दुनिया भर में होने लगी है।


ट्राइबल आर्मी के एक्स पेज से साभार प्रकाशित

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