छत्रपति शाहूजी महाराज महाराष्ट्र राज्य के निकट कोल्हापुर संस्थान के राजा थे. ये शूद्र जाति से थे. महाराज ने अपने शासन में लगे सी ब्राह्मणों को हटा दिया था. ब्राह्मणों को हटाकर बहुजन समाज को मुक्ति दिलाने का क्रांतिकारी कदम छत्रपति शाहूजी ने ही उठाया. साथ ही शूद्रों एवं दलितों के लिए शिक्षा का दरवाजा खोलकर उन्हें मुक्ति की राह दिखाने में बहुत बड़ा कदम उठाया.
सामाजिक क्रांति के अग्रदूत छत्रपति शाहूजी महाराज राजर्षि का जन्म 26 जून 1874 को कोल्हापुर में हुआ था. उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबा साहब घाटगे तथा उनकी माता का नाम राधाबाई साहिबा था. शाहूजी के जन्म का नाम यशवंतराव था. आबा साहब, यशवंतराव के दादा थे. श्रीमान आबा साहब ने यह शासन कार्य चौथे-शिवाजी महाराज की कब्द होने के कारण किया गया था. पश्चात चौथे शिवाजी का अंत होने के बाद शिवाजी महाराज की पत्नी महारानी आनंदी बाई साहिबा ने 1884 में यशवंत राव को गोद ले लिया था. इसके बाद यशवंतराव का नाम शाहू छत्रपति रखा गया था. इन्हें कोल्हापुर संस्थान का वारिस बना दिया गया था. शाहू महाराज की शिक्षा राजकोट में स्थापित राजकुमार कॉलेज में हुई. राजकोट की शिक्षा समाप्त करके शाहूजी को आगे की शिक्षा पाने के लिए 1890 से 1894 तक धाराबाड में रखा गया. शाहू महाराज ने अंग्रेजी, इतिहास और राज्य कारोबार चलाने की शिक्षा ग्रहण की. अप्रैल 1897 में राजा शाहू का विवाह खान बिलकर की कन्या श्रीमंत लक्ष्मी बाई से संपन्न हुआ. विवाह के समय लक्ष्मी बाई साहिबा की उम्र महज 11 वर्ष की ही थी.
जब छत्रपति शाहूजी महाराज की आयु 20 वर्ष थी, तो इन्होंने करविर (कोल्हापुर) संस्थान के अधिकार ग्रहण करके सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले ली तथा शासन करने लगे. 1894 में इनका राज्याभिषेक समारोह हुआ. आमतौर पर सभी राजाओं की छवि जनता की आमदनी को करों के माध्यम से हड़पने एवं जबरन वसूली की थी लेकिन छत्रपति शाहू ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने सबसे बड़ा काम राजव्यवस्था में परिवर्तन करके किया. उनका मानना था कि संस्थान की वृद्धि में उन्नति के लिए प्रशासन में हर जाति के लोगों की सहभागिता जरूरी है. तब उनके प्रशासन में सिर्फ ब्राह्मण जाति के लोग ही रे हुए थे. जबकि बहुजन समाज के केवल 11 अधिकारी हैं. इसके लिए ब्रह्मणों ने एक चाल के तहत बहुजन समाज को शिक्षा से दूर रखा था. ताकि पढ़-लिखकर ये सरकारों में शामिल न हो सकें. शाहूजी इस बात से चिंतित रहते थे. उन्होनें प्रशासन में ब्राह्मणों के इस एकाधिकार को समाप्त करने के लिए तथा बहुजन समाज की भागीदारी के लिए आरक्षण कानून बनाया. इस क्रांतिकारी कानून के अंतर्गत बहुजन समाज के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था थी.
देश में आरक्षण की यह पहली व्यवस्था थी. तब तक बहुजन समाज के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद थे. उन्हें तिरस्कार की जिंदगी जीने के लिए मजबूर किया जाता था. इधर दूसरी ओर शाहूजी महाराज द्वारा बहुजन समाज को आगे बढ़ाने का प्रयास ब्राह्मण वर्ग सहन नहीं कर सका. शूद्र राजाओं के सहारे जीने वाले ब्राह्मण पुरोहितों ने ही अपने ब्राह्मणी धर्म का वर्चस्व को बचाने के लिए छत्रपति शाहू महाराज को शूद्र कहकर अपमानित किया था. शाहू महाराज हर साल कार्तिकी स्नान के लिए पंच गंगा नदी पर जाते थे. सन् 1899 में उनके ही राजपुरोहित ने महाराज को शूद्र कहकर नीचा दिखाया. शूद्रों के स्नान के समय ब्राह्मण पुराणोक्त मंत्र बोल कर स्नान की विधि करते थे, तभी स्नान का ला माना जाता था. शाहू राजा की स्नान विधि भी राज पुरोहित ने पुराणोक्त पद्यति से कराई थी. इससे महाराज शाहू आग बबूला हो उठे और राजपुरोहितों की तनख्वाह बंद कर उनको इस धर्म के कार्य से हटा दिया. इस घटना से शाहू राजा के क्रांतिकारी अंतरमन को धक्का पहुंचा.
अब शाहूजी ने पूर्ण निष्ठा व विश्वास के साथ इस व्यवस्था (ब्राह्मणवादी) को खंडित करने का निश्चय किया. उनके जीवन पर ज्योतिबा फुले का काफी प्रभाव था. फुले के देहांत के बाद महाराष्ट्र में चले सत्य शोधक समाज आंदोलन का कारवां चलाने वाला कोई नायक नेता नहीं था. 1910 से 1911 तक शाहू महाराज ने इस सत्यशोधक समाज आंदोलन का अध्ययन किया. 1911 में राजा शाहूजी ने अपने संस्थान में सत्य शोधक समाज की स्थापना की. कोल्हापुर संस्थान में शाहू महाराज ने जगह-जगह गांव-गांव में सत्यशोधक समाज की शाखाएं स्थापित की. सन् 1932 से कोल्हापुर में सत्यशोधक समाज आंदोलन द्वारा जागृति जत्था लगाना प्रारं किया. सत्यशोधक पाठशाला से बहुजन समाज के विद्यार्थियों को धर्म ज्ञान का प्रशिक्षण देकर पुरोहितों के मुंह पर थप्पड़ लगाया. महाराज ने कोल्हापुर शहर में सत्यशोघक समाज कार्यालय की स्थापना की. धर्म के नाम पर होने वाले शोषण के विरूद्ध बहुजन समाज का मुक्ति संग्राम चलाकर शाहूजी ने संस्थानों के इतिहास में अपनी अलग पहचान बनाई.
18 अप्रैल 1901 में मराठाज स्टुडेंटस इंस्टीट्यूट एवं विक्टोरिया मराठा बोर्डिंग संस्था की स्थापना की और 47 हजार रूपये खर्च करके इमारत बनवाई. 1904 में जैन होस्टल, 1906 में मॉमेडन हॉस्टल और 1908 में अस्पृश्य मिल क्लार्क हॉस्टल जैसी संस्था का निर्माण करके साहू जी महाराज ने शिक्षा फैलाने की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया जो मिल का पत्थर साबित हुआ. अज्ञानी और पिछड़े बहुजन समाज को ज्ञानी, संपन्न एवं उन्नत बनाने हेतु छत्रपति राजा ने अपने जीवन का एक-एक क्षण समर्पित कर दिया. शाहूजी महाराज ने 1912 में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा देने के बारे में कानून बनाया तथा उसे अमल में भी लाए. 1917 में पुनर्विवाह का कानून भी पास किया. जब उन्हें पता चला कि डॉ. अंबेडकर अमेरिका से पढ़ाई पूरी करके देश में वापस आ गए हैं, तो वे उनसे मिलने के लिए सीमेंट चाल (मुंबई) में पहुंचे. उन्होंने बाबा साहेब को गले लगाया और कहा कि डॉक्टर तुम्हारे रूप में दलित समाज को सही नेता मिल गया हैं. सामाजिक परिवर्तन के कार्य को गतिमान करने के लिए शाहूजी ने मूकनायक पाक्षिक पत्रिका के लिए आर्थिक योगदान किया. 6 मई 1922 को बहुजन समाज के हित दक्ष राजा छत्रपति शाहू महाराज का देहांत हुआ, जिससे आरक्षण के प्रवर्तक का अंत हो गया.
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