आदिवासी समाज के कितने होंगे ओडिशा के आदिवासी मुख्यमंत्री मोहन माझी

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ओडिशा के नए मुख्यमंत्री मोहन चरण माझीनवीन पटनायक के 24 साल की बादशाहत को खत्म कर मोहन चरण माझी ओडिसा के मुख्यमंत्री बन गए हैं। बुधवार को भुवनेश्वर के जनता मैदान में शाम पांच बजे उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। भाजपा ने दो उपमुख्यमंत्री भी बनाया हैं। इसमें लगातार छठी बार विधायक बने बलांगीर के राज परिवार से ताल्लुक रखने वाले कनक वर्धन सिंहदेव हैं। तो दूसरी डिप्टी सीएम पहली बार विधायक बनी प्रभाती परिड़ा बनाई गई हैं। परिड़ा राज्य भाजपा के महिला मोर्चा की अध्यक्ष रह चुकी हैं। 12 जून को मोहन चरण माझी के शपथ ग्रहण के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह सहित तमाम दिग्गज नेता मौजूद थे।

लेकिन सवाल है कि भाजपा ने आखिर आदिवासी समाज के मोहन माझी को ही क्यों चुना? क्या इसके पीछे लोकसभा के चुनावी नतीजे हैं, जिसमें भाजपा को 2019 के मुकाबले 26 रिजर्व सीटों पर मात खानी पड़ी है। और इसी बेचैनी में भाजपा आदिवासी बहुलता के हिसाब से तीसरे नंबर के राज्य ओडिसा में आदिवासी समाज के नेता को मुख्यमंत्री की कमान सौंप दी है।

पहले बात करते हैं नए सीएम मोहन चरण माझी की। माझी लंबे समय से भाजपा से जुड़े रहे हैं और उत्तरी ओडिशा के केऊंझर जो कि अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित सीट है, वहां से चौथी बार विधायक बने हैं। माझी के नाम पर मुहर लगा कर भाजपा ने छत्तीसगढ़ और राजस्थान की तरह ही एक बार फिर से सबको चौंका दिया है। ओडिसा में आदिवासी समाज की आबादी करीब 23 प्रतिशत है। ओडिसा की कुल आबादी 4 करोड़ है, जिसमें आदिवासी समाज की आबादी एक करोड़ है। जबकि देश की कुल आदिवासी आबादी की 9.20 फीसदी आबादी ओडिशा में है। यानी ओडिसा के जरिये भाजपा देश भर के आदिवासी समाज को एक मैसेज दिया है।

ओडिशा के मुख्यमंत्री के तौर पर मोहन चरण माझी के नाम पर मुहर लगाते राजनाथ सिंहदरअसल लोकसभा चुनाव में आरक्षित सीटों पर करारी हार के बाद भाजपा में बेचैनी है। साथ ही जिस तरह से 400 पार का नारा देने के बावजूद भाजपा खुद अपने बूते सरकार भी नहीं बना सकी, और एनडीए गठबंधन पर निर्भर हो गई है, उसने भाजपा को डरा दिया है। ऐसे में भाजपा ने जिस तरह छत्तीसगढ़ के बाद ओडिसा में आदिवासी समाज के नेतृत्व दिया है, वह वंचित समाज के बीच यह संदेश देना चाहती है कि सिर्फ भाजपा की दलितों और आदिवासियों को प्रतिनिधित्व दे सकती है। यही वजह है कि भाजपा ने छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज के विष्णु देव साय के बाद ओडिसा में मोहन माझी को सत्ता की कमान दे दी है।

अगर इसको प्रतिनिधित्व के लिहाज से देखें तो आदिवासी बहुल राज्यों के लिए एक बड़ा कदम है। क्योंकि आदिवासियों की बहुलता वाले प्रदेश में इसी समाज का मुख्यमंत्री इस समाज की असली भलाई सोच और कर कर सकता है। जैसा कि झारखंड के मामले में वकालत की जाती है। लेकिन बात बस इतनी सी नहीं है, बल्कि इसके कई और भी फैक्टर है।

ओडिशा के उत्तर में झारखंड और पश्चिम बंगाल, पश्चिम में छत्तीसगढ़ और दक्षिण में आंध्र प्रदेश राज्य है। इसमें झारखंड और पश्चिम बंगाल दोनों राज्यों में भाजपा सत्ता से दूर है। बिहार के अलावा पश्चिम बंगाल की सत्ता को हासिल करना भाजपा का एक बड़ा सपना है। तो झारखंड में भी भाजपा दुबारा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है। साल के आखिर में झारखंड में विधानसभा चुनाव भी है। ऐसे में भाजपा झारखंड के आदिवासी समाज को संदेश देना चाहती है कि वह उन्हें सत्ता के शीर्ष पर बैठाएगा, जैसा कि उसने पिछली बार नहीं किया था।

मंदिर परिसर में ओडिशा के नए मुख्यमंत्री मोहन चरण माझीहालांकि इन सबके बावजूद छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय और अब ओडिशा में मोहन चरण माझी के रूप में भाजपा ने उन्हीं नेताओं को मौका दिया है, जो भाजपा और संघ की विचारधारा से निकले और उसमें रचे-बसे हुए हैं। मोहन माझी ने 90 के दशक में सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। 1997 में वो सरपंच बने और 2000 में भाजपा के टिकट पर केऊंझर से पहली बार विधायक बने। 24 साल तक नवीन पटनायक ने जिस तरह ओडिशा में अजेय राज किया, माझी उनके खिलाफ मुखर रहे। इसने उन्हें आदिवासी समाज के साथ-साथ भाजपा के भीतर भी लोकप्रिय किया। और इन सबके बाद जिस तरह मुख्यमंत्री बनते ही अपने पहले फैसले में उन्होंने जगन्नाथ पुरी मंदिर के सभी चारों दरवाजे खोलने और मंदिर के रखरखाव के लिए 500 करोड़ का कोष स्थापित करने का आदेश दिया है, वह उसे भाजपा के सबसे बड़े एजेंडे ‘धर्म’ से भी जोड़ता है। देखना होगा कि भाजपा ने जिस तरह छत्तीसगढ़ के बाद अब ओडिशा में आदिवासी समाज का मुख्यमंत्री दिया है, वो भाजपा के एजेंडे को पूरा करने के अलावा आदिवासी समाज का कितना भला करते हैं।

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