राजस्थान। स्टार्टअप के दौर में युवाओं की क्रिएटिविटी उन्हें बेहतर मुकाम दिला रही है. शहरों में ही नहीं, कस्बे से लेकर गांवों तक युवाओं का टैलेंट अब देश-दुनिया में छाने लगा है. यहां हम आपको कॉलेज ड्रॉप आउट कर कुछ क्रिएटिव करने वाले दोस्तों की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने अपने यूनीक आइडिया से न केवल स्कूली बच्चों के बस्ते का बोझ हल्का कर दिया, बल्कि किताबी ज्ञान को विस्तृत कर टेक्सटबुक्स की जरूरत ही खत्म कर दी. इन्होंने ज्ञान-विज्ञान के 95 मोबाइल ऐप बनाए हैं.
दरअसल, हम बात आरडीएस यानि राहुल, देवेन्द्र और साहिल की कर रहे हैं. अलवर जिले के तीनों युवा जिन्होंने अपने नाम के आधार पर ही आरडीएस एजुकेशन कार्यक्रम तैयार किया है. बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद तीनों दोस्तों ने आगे की पढ़ाई की शुरुआत की, लेकिन इंट्रेस्ट कुछ अलग करने का था इसलिए कॉलेज ड्रॉपआउट किया और स्कूली सिलेबस से किताबी ज्ञान को डिजिटलाइज्ड कर दिया.
तीनों दोस्तों ने एनसीईआरटी सिलेबस की सभी बुक्स को फेसबुक के मैंसेजर पर मैंसेजर इंटेलिजेंट बोर्ड बनाकर समेट लिया. यानि किसी भी क्लास का स्टूडेंट किसी भी विषय का कोई चेप्टर पढ़ना चाहे तो मैसेंजर पर आरडीएस एजुकेशन टाइप कर पढ़ सकते है. हालांकि, अभी उनका कार्य सीबीएसई और राजस्थान बोर्ड के पाठ्यक्रम पर भी चल रहा है. इसे भी वे जल्द डिजिटलाइज्ड करेंगे.
एनआईटी छोड़कर आए साहिल का कहना है कि इसका उन्हें देशभर से रिस्पोंस मिल रहा है. रशिया में एमबीबीएस कोर्स के लिए राहुल यादव का सिलेक्शन भी हो गया, लेकिन अपने दोनों दोस्तों के साथ किए काम को आगे बढ़ाने के मकसद से उन्होंने मोबाइल ऐप तैयार करने पर जोर दिया. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए जीके, जीएस और तमाम स्कूली विषयों से जुड़े 95 ऐप तैयार कर डाले.
साथी देवेन्द्र के साथ युवाओं ने इस आइडिया को इंप्लीमेंट किया. इनका मानना था कि बच्चे केवल मोबाइल पर गेम खेलने का ही काम करते हैं, लेकिन इसे पढ़ाई में भी काम लिया जाना चाहिए. इस कार्य के लिए उन्हें गूगल की ओर से भी सराहना मिली है. बहरहाल, ये युवा भी उसी अलवर जिले से ताल्लुक रखते हैं जहां कुछ समय पर मोबाइल ऐप बनाने वाले इमरान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सराहा था. अब इन्हें उम्मीद है कि इस कार्य में उन्हें सरकार से भी प्रोत्साहन मिल सके ताकि स्टूडेंट्स के लिए वे अपने काम को और आगे बढ़ा सकें.
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