बारन। भाजपा शासित राज्य राजस्थान में इलाज न होने के कारण सात महीने के आदिवासी बच्चे की मौत हो गई. उसके रिश्तेदार छह किलोमीटर तक पैदल अपने कंधे पर रखकर उपचार के लिए उसे एक स्वास्थ्य केंद्र ले गए थे. अफसरों ने हालांकि परिवार के आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि बच्चा निमोनिया से पीड़ित था और एक चिकित्सक ने दवाएं लिखीं. उसने बच्चे को सीएचसी में उनसे भर्ती कराने को भी कहा था लेकिन वे घर चले गए.
बच्चे की दादी कोसाबाई के अनुसार उनका पौत्र सनी देओल सहारिया बीते रविवार से कफ और सर्दी से पीड़ित था. कोसाबाई सोमवार को अपने पति और सनी की मां सुमंताबाई के साथ बच्चे को कंधे पर रखकर अपने गांव चोरखादी से छह किलोमीटर दूर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में दिखाने के लिए ले गए. उन्होंने आरोप लगाया कि वे दोपहर के समय सीएचसी पहुंचे तो उन्हें सूचित किया गया कि ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक घर चले गए हैं क्योंकि उनकी ड्यूटी समाप्त हो चुकी है.
जब वे चिकित्सक के आवास पहुंचे तो उन्होंने उनसे शाम पांच बजे तक उपचार के लिए इंतजार करने या बारन में जिला अस्पताल ले जाने को कहा, जो 80 किलोमीटर दूर है. उन्होंने इस उम्मीद में कुछ समय के लिए इंतजार किया कि जिला अस्पताल जाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था हो जाएगी लेकिन असफल रहे. आखिरकार वे अपने गांव के लिए रवाना हुए ताकि धन की व्यवस्था करके बारन अस्पताल पहुंच सकें. लेकिन सीएचसी से रवाना होने के तुरंत बाद सनी की उनकी बांहों में मौत हो गई. उन्हें अपने कंधे पर रखकर बच्चे के शव को वापस गांव लाना पड़ा क्योंकि उन्हें एंबुलेंस नहीं मिल सका.
बारन के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि मामला प्रकाश में आने के बाद उन्हें उप मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी राजेंद्र मीणा को घटना की जांच के लिए मंगलवार सुबह घटनास्थल भेजा. मीणा ने दावा किया कि जब परिवार ने चिकित्सक अशोक मीणा से उनके आवास पर संपर्क किया तो उन्होंने कुछ दवाएं लिख दी थीं और परिवार से बच्चे को सीएचसी में भर्ती कराने को कहा था. मीणा ने कहा कि परिवार के सदस्य वहां जाने की बजाय सीधा अपने घर चले गए. बच्चा गंभीर रूप से निमोनिया से पीड़ित था. उन्होंने कहा कि परिवार के सदस्यों का बयान दर्ज किया जाना बाकी है.
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