नागपुर। बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपने लाखों अनुयायियों के साथ हिन्दू धर्म को त्याग कर बौद्ध धम्म अपना लिया था. जिसके बाद उन्होंने भारत को बौद्धमय बनाने की घोषणा की थी. लेकिन धम्मदीक्षा के कुछ समय बाद ही उनका परिनिर्वाण होने के कारण उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका. बाबासाहेब के इसी अधूरे सपने को पुरा करने के लिए अब बाबासाहेब के अनुयायियों ने अपनी कमर कस ली है. खास बात यह है कि इस धर्मांतरण आंदोलन में अब पिछड़े वर्ग के लोग भी जुड़ते जा रहे हैं. इस दिशा में काम करने के लिए प्रमुख ओबीसी नेता दिवंगत हनुमंतराव उपरे यानि काका द्वारा स्थापित ओबीसी सत्यशोधक परिषद पिछले कई वर्षों से काम कर रहा है.
वर्तमान में इसकी कमान उनके बेटे संदीप उपरे और परिषद के वर्तमान अध्यक्ष उल्हास राठोड़ के हाथ में है. 25 दिसम्बर यानी मनुस्मृति दहन दिवस के दिन इस दिशा में काम करने वाले विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर ओबीसी धम्मदीक्षा समारोह का बड़े पैमाने पर आयोजन किया गया है. खासतौर पर सत्यशोधक ओबीसी परिषद के द्वारा ओबीसी धम्म दीक्षा समारोह का प्रमुख आयोजन मुंबई के उपनगर कल्याण के वालधुनी में किया गया है. इस समारोह में हजारों की संख्या में ओबीसी समुदाय के लोग बौद्ध धम्म की दीक्षा लेंगे.
यह इकलौती जगह नहीं है जहां ओबीसी समाज के लोग बुद्ध की शरण में आएंगे, बल्कि इसी दिन नागपुर के दीक्षाभूमि में भी ओबीसी धम्मदीक्षा समारोह का आयोजन किया गया है, जिसमें ओबीसी समाज के हजारों लोग दीक्षाभूमि स्मारक समिति के अध्यक्ष भदन्त आर्य नागार्जुन सुरई ससाई द्वारा बौद्ध धम्म की दीक्षा लेंगे. आयोजन को सफल बनाने के लिए महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय के प्रमुख नेता तथा विचारक प्रो. जेमिनी कडू, रमेशजी राठौड़, संतोष भालदार, राष्ट्रीय ओबीसी महिला परिषद की अध्यक्ष श्रीमती सुषमा भड आदि प्रमुख रूप से सक्रिय हैं. जाहिर है कि देश के सबसे बड़े तबके पिछड़े समाज के बौद्ध धम्म की ओर आने से बाबासाहेब के भारत को बौद्धमय बनाने का सपना साकार होने में बड़ी मदद मिलेगी.
रिपोर्ट- सोनाली

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